शनिवार, 5 जुलाई 2025

बेशक बेबाकी से झूठ बोलती है हमारी सरकार

 

भारतीय संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद जैसे शब्दों को बर्दास्त न कर पाने वाली सरकार यदि कहे कि- भारत सरकार आस्था और धर्म से जुड़े विश्वासों और परंपराओं पर कोई रुख़ नहीं अपनाती और न ही इस पर कोई टिप्पणी करती है."या "सरकार ने हमेशा भारत में सभी के लिए धार्मिक स्वतंत्रता का समर्थन किया है और आगे भी ऐसा करती रहेगी."तो आप भरोसा करेंगे? 

 धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दे पर सरकार और सरकारी पार्टी के दोहरे रवैये की पोल न खुलती यदि तिब्बती बौद्ध धर्म के सबसे बड़े आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा को लेकर  केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजु के बयान पर आंखे लाल न करता. इधर चीन ने आंखें तरेरीं और उधर भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी  कर सफाई दे डाली..

विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा, "हमने दलाई लामा की ओर से दलाई लामा संस्था की निरंतरता को लेकर दिए गए बयान से जुड़ी रिपोर्ट्स देखी हैं."उन्होंने कहा, "भारत सरकार आस्था और धर्म से जुड़े विश्वासों और परंपराओं पर कोई रुख़ नहीं अपनाती और न ही इस पर कोई टिप्पणी करती है."बयान में आगे कहा गया, "सरकार ने हमेशा भारत में सभी के लिए धार्मिक स्वतंत्रता का समर्थन किया है और आगे भी ऐसा करती रहेगी."

 आपको बता दें कि दलाई लामा ने बुधवार को कहा था कि दलाई लामा की संस्था जारी रहेगी.इस बात का सीधा मतलब यह है कि मौजूदा दलाई लामा की मृत्यु के बाद भी उनका उत्तराधिकारी होगा.

लेकिन दलाई लामा के उत्तराधिकारी के मुद्दे पर चीन ने कड़ा ऐतराज़ जताया है.

दलाई लामा के संदेश को ख़ारिज करते हुए चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा था कि उनके पुनर्जन्म को चीनी सरकार की मंज़ूरी की ज़रूरत है.साथ ही चीन ने कहा कि दलाई लामा के उत्तराधिकार की प्रक्रिया में चीन के क़ानूनों और नियमों के साथ-साथ 'धार्मिक अनुष्ठानों और ऐतिहासिक परंपराओं' का पालन होना चाहिए.

चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी की पहचान केवल लॉटरी सिस्टम के माध्यम से की जा सकती है - जहां नाम एक सुनहरे कलश से निकाले जाते हैं.

दलाई लामा, तेनज़िन ग्यात्सो, मेरे जन्म से ठीक एक महिने पहले 31 मार्च 1959 को भारत आए थे.। वे तिब्बत की राजधानी ल्हासा से 17 मार्च 1959 को चीनी शासन के खिलाफ असफल विद्रोह के बाद भागकर भारत आए। चीनी सेना द्वारा तिब्बत पर कब्जा (1950) और बढ़ते दमन के कारण उनकी जान को खतरा था। 15 दिनों तक हिमालय पार करने के बाद, उन्होंने अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले में भारतीय सीमा में प्रवेश किया। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें शरण दी। तब से वे हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में निर्वासित तिब्बती समुदाय के साथ रह रहे हैं, जहां उन्होंने निर्वासित तिब्बती सरकार और गदेन फोडरंग ट्रस्ट की स्थापना की। चीन उन्हें अलगाववादी मानता है, क्योंकि वे तिब्बत के लिए स्वायत्तता की वकालत करते हैं।

इस मामले में केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने 3 जुलाई 2025 को कहा था कि दलाई लामा के उत्तराधिकारी का चयन केवल दलाई लामा और उनकी स्थापित संस्था, गादेन फोडरंग ट्रस्ट, द्वारा ही किया जाएगा, जिसमें किसी बाहरी हस्तक्षेप की अनुमति नहीं होगी। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह फैसला तिब्बती बौद्ध परंपराओं और दलाई लामा की इच्छा के अनुसार होगा। यह बयान दलाई लामा के उस कथन के बाद आया, जिसमें उन्होंने कहा था कि उनकी संस्था जारी रहेगी और केवल गादेन फोडरंग ट्रस्ट को उनके पुनर्जन्म को मान्यता देने का अधिकार होगा।

 रिजिजू ने यह भी कहा कि वह एक बौद्ध श्रद्धालु के रूप में बोल रहे हैं, न कि भारत सरकार की ओर से, और दलाई लामा के सभी अनुयायी चाहते हैं कि उत्तराधिकारी का चयन स्वयं दलाई लामा करें।इस बयान पर चीन ने आपत्ति जताई, जिसके विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने कहा कि भारत को तिब्बत (शिजांग) से संबंधित मुद्दों पर सावधानी बरतनी चाहिए और दलाई लामा के उत्तराधिकारी को चीनी कानूनों, धार्मिक अनुष्ठानों और ऐतिहासिक परंपराओं के अनुसार चुना जाना चाहिए, जिसमें चीन की मंजूरी आवश्यक है। 

अब असली मुद्दे पर आते हैं कि क्या सचमुच भारत में धार्मिक स्वतंत्रता और आस्था के मामलों में सरकार दखल नहीं देती? यदि ये सही है तो सरकार तीन तलाक और वक्फ बोर्ड जैसे कानून क्यों बनाती है? कांवड यात्रा पर फूल बरसाती है और मस्जिदों, मजारों पर बुलडोजर क्यों चलाती है.क्यों मदरसों में दखल देती है. क्यों एक धर्म विशेष के पूजाघरों पर सरकारी खजाना खोल देती है? हकीकत ये है कि भारत सरकार चीन से डरती है लेकिन बांग्लादेश से नहीं. सरकार  को तिब्बत के मुद्दे पर सफाई देने की क्या जरुरत थी? सरकार जैसे सीज फायर पर खामोश रही वैसे ही तिब्बत के मामले में चीन की आपत्ति को एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देती! 

बांग्लादेशियो से नफरत करने वाला भारत बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री को शरण दे सकता है. तस्लीमा नसरीन को शरण दे सकता है लेकिन 66साल से भारत में शरणार्थी दलाई लामा को संरक्षण देते हुए कांप जाता है. आज 66साल बाद भी तिब्बती भारत के नागरिक ननही बल्कि शरणार्थी हैं. बहरहाल धार्मिक स्वतंत्रता और आस्था के मुद्दे पर यदि सचमुच भारत सरकार जो कह रही है वो सच है तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए.

@  राकेश अचल

शुक्रवार, 4 जुलाई 2025

नोटबंदी के बाद अघोषित वोटबंदी की ओर देश

 

लिखने के लिए विषय और मुद्दे कभी समाप्त नहीं होते. बीती रात मैने मप्र की राजनीति पर लिखने का मन बनाया था किंतु लिख रहा हूं बिहार की राजनीति के बहाने देश पर थोपी जा रही वोटबंदी की. सरकार नोटबंदी के बाद विपक्ष पर जीत हासिल करने के लिये वोटबंदी का सहारा ले रही है. इसके लिए सरकार ने अपने केंचुए को सक्रिय कर दिया है. केंचुआ अचानक कोबरा की मुद्रा में नजर आ रहा है.

नरेंद्र मोदी का तीसरा कार्यकाल 9 जून 2024 को शुरू हुआ, जब वे भारत के प्रधानमंत्री के रूप में तीसरी बार शपथ लेने वाले दूसरे नेता बने, पहले जवाहरलाल नेहरू थे। 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा-नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने 293 सीटें जीतीं, लेकिन भाजपा अकेले 240 सीटों के साथ बहुमत से चूक गई। इससे मोदी को तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) और जनता दल (यूनाइटेड) जैसे गठबंधन सहयोगियों पर निर्भर रहना पड़ रहा है, जिससे उनके पिछले एकल-निर्णयकारी शासन की तुलना में सहयोगात्मक शासन शैली की आवश्यकता है।किसी ने नहीं सोचा था कि बैशाखियों पर टिकी सरकार विनम्र होने के वजाय और दंभी हो जाएगी.

मोदी का यह कार्यकाल उनके पिछले कार्यकालों की तुलना में अधिक चुनौतीपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि गठबंधन की गतिशीलता और एक मजबूत विपक्ष (इंडिया गठबंधन, 234 सीटें) के कारण उन्हें सत्ता साझा करनी पड़ रही है। विश्लेषकों का कहना है कि आर्थिक मुद्दे, जैसे महामारी के बाद बेरोजगारी, और धार्मिक ध्रुवीकरण की आलोचना ने मतदाताओं को प्रभावित किया। फिर भी, मोदी विकास और हिंदू राष्ट्रवाद के अपने एजेंडे पर जोर दे रहे हैं, 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का लक्ष्य रखते हुए।क्या आप किसी विशिष्ट पहलू, जैसे नीतियों या राजनीतिक चुनौतियों, पर अधिक जानकारी चाहेंगे?इसी के तहत मोदी जी किसी भी सूरत में बिहार जीतना चाहते हैं. बिहार जीते बिना वे बंगाल नहीं जीत सकते.

बिहार जीतने के लिए भाजपा ने बिहार की मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण और सत्यापन के बहाने कम से कम 3करोड मतदाओं को मताधिकार से वंचित करने की रणनीति बनाई और इस पर अमल के लिए केंद्रीय चुनाव आयोग को सक्रिय कर दिया. केंचुए ने मतदाता सत्यापन के लिए जो नियम बनाए हैं वे अमेरिका में अवैध प्रवासियों के लिए बनाए गये नियमों से भी ज्यादा कठिन हैं. यानि वे 3करोड मतदाता रोजी रोटी के लिए बिहार से बाहर हैं वे पहले सत्यापन के लिए अपने घर आएं. अपने माँ बाप के जन्म प्रमाण पत्र जुटाएं जो असंभव है. और जुटा भी लें तो मतदान के दिन फिर बिहार आएं.

विपक्ष ने इन अव्यावहारिक नियमों का विरोध करत हुए केंचुआ प्रमुख से मलना चाहा तो उन्होने राजनतिक दलों के प्रतिनिधियों से मिलने के नये नियम बना दिए. केंचुआ एक दल के केवल अध्यक्ष और महासचिव से ही मिलना चाहता है. यानि केंचुए का दफ्तर न हुआ बल्कि रक्षा मंत्रालय हो गया. लग ऐसा रहा है कि केंचुआ भाजपा य संघ का कोई नुषांगिक संगठन बन गया है.

अब सवाल ये है कि वोटबंदी के लिए तमाम अनैतिक, गैर कानूनी तरीके अपनाकर क्या भाजपा बिहार को महाराष्ट्र और हरियाणा की तरह जीत लेगी? क्या भाजपा इस चुनाव में अपने सहयोगी दलों को शिवसेना और एनसीपी की तरह तोड सकेगी? क्या भाजपा बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार को एकनाथ शिंदे की तरह पदावनत कर पाएगी? यदि भाजपा ये सब न कर पायी तो उसे झारखण्ड की तरह बिहार में मुंह की खाना पडेगी. वोटबंदी शायद ही भाजपा के काम आए.

नोटबंदी को देश का विपक्ष नहीं रोक पाया था और यदि वोटबंदी को भी  न रोक पाया तो विपक्ष निर्मूल हो जाएगा. फिर देश में न धर्मनिरपेक्षता बचेगी और न समाजवाद. देश अखंड भी शायद न रह पाए और तमाम राज्य जम्मू काश्मीर की तरह खंडित कर दिए जाएं. सत्ता में अनंतकाल तक रहने की लालसा पूरी करने के लिए भाजपा अपने प्रधानमंत्री बडे  से बडा पाप करा सकती है. वैसे भी मौजूदा प्रधानमंत्री का ये अंतिम कार्यकाल है. संघ को अब 400 पार कराने वाला नेता चाहिए, 240 पर अटकने वाला नहीं. बिहार ही संघ, भाजपा और मोदीजी की किस्मत का फैसला करेगा. बिहार समग्र क्रांति का जनक है.

@ राकेश अचल

गुरुवार, 3 जुलाई 2025

वन क्षेत्र में अतिक्रमित वन भूमि पर जुताई करते ट्रैक्टर किया गया जप्त

 

वन परिक्षेत्र अधिकारी जतारा शिशुपाल अहिरवार की लगातार कार्यवाही

Aapkedwar news –अजय अहिरवार 

जतारा–वन सुरक्षा और वन अपराधों के नियंत्रण के लिए प्रतिबद्ध वन परिक्षेत्र अधिकारी जतारा शिशुपाल अहिरवार के द्वारा शायद ही है कोई ऐसा दिन हो कि उस दिन द्वारा कोई न कोई कार्यवाही वन विभाग के हित में न की गई हो। रोजाना वन सुरक्षा कार्य, वृक्षारोपण कार्य, कर्मचारी हितैषी कार्य, उत्कृष्ठ निर्माण कार्य, अतिक्रमण बेदखली कार्य करने के साथ-साथ वन अपराधियों और वन माफियाओं के लिए नासूर बनकर अपराध नियंत्रण के लिए लगातार जप्ती की कार्यवाही के दौरान वन परिक्षेत्र अधिकारी जतारा शिशुपाल अहिरवार को 02/07/2025 की रात्रि में बीट उपरारा के कक्ष क्रमांक पी 235 के जंगल में वन भूमि पर अतिक्रमणकारियों द्वारा जुताई, बखराई किए जाने की सूचना मुखबिर से प्राप्त होने के तुरंत बाद दल का गठन कर मुखबिर के बताए अनुसार वन अमले को मौके से भेजा गया तो वन अमले के द्वारा बीट उपरारा के कक्ष क्रमांक पी 235 की वन भूमि पर एक नग न्यू सोल्ड स्वराज ट्रैक्टर 735FEe अवैध रूप से वनक्षेत्र में जुताई करते पाया गया जिसको वन अमले के द्वारा स्थानीय ग्रामीणों और वन समिति के सदस्यों के सहयोग से संरक्षित वन भूमि पर जुताई करने के अवैध अतिक्रमण के वन अपराध मे जप्त कर सीधा जतारा लाया गया और आरोपी वाहन मालिक/ वाहन चालक बालकिशन केवट और  अतिक्रमणकारी संजू रैकवार के नाम से नामजद वन अपराध प्रकरण क्रमांक 279/08 दिनांक 02/07/2025 दर्ज कर अग्रिम विवेचना में लिया गया।

ट्रैक्टर जप्ती की कार्यवाही वन सरंक्षक छतरपुर, वन मंडल अधिकारी टीकमगढ़ और उपवन मंडल अधिकारी टीकमगढ़ के दिशा निर्देशन और मार्गदर्शन में   वन परिक्षेत्र अधिकारी जतारा शिशुपाल अहिरवार के कुशल नेतृत्व में की गई जिसमे शिवशंकर अहिरवार वनरक्षक, याशीन खान वनरक्षक, प्रमोद अहिरवार वनरक्षक, विवेक वंशकार वनरक्षक, अशोक वर्मा वनरक्षक, शुभम पटेल वनरक्षक, लखन लाल कुशवाहा वनरक्षक , अमन प्रजापति वनरक्षक , आजाद खान और अनिल द्विवेदी स्थाईकर्मी इत्यादि सम्मिलित रहे।

नो ईडी, नो सीबीआई, मानसून खोलता है भ्रष्टाचार की पोल

भारत में भ्रष्टाचार की जांच के लिए बना प्रवर्तन निदेशालय हो या सीबीआई फेल हो सकता है लेकिन वर्षा इकलौती एजेंसी है जो निर्माण कार्यों में हुए बडे से बडे भ्रष्टाचार की पोल खोल देती है. दुर्भाग्य ये है कि हमारी सरकारें फिर भी दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करतीं और न उन्हे सजा दिला पाती हैं, क्योंकि ये तमाम भ्रष्टाचार सरकार के संरक्षण में ही फलता -फूलता है.

देश में हर साल मानसून बिना किसी भेदभाव या पक्षपात के निर्माण कार्यों में आकंठ भ्रष्टाचार की पोल खोलता है. मानसून के आते ही हमारे हवाई अड्डों की छतें आंसू बहाने लगती हैं. सडकें बहने लगतीं है और बडे से बडे पुल-पुलियां टूटने लगते हैं. पहाड धंसने लगते हैं, जल भराव होने लगता है. बडी संख्या में धनहानि के साथ जनहानि होती है किंतु किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती. सजा देने की बात तो छोड दीजिये.

सामंतों के शहर ग्वालियर में स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत बनाई गई सडकें पहली बरसात में धंस जातीं हैं, सुपर मल्टी स्पेशल अस्पताल की सीलिंग टपकने लगती है तो देश की राजधानी दिल्ली में इंदिरा गांधी अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डे का टर्मिनल नंबर 1टपकने लगता है लेकिन न कसी को कोई लज्जा आती है, न किसी की आंखें शर्म से झुकतीं हैं. सुदूर गांवों से लेकर महानगरों तक में अकल्पनीय थल भराव से बिना लागत के स्वीमिंग पूल बन जाते हैं. लोग मरते हैं, घायल होते हैं लेकिन किसी को कोई फर्क नहीं पडता, सिवाय गरीब जनता के. इस खौफनाक, शर्मनाक मंजर से घबडाकर हमारे प्रधानमंत्री जी विदेश यात्रा पर निकल जाते हैं और पूरी सरकार बिहार जीतने में लग जाती है.

मानसून न आए तो देश में निर्माण कार्यों में बडे पैमाने पर होने वाले भ्रष्टाचार की पोल ही न खुले. देश में निर्माण कार्य चाहे रक्षा मंत्रालय में हों या लोकनिर्माण विभाग में भ्रष्टाचार के लिए अभिशप्त हैं. 40 प्रतिशत तक कमीशन पर ठेके होते हैं. स्थानीय निकाय नदी-नालों के जल निकासी के रास्तों पर अतिक्रमण को अनदेखा कर देते हैं और खामियाजा भुगतती है जनता. शहरों में जलभराव की असली जड नालों पर अवैध कब्जे और अवैध निर्माण ही हैं लेकिन मजाल कि कोई इसके खिलाफ कार्रवाई कर दिखाए. सरकारी बुललडोजर केवल अल्पसंख्यकों के मकान गिराती है.

भारी बारिश और बाढ़ के कारण  अकेले हिमाचल प्रदेश में भारी तबाही हुई.। 30 जून तक, राज्य में 39 लोगों की मौत और 129 सड़कों के बंद होने की खबर थी।कुल्लू जिले में ब्यास नदी के उफान पर होने की वजह से भारी नुकसान।1 और 2 जुलाई के लिए ऑरेंज अलर्ट जारी, जिसमें भूस्खलन और जलभराव का खतरा बताया गया।उत्तराखंड:भारी बारिश और भूस्खलन से चारधाम यात्रा प्रभावित। यमुनोत्री ट्रेक रूट पर 23 जून को भूस्खलन में 5 लोगों की मौत।रुद्रप्रयाग में एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना, जिसमें खराब मौसम के कारण पायलट समेत 7 लोगों की मौत।देहरादून में घरों में पानी घुसने की घटनाएँ।

पूर्वोत्तर में बाढ़ और भूस्खलन से 50 से अधिक लोगों की मौत और 15,000 हेक्टेयर फसलों का नुकसान हो गया ।मणिपुर, मिजोरम, और नगालैंड जैसे राज्यों में मानसून की शुरुआत विनाशकारी रही।गुजरात और महाराष्ट्र में चक्रवात बिपरजॉय (2023 में) जैसे पिछले अनुभवों की तरह, 2025 में भी भारी बारिश और तेज हवाओं (40-60 किमी/घंटा) की वजह से तटीय जिलों (वेरावल, पोरबंदर, जामनगर, नवसारी, वलसाड) में भारी नुकसान आपके सामने है.

महाराष्ट्र में भारी बारिश से जनजीवन अस्त-व्यस्त, स्कूल बंद, और मुंबई में रेड अलर्ट। बिहार में बिजली गिरने से 10 लोगों की मौत और 13 से अधिक जिलों में खतरे की चेतावनी।झारखंड में बाढ़ और बारिश से तबाही, मैदानी इलाकों में तालाब जैसे हालात। मोटे अनुमान के हिसाब से वर्ष 2013-2022 के दशक में प्राकृतिक आपदाओं से औसतन 8 अरब अमेरिकी डॉलर (लगभग 66,000 करोड़ रुपये) का नुकसान हुआ, जिसमें बाढ़ का हिस्सा 63 प्रतिशत था. बाढ आती ही भ्रष्टाचार के कारण है. 2023 में यह नुकसान 12 अरब डॉलर तक पहुंचा। 2025 के लिए अभी पूर्ण आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन स्थिति गंभीर है।

 मानसून में विभिन्न स्रोतों के आधार पर, हिमाचल (39), उत्तराखंड (12+), पूर्वोत्तर (50+), और बिहार (10) में कुल मिलाकर 100 से अधिक मौतें दर्ज की गई हैं। यह संख्या और अधिक हो सकती है, क्योंकि पूरे देश के आंकड़े एकत्रित नहीं हैं। अंधाधुंध विकास के नाम पर प्रकृति से छेडछाड के चलते हिमाचल, उत्तराखंड, गुजरात, महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड, राजस्थान, और पूर्वोत्तर राज्यों में भारी बारिश, बाढ़, और भूस्खलन की घटनाएँ हो रहीं हैं, लोग मर रहे हैं।आर्थिक नुकसान हो रहा है लेकिन किसी को कोई फर्क नहीं पडता क्योंकि ये मौसम ही तो खाने- कमाने का और उजागर हो रहे भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने का मौसम है. आपदा राहत के नाम पर भ्रष्टाचार के अलाबा और क्या होता है? देश में कितने पुल गिरे, कितनी सडकें बहीं किसी ने नैतिकता के चलते इस्तीफा दिया? किसी एक इंजीनियर को सजा हुई. मप्र में एक महिला मंत्री पर एक हजार करोड का कमीशन लेने का आरोप लगा, जांच हुई, लेकिन न मंत्री जेल गई और न लोनिवि का कोई अधिकारी. फिर भी भारत महान है.कांग्रेस के जमाने भी महान था और भाजपा के जमाने में भी भारत महान है. आंखें बंद कीजिए और चैन से सोइए. प्रतिकार करने से आखिर लाभ क्या है. अंधेर नगरी, अंधेर राजा, टके सेर भाजी, टके सेर खाजा, की व्यवस्था जिंदाबाद.

@  राकेश अचल

बुधवार, 2 जुलाई 2025

हेमंत खंडेलवाल के प्रदेश अध्यक्ष बनते ही भाजपा कार्यकर्ताओं ने मनाया टीकमगढ़ मुख्यालय पर जश्न

 डॉ वीरेंद्र कुमार, हरिशंकर खटीक व सरोज राजपूत ने भोपाल पहुंचकर दी बधाई

Aapkedwar news –अजय अहिरवार 

टीकमगढ़। आज स्थानीय भाजपा कार्यालय पर भाजपा कार्यकर्ताओं ने जश्न मनाया। भाजपा मीडिया प्रभारी स्वप्निल तिवारी ने बताया कि भारतीय जनता पार्टी द्वारा नवनिर्वाचित प्रदेश अध्यक्ष के रूप में बैतूल पूर्व सांसद व वर्तमान विधायक एवं कुशाभाऊ ठाकरे ट्रस्ट अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल को चुना गया, जिस पर केंद्रीय मंत्री डॉ वीरेंद्र कुमार, भाजपा प्रदेश महामंत्री व जतारा विधायक हरिशंकर खटीक व भाजपा जिलाध्यक्ष श्रीमती सरोज राजपूत ने टीकमगढ़ भाजपा कार्यकर्ताओं की ओर से भोपाल जाकर उन्हें शुभकामनाएं दी। भाजपा कार्यकर्ताओं ने स्थानीय भाजपा कार्यालय पर आतिशबाजी पटाखे फोड़कर , एक दूसरे को मिठाई खिलाकर , बीजेपी जिंदाबाद के नारे लगाते हुए जश्न मनाया। स्वप्निल तिवारी ने बताया कि हेमंत खंडेलवाल की कार्यकुशलता से सभी परिचित हैं , साथ उनकी अगुवाई में संगठनात्मक रूप से प्रदेश अग्रणी बनेगा। भाजपा कार्यालय पर हुए जश्न में वरिष्ठ नेता सुशीला राजपूत, विभा श्रीवास्तव, पूनम अग्रवाल,पुष्पा यादव, रिंकी भदौरा, संध्या सोनी, आशुतोष भट्ट, रीतेश भदौरा, मुन्ना लाल साहू, प्रफुल्ल द्विवेदी, प्रतेंद्र सिंधई, मंडल अध्यक्ष नरेश तिवारी, रविंद्र श्रीवास्तव, राजीव जैन वर्धमान, रोहित वैसाखिया, पंकज प्रजापति, निर्मल नीरज शर्मा, शिवचरण उटमालिया,आदित्य योगी,प्रवीण चौधरी, हिमांशु तिवारी, आकाश अवस्थी, अवधेश तिवारी, जितेंद्र जैकी यादव, प्रियंक चीकू यादव,अजय सिंह गौर, संकल्प जैन, उत्कर्ष श्रीधर आदि बड़ी संख्या में कार्यकर्ता उपस्थित रहे।

पुराने होने की सजा या कोई बडी साजिश

भारत में कहावत है कि साठा सो पाठा, लेकिन दिल्ली समेत देश के तमाम हिस्सों में सरकारें प्रदूषण बढने की आब में 10-15 साल पुराने डीजल और पैट्रोल वाहनों को जबरन सडकों से हटाने पर आमादा है. जबकि पुराने वाहनों से कहीं ज्यादा प्रदूषण दूसरे माध्यमों से फैलाया जा रहा है.

प्रदूषण एक राष्ट्रीय समस्या है लेकिन इसका निदान पुराने वाहनों को सडको से हटाना कदापि नहीं है.दिल्ली में पुराने वाहनों को फ्यूल देने पर लगी रोक मंगलवार से लागू हो गई। दिल्ली के सभी पेट्रोल पंपों पर सुबह से ही ट्रैफिक पुलिस, दिल्ली पुलिस और परिवहन विभाग के अधिकारियों की तैनाती देखी गई। ज्यादातर स्थानों पर पेट्रोल पंपों पर कैमरे लगाने, 10 साल से ज्यादा पुराने डीजल और 15 साल से ज्यादा पुराने पेट्रोल वाहनों को ईंधन से मनाही वाले बोर्ड भी लगे नजर आए। पहले दिन कम संख्या में पुराने वाहन पेट्रोल भराने के लिए पहुंचे, जिनके खिलाफ कार्रवाई की गई। जानें पहले दिन कितने वाहन कैमरे में हुए कैद?

भारत में कुल पंजीकृत डीजल और पेट्रोल वाहनों की सटीक संख्या और उनमें से 15 साल पुराने वाहनों की संख्या के बारे में नवीनतम आधिकारिक आंकड़े राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं हैं, क्योंकि यह डेटा विभिन्न राज्यों और क्षेत्रों के परिवहन विभागों द्वारा अलग-अलग रखा जाता है. हालांकि भारत में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2021 तक देश में कुल पंजीकृत वाहनों की संख्या लगभग 30 करोड़ थी, जिसमें दोपहिया, चारपहिया, वाणिज्यिक वाहन, और अन्य श्रेणियां शामिल हैं। इनमें डीजल और पेट्रोल वाहनों का एक बड़ा हिस्सा है, दिल्ली जैसे क्षेत्रों में 2025 तक लगभग 62 लाख वाहन "एंड ऑफ लाइफ"  श्रेणी में आते हैं, जिनमें 41 लाख दोपहिया और 18 लाख चारपहिया वाहन शामिल हैं। इनमें से अधिकांश पेट्रोल और डीजल वाहन हैं।

 हरियाणा, उत्तर प्रदेश, और राजस्थान में भी एंड आफ लाइफ वाहनों की संख्या क्रमशः 27.5 लाख, 12.4 लाख, और 6.1 लाख बताई गई है।15 साल पुराने पेट्रोल और 10 साल पुराने डीजल वाहनों को "एंड ऑफ लाइफ" माना जाता है। 2025 तक, दिल्ली में लगभग 55-62 लाख वाहन इस श्रेणी में आते हैं, जिनमें 66 फीसदी दोपहिया और 54 फीसदी चारपहिया वाहन शामिल हैं।राष्ट्रीय स्तर पर, 15 साल पुराने वाहनों की संख्या का सटीक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, लेकिन अनुमान के आधार पर, देश में कुल पंजीकृत वाहनों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा (लगभग 15-20 फीसदी है.15 साल से अधिक पुराना हो सकता है। यह अनुमान क्षेत्रीय डेटा और स्क्रैपेज नीति के तहत डी-रजिस्टर्ड वाहनों की संख्या पर आधारित है।

उदाहरण के लिए अकेले गाजियाबाद में 2.72 लाख वाहन 10-15 साल की आयु सीमा पार कर चुके हैं, और 4.62 लाख वाहन स्क्रैपेज नीति के अंतर्गत आते हैं।राष्ट्रीय वाहन स्क्रैपेज नीति (2021)के तहत, 20 साल पुरानी निजी कारों और 15 साल पुरानी वाणिज्यिक गाड़ियों को डी-रजिस्टर करने का प्रावधान है। दिल्ली-एनसीआर में, सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी के निर्देशों के अनुसार, 10 साल पुराने डीजल और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों पर प्रतिबंध है।दिल्ली में, 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों की संख्या लगभग 38 लाख और 10-15 साल पुराने डीजल वाहनों की संख्या 1.5 लाख है।इन नियमों का उद्देश्य प्रदूषण को कम करना है, और पुराने वाहनों को या तो स्क्रैप करना पड़ता है या उन्हें इलेक्ट्रिक वाहनों में परिवर्तित करना पड़ता है।

परिवहन विभाग के एक अधिकारी के अनुसार, पहले दिन कड़ी निगरानी, ​​कड़ी सुरक्षा और तमाम एजेंसी की कड़ी निगेहबानी के बीच 24 पुराने वाहनों को जब्त किया गया। पहले दिन कुल 98 वाहन कैमरे में कैद हुए। इनमें से 80 को नोटिस जारी किया गया। इनमें से 45 को परिवहन विभाग की ओर से जबकि 34 को दिल्ली पुलिस की ओर से नोटिस जारी किया गया। एक वाहन को एमसीडी ने नोटिस जारी किया।

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) की ओर से जारी निर्देशों के तहत मंगलवार से समूची दिल्ली के पेट्रोल पंपों को ओवर एज वाहनों को फ्यूल नहीं देने के लिए कहा गया है। पुलिस के अनुसार, सुबह 6 बजे से दोपहर 1 बजे तक अभियान के तहत 24 वाहनों को जब्त किए गए.

विशेष पुलिस आयुक्त (यातायात) अजय चौधरी ने पीटीआई को बताया कि इस अभियान का मुख्य उद्देश्य दिल्ली के पर्यावरण को बेहतर बनाना और प्रदूषण को कम करना है

सवाल ये है कि जिस देश में आम आदमी पूरी जिंदगी में मुश्किल से एक घर और एक कार खरीद पाता है, वहां राष्ट्रीय वाहन स्क्रेप नीति का औचित्य क्या है? ऐसी नीतियाँ संपन्न देशों के लिए तो ठीक हैं लेकिन भारत के लिए नहीं. ऐसी नीतियाँ विश्व बाजार के दबाव में बनाई जाती हैं ताकि वाहन उत्पादको को फायदा पहुंचाया जा सके.

आपको बता दें कि भारत में  2023-24 में, भारत में कुल यात्री वाहनों (पैसेंजर व्हीकल्स) का उत्पादन लगभग 50 लाख यूनिट्स के आसपास रहा, जिसमें कारें, एसयूवी, और अन्य यात्री वाहन शामिल हैं.2025 के लिए, कोई सटीक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, लेकिन उद्योग की वृद्धि और इलेक्ट्रिक वाहनों  की बढ़ती मांग को देखते हुए, उत्पादन में वृद्धि की उम्मीद है। विशेष रूप से, इलेक्ट्रिक कारों की बिक्री में 2025 में 40 फीसदी की वृद्धि होने का अनुमान है, जिसमें कुल बिक्री 1,38,606 यूनिट्स तक पहुंचने की उम्मीद है। यह उत्पादन क्षमता में विस्तार और नए मॉडल्स की लॉन्चिंग, जैसे मारुति सुजुकी ई-विटारा, टाटा हैरियर ईवीऔर  एमजी की नई ईवीएस के कारण संभव है।पुराने वाहनों को इन्ही के लिए जबरन हटाया जा रहा है.

मैने 2005 में मारुति -800खरीदी  थी वो भी ऋण लेकर. मेरी कार मुश्किल से 10हजार किमी चली. उससे कोई प्रदूषण नहीं फैलता लेकिन अब उसे सडक पर नहीं ला सकते. मेरे जैसे असंख्य भारतीय हैं जो दूसरा वाहन नहीं खरीद सकते. उनके लिए स्क्रेप नीति जानलेवा है. सरकार को प्रदूषण कम करने के दूसरे उपाय करना चाहिए न कि जबरन पुराने वाहनों को कबाड में बदलना चाहिए.इस विषय में तमाम राजनीतिक दल मौन हैं. कल को सरकार पुराने वाहनों की तरह उम्रदराज लोगों से भी सडक पर न आने की नीति बना सकती है. कहते हैं कि नाच न आवे, आंगन टेढा. सरकार प्रदूषण फैलाने वाले कल-कारखाने तो बंद करा नहीं पाई लेकिन गरीब वाहन चालकों के कान ऐंठ रही है. भारत में ऐसी नीतियों का विरोध होना चाहिए. माननीय अदालत को स्वतः संज्ञान लेकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दबाव में बनाई गई राष्ट्रीय स्क्रेप नीति को बदलना चाहिए.

@  राकेश अचल

मंगलवार, 1 जुलाई 2025

भाजपा का नया शत्रु नमाजवाद

 

मै भाजपा का अहसानमंद हूँ, क्योंकि ये दल मुझे रोजाना लिखने के लिए नये शब्द और मुद्दे मुहैया कराने में घणीं मदद करती है. जून के आखरी दिन पता चला कि भाजपा केवल संविधान की प्रस्तावना में दर्ज धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद शब्द से ही परेशान नहीं है बल्कि उसकी परेशानी समाजवादियों के अल्पसंख्यक प्रेम से भी है. भाजपा ने समाजवादियों के इस अल्पसंख्यक प्रेम को नमाजवाद का नाम दिया है.

भाजपा की घबडाहट दर असल वक्फ बोर्ड कानून को लेकर है. एक तरफ तो ये कानून सुप्रीम कोर्ट के पाले में है, दूसरी तरफ बिहार में ईंडिया गठबंधन ने इस कानून को चुनावी मूद्दा बनाकर  समस्या खडी कर दी है. भाजपा के विद्वान सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने आईएनडीआईए गठबंधन पर निशाना साधा और राजद प्रमुख तेजस्वी यादव के वक्फ संशोधन अधिनियम पर हालिया बयान पर अपनी प्रतिक्रिया दी.पंडित जी ने कहा कि बाबा साहब के संविधान का मजाक बनाया जा रहा है. राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश का समाजवाद यही था क्या. बीजेपी और जेडीयू समाजवाद के साथ खड़े हैं. राजद और सपा जैसे दल ' नमाजवाद ' के साथ खड़े हैं. इनकी सरकार आई तो शरिया लागू कर देंगे. ये लोग आतंकियों को बचाने वाले हैं.

भाजपा के मुँह में राम और बगल में छुरी रहती है. एक तरफ भाजपा अल्पसंख्यकों की भलाई के लिए तीन तलाक और वक्फ बोर्ड कानून लाती है और दूसरी तरफ  मुस्लिम समाज का पक्ष लेने वालों पर हमलावर रहती है. पंडित सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि कांग्रेस की सरकार ने शरीया को संविधान से ऊपर कर दिया था. इससे ये पिछड़े दलित वंचित और शोषित के आरक्षण को खाना चाहते हैं. अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय औऔर जामिया मिलिया में अजा, अजजा और पिछडा वर्ग का आरक्षण खत्म किया. जम्मू कश्मीर में धारा 370 लगाकर सभी का आरक्षण खत्म कर दिया था. पिछले दरवाजे से आरक्षण में सेंध लगाने का काम ये पार्टियां कर रही हैं. बंगाल में तो ओबीसी में मुस्लिम जातियां घुसा दी. कर्नाटक में भी ओबीसी आरक्षण में से मुस्लिम को दिया जा रहा है. ये मुल्ला मौलवी का नमाजवाद है.

सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि वक्फ को लेकर तेजस्वी यादव बताएं संसद में लालू जी का बयान देख लें. वक्फ की जमीन पर कितने अस्पताल, कॉलेज, इंस्टीट्यूट हैं बताएं. ये तराजू पर तोलते हैं कौन सी माइनॉरिटी है. उसके हिसाब से बात करते हैं. यमुना नगर में गुरुद्वारे पर वक्फ बोर्ड ने दावा कर दिया तब कोई नहीं बोला.

 त्रिवेदी ने विपक्ष पर सीधा हमला करते हुए कहा कि वक्फ संशोधन अधिनियम अब संसद की ओर से पारित और राष्ट्रपति की तरफ से अनुमोदित कानून है. यह अब सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है और इलाहाबाद व कलकत्ता हाईकोर्ट के कई फैसले इस कानून के समर्थन में हैं.

नमाजवाद से बिहार के भाजपाजन भी आतंकित हैं. उपमुख्यमंत्री विजय सिन्हा ने कहा कि यह तुष्टीकरण की पराकाष्ठा है और लोकतांत्रिक परंपरा को चुनौती देने का अनुचित प्रयास है।बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा गठबंधन की पतली हालत से दुखी विजय सिन्हा ने कहा कि वोट बैंक के नाम पर परिवार के सभी सदस्य एक मंच पर आ गए हैं। जबकि यह विधेयक देश की संसद द्वारा बहुप्रतीक्षित मांग और सुप्रीम कोर्ट के बार-बार निर्देश पर ही पारित किया गया है। 

अब सवाल ये है कि क्या भाजपा इंडिया गठबंधन के नमाजवाद से बिहार में मुकाबला कर पाएगी. नमाजवाद केवल आरजेडी और कांग्रेस का ही चुनावी हथियार नहीं है बल्कि दूसरी पार्टियों का भी है. नमाजवाद का विरोध कर भाजपा अपनी सहयोगु जेडीयू को उलझन में नहीं डाल देगी? मुसलमानो ने आपरेशन सिंदूर के दौरान भाजपा सरकार का बिना शर्त समर्थन किया था लेकिन अब फिर भाजपा मुसलमानों के साथ वो ही व्यवहार करने लगी है जो इजराइल फिलिस्तीनियों के साथ करता है.

धर्मनिरपेक्षताऔर समाजवाद से आजिज भाजपा अब नये नमाजवाद से भी हलकान है. नमाजवाद कल को देसी से विदेशी मुद्दा भी बन सकता है. भाजपा की मुस्लिम विरोधी छवि को ये नमाजवाद और गहरा कर सकता है, क्योंकि भाजपा के पास समाजवाद, गांधीवाद और नमाजवाद से निबटने के लिए ले देकर एकात्मता मानववाद है जो पिछले आठ दशक में भाजपा कार्यकर्ताओं को छोड किसी के गले नहीं उतरा.

@ राकेश अचल

सोमवार, 30 जून 2025

कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी पर एफआईआर के विरोध में कांग्रेस का आंदोलन 8 जुलाई को

 

ग्वालियर। ग्वालियर अंचल के अशोकनगर के मुंगावली कस्बे में राजनैतिक द्वेष के चलते प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी पर एफआईआर करने के विरोध में प्रदेश कांग्रेस का प्रदेश व्यापी धरना आंदोलन 8 जुलाई को अशोक नगर में होगा। वहीं दो जुलाई को महात्मा गांधी की प्रतिमा के समक्ष शाम को चार बजे से दो घंटे का मौन सत्याग्रह करेगी। इसकी तैयारियां कांग्रेस ने शुरू कर दी है। 

उक्त जानकारी आज सोमवार को राज्य सभा सांसद अशोक सिंह, शहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष डा देवेन्द्र शर्मा ने पत्रकारों को दी। उन्होंने बताया कि गत 25 जून को प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी जब ओरछा के दौरे पर थे तभी मुंगावली थाने के ग्राम मुडरा निवासी गजराज लोधी और रघुराज लोधी उनसे मिले और अपने साथ हुई आपबीती सुनाई। इनकी आपबीती सुनकर प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने दोनों का वीडियो रिकार्ड कर सार्वजनिक कर दिया। जिससे पीडितों को न्याय मिल सके और बात प्रशासन तक पहुंच सके। इसी के अगले दिन 26 जून को जिला प्रशासन ने पीडितों को बुलाकर उन्हें डरा धमका कर शपथ पत्र दिलवाया और आरोप लगवाया कि मानव मल मूत्र की बात के लिए उन्हें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने उकसाया था। 

इसी आधार पर मुंगावली थाना पुलिस ने एक एफआईआर दर्ज कर ली। जिसमें पटवारी को षडयंत्रकर्ता, , धर्म जाति के आधार पर समाज के द्वेष फैलाने , सार्वजनिक उपद्रव भडकाने वाला बयान बताया। 

कांग्रेस सांसद अशोक सिंह सहित अन्य कांग्रेस पदाधिकारियों ने सरकार से मांग की है कि 27 जून को दर्ज झूठी एफआईआर तत्काल निरस्त की जाए। जिला कलेक्टर और एसपी अशोकनगर की भूमिका की स्वतंत्र न्यायिक जांच हो, और पीडितों को न्याय दिलाया जाए। साथ ही सरपंच पुत्र और उसके साथियों के खिलाफ कडी कार्रवाई की जाए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी ऐसे अन्याय करने वालों के खिलाफ हमेशा खडी रहेगी। और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करती रहेगी। पत्रकार वार्ता में ग्रामीण जिलाध्यक्ष प्रभुदयाल जौहरे, विधायक ग्रामीण साहब सिंह गुर्जर, प्रदेश महासचिव सुनील शर्मा, प्रदेश प्रवक्ता धर्मेन्द्र शर्मा, आदि मौजूद थे। 

हिंदी,चीनी भाई -भाई तो हिंदी, मराठी भाई- भाई क्यों नहीं

हिंदी चीनी भाई भाई" हो गये थे लेकिन आज 65साल बाद भी न  मराठी और न तमिल, हिदी भाई -भाई हो पाए. महाराष्ट्र और तमिलनाडु में हिंदी का विरोध आज भी न सिर्फ जारी है बल्कि इस पर बाकायदा, बेमुलाहिजा सियासत भी हो रही है.हिंदी, चीनी भाई-भाई का  नारा 1950 के दशक में भारत और चीन के बीच मजबूत दोस्ती और सहयोग के संबंधों को दर्शाने के लिए इस्तेमाल किया गया था। इस नारे का मतलब था कि दोनों देश, भारत और चीन, एक दूसरे के साथ भाईचारे और सद्भावना के साथ रहेंगे। हालांकि, 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद, यह नारा अपनी प्रासंगिकता खो बैठा। 

महाराष्ट्र के स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने के फैसले ने राज्य की राजनीति को तेज कर दिया है। बाला साहेब ठाकरे के सामने ही अलग हो गए राज और उद्दव ठाकरे इस मुद्दे पर एक साथ होकर महाराष्ट्र की भाजपा सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं। दोनों ही नेताओं से अपनी-अपनी पार्टियों का नेतृत्व करते हुए फड़णवीस सरकार के खिलाफ विरोध मार्च निकाला है। इस प्रदर्शन पर महाराष्ट्र सरकार में मंत्री नितेश राणे ने विपक्ष पर निशाना साधा है।

नितेश राणे ने महाराष्ट्र् में मराठी भाषा की अनिवार्यता और उसकी जगह पर किसी के न आने को लेकर भी अपनी राय रखी। उन्होंने कहा, "हमने इतनी जोर से कहा है.. इतनी बार चिल्ला है के महाराष्ट्र में हिंदी अनिवार्य नहीं है.. अब क्या हम इस बात को अपनी छाती पर लिखकर घूमना चालू कर दें? 

ठाकरे बंधुओं पर निशाना साधते हुए राणे ने कहा कि यह लोग केवल और केवल भाषा के नाम पर हिंदुओं को विभाजित करना चाहते हैं। मंत्री नीतेश राणे ने ठाकरे परिवार पर निशाना साधते हुए कहा, "जावेद अख्तर, आमिर खान और राहुल गांधी हिंदी में बात करते हैं उनके हिंदी थोपने से किसी को कोई परेशानी नहीं है? उन्हें मराठी बोलने के लिए कहिए। उन्हें (ठाकरे बंधुओं) को कहिए कि वे मोहम्मद अली रोड या बेहरामपाड़ा से अपना विरोध प्रदर्शन करने की कोशिश करें। अगर उन्हें वाकई मराठी से प्यार है, तो कल से अजान मराठी में पढ़वाएं.. तब हम मानेंगे कि उन्हें मराठी भाषा का सम्मान है।"

 दूसरी तरफ महाराष्ट्र सरकार द्वारा हिंदी को अनिवार्य करने के फैसले को लेकर यूटर्न लेने उद्धव ठाकरे ने तंज कसा है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र सरकार मराठी मानुष की शक्ति के आगे हार गई है।महाराष्ट्र सरकार के हिंदी अनिवार्य करने के फैसले को वापस लेने के बाद शिवसेना यूबीटी के नेता उद्धव ठाकरे ने फडणवीस सरकार पर तंज कसा है। उन्होंने रविवार को कहा कि महाराष्ट्र सरकार राज्य के स्कूलों में पहली से पांचवी तक की कक्षाओं में तीन भाषा नीति के तहत हिंदी अनिवार्य करने के फैसले को वापस ले लिया है। मतलब सरकार ने मराठी मानुष के सामने हार मान ली है। दूसरी तरफ उद्धव ठाकरे के साथ में कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होने वाले उनके चचेरे भाई और मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने भी इस सफलता का श्रेय मराठी मानुष को ही दिया।

महाराष्ट्र सरकार में मंत्री नीतेश राणे ने ठाकरे बंधुओं के राज्य में हिंदी अनिवार्य करने के विरोध में आने को लेकर तंज कसा है। मंत्री ने कहा कि राहुल गांधी, जावेद अख्तर और आमिर खाने के हिंदी थोपने से किसी को दिक्कत क्यों नहीं है?

 

तमिलनाडु में भी हिंदी का सनातन विरोध है. तमिलनाडु के हिंदी विरोधी तर्क दे रहे हैं कि कर्नाटक में हिंदी अनिवार्य किए जाने से वहाँ हाईस्कूल परीक्षा में 90हजार बच्चे फेल हो गये.तमिलनाडु में हिंदी का विरोध 1937  से अनवरत चल रहा है.

हाल के वर्षों में, विशेष रूप से 2025 में, तमिलनाडु में हिंदी विरोध फिर से उभरा है, मुख्य रूप से राष्ट्रीय शिक्षा नीति के त्रिभाषा फॉर्मूले के कारण, जिसे डीएमके सरकार हिंदी थोपने की कोशिश मानती है।डीएमके नेता और मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि नयी शिक्षा नीति के जरिए हिंदी और संस्कृत को थोपा जा रहा है, जो तमिल भाषा और संस्कृति के लिए खतरा है।

आपको याद होगा कि फरवरी 2025 में, चेन्नई में रेलवे स्टेशनों और डाकघरों के साइनबोर्ड पर हिंदी शब्दों पर कालिख पोतने की घटनाएं हुईं।अयप्पक्कम हाउसिंग बोर्ड क्षेत्र में लोगों ने रंगोली बनाकर "तमिल का स्वागत, हिंदी थोपना बंद करो" का संदेश दिया। डीएमके और अन्य द्रविड़ दल हिंदी विरोध को तमिल पहचान और स्वायत्तता से जोड़ते हैं।स्टालिन और उनके बेटे उदयनिधि स्टालिन ने चेतावनी दी है कि हिंदी का बढ़ता प्रभाव तमिल भाषा को नष्ट कर सकता है, जैसा कि उत्तर भारत में अवधी और भोजपुरी जैसी भाषाओं के साथ हुआ।तमिलनाडु की राजनीति में हिंदी विरोध को द्रविड़ आंदोलन की विरासत के रूप में देखा जाता है, जिसने डीएमके और एआईएडीएमके को सत्ता में लाने में मदद की। 

 तमिलनाडु के लोग तमिल भाषा को अपनी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का अभिन्न हिस्सा मानते हैं। हिंदी को अनिवार्य बनाने को तमिल संस्कृति पर हमले के रूप में देखा जाता है। तमिलनाडु में तमिल और अंग्रेजी को व्यापार और शिक्षा के लिए पर्याप्त माना जाता है। हिंदी सीखने को आर्थिक या करियर के लिए आवश्यक नहीं समझा जाता। हिंदी विरोध के साथ-साथ, परिसीमन को लेकर भी चिंता है, क्योंकि इससे दक्षिण भारत के राज्यों की लोकसभा सीटें कम हो सकती हैं, जिससे उनकी राजनीतिक आवाज कमजोर हो सकती है।

मजे की बात ये है कि विरोध के बावजूद, तमिलनाडु में हिंदी सीखने की रुचि बढ़ रही है। दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के अनुसार, 2022 में 2.86 लाख लोग हिंदी की परीक्षा में शामिल हुए, जिनमें 80 फीसदी स्कूली छात्र थे।तमिल फिल्मों को हिंदी में डब करने की अनुमति और हिंदी सीखने की बढ़ती मांग से पता चलता है कि आम लोगों में हिंदी के प्रति विरोध उतना तीव्र नहीं है, जितना राजनीतिक स्तर पर दिखाया जाता है।

@  राकेश अचल

रविवार, 29 जून 2025

अनुसूचित जाति जनजाति बालक एवं कन्या छात्रावास भवन बनकर तैयार , कब होगा शुरू

छात्रावास को शीघ्र शुरू किया जाए : डॉ अग्र 

ग्वालियर 29 जून । ग्वालियर से भारत सरकार के पूर्व केंद्रीय मंत्री भारत सरकार वर्तमान में मध्य प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के प्रयासों से केंद्र सरकार की ओर से 500 सीटर कन्या और बालक छात्रावास स्वीकृत कराया भवन बनकर तैयार हो गया। इस छात्रावास का नाम बाबू जगजीवन राम छात्रावास के नाम से ग्वालियर में जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय के पीछे हुरावली में बनकर तैयार है लेकिन विभाग की लापरवाही के कारण आज तक शुरू नहीं किया गया है जिससे 500 अनुसूचित जाति जनजाति के छात्र-छात्राओं का नुकसान हो रहा है यह छात्रावास ढाई सौ सीटर कन्या और ढाई सौ सीटर बालक छात्रावास के नाम से स्वीकृत है इस छात्रावास का नाम बाबू जगजीवन राम छात्रावास है ।

 विभाग के अधिकारियों ने आज तक छात्रावास में अधीक्षक नियुक्त नहीं किए हैं इसलिए छात्र-छात्राओं के प्रवेश भी नहीं हो रहे हैं दलित आदिवासी विरोधी अधिकारी इन वर्गों के छात्र-छात्राओं को शिक्षा से वंचित करने का और शासन से मिलने वाली सुविधाओं से वंचित करने के आरोप में दोषी हैं ऐसे अधिकारियों के विरुद्ध कठोर से कठोर कार्रवाई होना चाहिए दलित आदिवासी महापंचायत (दाम) के संस्थापक संरक्षक तथा आदिम जाति कल्याण विभाग छात्रावास आश्रम शिक्षक अधीक्षक संघ (कसस) डॉ जवर सिंह अग्र ने शासन प्रशासन से इस छात्रावास में  अधीक्षक नियुक्ति करते हुए छात्र-छात्राओं के प्रवेश शुरू करने की मांग दलित आदिवासी महापंचायत शासन प्रशासन और मुख्यमंत्री से करती है यज्ञात रहे कि सत्र शुरू है शीघ्र ही अनुसूचित जाति जनजाति के पात्र छात्र-छात्राओं के प्रवेश शुरू किए जाएं गरीब छात्र-छात्राएं किराए से कमरा लेकर रहने के लिए मजबूर हैं और उसके बाद विभाग आगमन देता है यदि 576 छात्र छात्राओं के प्रवेश छात्रावास में हो जाएंगे तो निशुल्क शिक्षा आभासी व्यवस्था निशुल्क भोजन की सुविधा छात्र-छात्राओं को प्राप्त होगी।


मप्र अजब है और यहाँ की सरकार भी

हमारे यहां कहावत है कि कोई अपनी जंघा खुद नहीं दिखाता या कोई अपनी मां को भट्टी नहीं कहता. लेकिन मप्र के संदर्भ में ये दोनों कहावतें लागू नहीं होतीं. ये बात हाल की कुछ घटनाओं से प्रमाणित होती है.

मप्र से केंद्र में कृषि मंत्री हैं श्री शिवराज सिंह चौहान. दो दशक तक मुख्यमंत्री भी रहे किंतु आज तक संविधान को नहीं समझ पाए. और एक संवैधानिक पद पर होते हुए संविधान की प्रस्तावना से धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद शब्द हटाने की संघ के दत्तात्रय होंसबोले की मांग का समर्थन कर बैठे. संघ में अपना महत्व जो बढाना है, अन्यथा उनकी हरकत संविधान की अवमानना है. शिवराज ने मुख्यमंत्री रहते दो दशक में ऐसी मांग नही की.

अब आइये मप्र में सुशासन पर. मप्र में सुशासन की स्थिति ये है कि यहाँ मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव के कारकेट में शामिल 19 वाहनों में पेट्रोल के बजाय पानी भर दिया जाता है, और किसी को शर्म नही आती. बाद में विभागीय मंत्री पूरे प्रदेश के पेट्रोल पंपो की जांच के आदेश दे देते हैं. आप कल्पना कर सकते हैं कि मप्र में मिलावट का स्तर कहाँ से कहाँ पहुंच गया है?

इसी मप्र में देवास इंदौर हाईवे पर 36 घंटे का जाम तगा रहता है, 3 लोग  इलाज न मिने से मर जाते हैं, लेकिन कोई जिम्मेदारी लैने को तैयार नहीं होता.किसी को शर्म नहीं आती, अन्यथा कोई तो इस घोर लापरवाही क लिए क्षमा मांगता. मप्र में ही राजधानी भोपाल में लोनिवि के इजीनियर 90डिग्री का आर ओ वी बना देते है और  सरकार बेशर्मी से कहती है नया पुल बनवा देंगे. मामला उजागर होने के एक पखवाडे बाद मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव को दोषियों पर कार्रवाई की सुध आती है.

मप्र की सरकार इस समय विकास के नाम पर केवल धाम बनाने में जुट जाती है. मुख्यमंत्री अगडे, पिछडे सभी को खुश करने के लिए प्रतिदिन नये धाम बनाने की घोषणाएं कर रही है. मप्र के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव अभी तक ये यकीन नहीं कर पाए कि वे स्वतंत्र मुख्यमंत्री हैं. उनका पूरा समय सिंधिया, तोमर, चौहान और कैलास विजयवर्गीय को साधने में ही खर्च हो रहा है.

आपको बता दें कि मध्य प्रदेश पर कर्ज का स्तर चिंताजनक है। 2025 तक, राज्य पर 4.10 लाख करोड़ रुपये का कर्ज बताया गया है, और 18 फरवरी 2025 को 5,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त कर्ज लेने की योजना है।सीएजी की रिपोर्ट में कर्ज की स्थिति पर चिंता जताई गई है, जिसमें कर्ज चुकाने के लिए और कर्ज लेने की प्रवृत्ति उजागर हुई है।2021-22 में कर्ज 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक था, और ब्याज भुगतान राजस्व प्राप्तियों के 10% से अधिक रहा।गरीबी और सामाजिक सूचकांक:2018-19 के आर्थिक सर्वेक्षण में मध्य प्रदेश को सामाजिक-आर्थिक विकास में अन्य राज्यों की तुलना में पिछड़ा बताया गया। गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों का अनुपात 31.65% था, जो राष्ट्रीय औसत 21.92% से अधिक है। और तो और शिशु मृत्यु दर में मप्र पहले स्थान  पर है. यहाँ एक हजार में से 40 बच्चे अपना पहला जन्मदिन नहीं मना पाते. क्योंकि प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में शिशुरोग विशेषज्ञों के 70  फीसदी पद खाली है.

मेरे पांच दशक के कार्यानुभव में ऐसा लचर मुख्यमंत्री कोई दूसरा नहीं रहा. लेकिन ये राजनीती का नया दौर है. इसमें सब कुछ चलता है.

@  राकेश अचल

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बेशक बेबाकी से झूठ बोलती है हमारी सरकार

  भारतीय संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष और समाजवाद जैसे शब्दों को बर्दास्त न कर पाने वाली सरकार यदि कहे कि- भारत सरकार आस्था और धर्म...