ग्वालियर। जो मनुष्य अपने मन को एकांत और वश में करते हुए, भगवान का जप और तप करता है उसका जीवन अवश्य ही सफल हो जाता है। जो इन चीजों से वंचित रह जाता है उसके पास अंत में पछताने के अलावा कुछ नहीं रहता है। मनुष्य को अहंकारी नहीं बल्कि संस्कारी बनना चाहिए। यह बात मुनिश्री विहर्ष सागर महाराज ने सिकदर कंपू स्थित दिगंबर शांतिनाथ जैन मंदिर में मंगल प्रवेश के दौरान धर्मसभा को संबोधित करते हुए कही।
मुनिश्री ने कहा कि त्यागी को रोग वैराग्य (सन्यास) लेने के लिए होता है। जबकि भोगी को रोग रोने के लिए होते हैं अर्थात शोक करने के लिए होते हैं। जो व्यक्ति स्वयं को संभालता है वहीं दूसरी को भी संभाल सकता है। जो स्वयं तैरना नहीं सीखा वह दूसरों को तैरना क्या सिखाएगा। मनुष्य को अपने जीवन में अहंकारी नहीं बल्कि संस्कारी बनना चाहिए। क्योंकि जिस प्रकार से अहंकार जीवन का नाश करके उसे सड़क पर लाकर खड़ा कर देता है। इसके विपरीत मनुष्य संस्कारी बनकर अपने जीवन में धर्म-दान-पुण्य का काम करता है तो उसके जीवन का कल्याण होता है। अधिकांशतः देखने में आता है कि मनुष्य किसी काम को बिना सोचे समझे ही करने के लिए चल पड़ता है, इससे उसको नुकसान भी उठाना पड़ता है। इस अवसर पर पूर्व मंत्री नारायण सिंह कुशवाह, लालमणि बरैया, राजेश जैन, कोमलचंद्र जैन, धर्मेंद्र जैन, महेन्द्र जैन आदि उपस्थित थे।
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