आयुर्वेद अपनाएं - स्‍वस्थ जीवन पाएं (विशेष समाचार)

गुना | व्याधिक्षमत्व (इम्‍युनिटी) वृद्धि में आयुर्वेद की आवश्यकता साधारण शब्दों में व्याधिक्षमत्व का अर्थ है रोग प्रतिरोधक क्षमता। यानि शरीर की वह क्षमता जो रोग की उत्पत्ति का विरोध करती है। आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रंथ चरक संहिता के मतानुसार सभी के शरीर एक समान व्याधिक्षमत्व (रोग प्रतिरोधक क्षमता) वाले नहीं होते। परंतु कुछ विशेष उपायों द्वारा रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि संभव है। क्योंकि यह बल या क्षमता या तो सहज (Innate) होती है या तो युक्तिकृत (Aqired) होती है। यदि व्यक्ति व्याधिक्षमत्व मजबूत होगा तो वह व्यक्ति कम बीमार पड़ेगा। यदि रोग हो भी जाए तो वह कमजोर बल व लक्षणों वाला होगा तथा उसे शरीर की इस प्रतिरोधक क्षमता के सामने हारना पड़ेगा।


रोग प्रतिरोधक क्षमता वृद्धि के सामान्य उपाय
     हमारे दैनिक जीवन में हम जो भी करते हैं, चाहे खाया जाने वाला भोजन, दैनिक क्रियाकलाप (दिनचर्या) ऋतुओं के अनुसार व्यवहार (त्रतुचर्या), व्यायाम एवं योगासन (शारीरिक शक्ति हेतु), प्राणयाम (प्राणशक्ति हेतु), योग एवं ध्यान (मानसिक शक्ति हेतु), सदवृत्त सदाचार (सामाजि सुदृढ़ता हेतु) साथ ही आयुर्वेद मतानुसार रसायन सेवन पंचकर्म आदि सभी का सही स्वरूप, समय एवं मात्रा में अनुपालन ही मूलतः व्याधिक्षमत्व का आधार हैं।


आहार (डाइट)
    हमारा आहार संपूर्ण संतुलित शारीरिक स्थिति के अनुसार 6 रसों से युक्त हों। इसमें अनाज, फलियों, सब्जी, फल तथा समुचित मात्रा में हल्दी, जीरा धनियां, लहसुन, अहरव, दालचीनी, मेंथी, लौंग, कालीमिर्च, सौंफ, आदि मसालों, घी दूध से युक्त हो तथा नमक, चीनी, वसा, मैदा आदि कम मात्रा में हों। साथ ही भोजन ग्रहण के नियमों जैसे गर्म भोजन मात्रायुक्त, पूर्व आहार पचने के बाद भोजन करना इत्यादि, विरूद्ध भोजन, निषिद्ध भोजन (सड़ा, गला इत्यादि) नहीं लेना चाहिए। आदि नियमों का पालन आवश्यक है।
विहार (लाइफ स्‍टायल)
    शारीरिक क्षमता बढ़ाने हेतु प्रतिदिन कम से कम 30 मिनिट व्यायाम करें या 45 मिनट पैदल चलें, 15-20 मिनट सूर्य की किरणों का सेवन, योगासनों का अभ्यास, 8 घंटे की नियमित निधि नींद लें तथा एक साथ अधिक समय बैठे न रहें।
मनोभाव (मेंटल कंडीशन) 
    मानसिक क्षमता बढ़ाने हेतु योग, ध्यान (सप्ताह में कम से कम 3 दिन रात्रि को या प्रातःकाल में) को जीवन का हिस्सा बनाये। मानसिक स्वस्थ्य हेतु प्रसन्नता, आशावादिता, शांति, ईमानदारी, भावनात्मक स्थिरता आदि गुणें का अभ्यास करें। हमेशा जल्दबाजी, चिड़चिड़ापन, शंका, गुस्सा न करें। व्यक्तिगत स्वच्छता, परविशगत स्वच्छता का ध्यान रखते हुए अपनी दिनचर्या स्थिर रखने का अभ्यास करें। साथ ही प्राणशक्तिवर्धन हेतु प्राणायाम का अभ्यास करें।


सदाचार या सदवृत
    कुछ ऐसे उपाय जो मानसिक तुष्टि देते हैं - जैसे परोपकार, ईश्वर आस्था, ईमानदार, कृतज्ञता, अहिंसा, शांति, दया, प्रीति, सत्य भाषण आदि भावों के क्रियाकलाप का अभ्यास।


रसायन
    आयुर्वेद में विभिन्न प्रकार के रसायन का वर्णन है परंतु वर्तमान में सर्वविदित रसायन च्यवनप्राश है इसका नियमित सेवन करें।


सामान्य नियम अनुपालन
    स्वस्थ्य रहने हेतु यह आवश्यक है कि हम आये हुए वेगों (मल,मूत्र, छींक आदि) को न रोकें। अपने शरीर मुख, दांत, नाक, वस्त्रादि स्वच्छ रखें। स्वास्थ्य रक्षण द्वारा व्याधिक्षमत्व का अर्जन एवं वृद्धि एक सतत (लगातार) अभ्यास करने वाली प्रक्रिया हैं। आहार विहार आदि जीवनशैली में किसी प्रकार की गड़वड़ी होने से ही रोग की आशंका उत्पन्न होती है। यदि हमारा शरीर व्याधिक्षम है तो कोई भी रोग हमें नहीं होगा या अत्यधिक तीव्रता वाला आकस्मिक रोग भी कम लक्षणों वाला होगा अथवा होकर शीघ्र ही ठीक हो जायगा। अतः आयुर्वेद अपनाइए स्वस्थ जीवन पाइए।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें