नई दिल्ली। प्रधानमंत्री के आह्वान पर 'पांच अप्रैल को रात्रि नौ बजे नौ मिनट के लिए' घरों के बाहर दीयों का प्रकाश फैलाने को देश उसी तरह आतुर हो उठा है, मानो दिवाली मनने जा रही हो। प्रधानमंत्री का एक आह्वान 130 करोड़ भारतवंशियों के लिए क्या मायने रखता है, यह दुनिया देख और सुन चुकी है। घंटी-घंटा-थाली-ताली-शंख से उत्पन्न भारतीयता की अथाह अजेय इच्छाशक्ति का वह महानाद विश्वभर में गुंजायमान हुआ। कल जब घर-घर 'दिवाली' मनेगी और देश दीयों से जगमगा उठेगा, तब वह उत्साह और आत्मबल का प्रतीक वह प्रकाश कोरोना पर निश्चित ही भारी पड़ेगा। कैसे, बता रहे विज्ञानी और विशेषज्ञ। कानपुर से बृजेश दुबे की विशेष रिपोर्ट
दीपक जलाने से कैसे मरते हैैं जीवाणु...:
दीपं ज्योति परम् ज्योति, दीप ज्योतिर्जनार्दन:। दीपो हरतु मे पापम् , दीपज्योतिर्नमोस्तुते।।
शुभम् करोति कल्याणम् आरोग्यम् धन सम्पदा शत्रुबुद्धि विनाशाय दीपज्योति नमोस्तुते।।
यह अतिप्राचीन श्लोक भी यही कह रहा है कि दीप शुभ और मंगल का कारक है। कल्याण का कारक है। दीपक जलाने से रोग मुक्त होते हैं, वातावरण स्वच्छ होता है, हवा हल्की होती है। ऐसा केवल हमारा प्राचीन ज्ञान ही नहीं वरन देश के श्रेष्ठ विज्ञान संस्थानों के केमिकल इंजीनियरों का भी यही कहना है। इनका कहना है कि सरसों के तेल में मैग्नीशियम, ट्राइग्लिसराइड और एलाइल आइसो थायोसाइनेट होता है।
एलाइल जलने पर कीट-पतंगों को अपनी ओर आकर्षित करता है। वे लौ की चपेट में आकर जल जाते हैं। तेल में मौजूद मैग्नीशियम हवा में मौजूद सल्फर और कार्बन के आक्साइड के साथ क्रिया कर सल्फेट और कार्बोनेट बना लेता है। यह विषैले भारी तत्व इस तरह जमीन पर आ गिरते हैं। इसीलिए जले दीपक के आसपास हल्की सफेद राख सी दिखती है। भारी तत्व जमीन पर आने से हवा हल्की हो जाती है और सांस लेना आसान हो जाता है।
यही घी का दीपक जलाने पर होता है। देसी गाय के दूध से निर्मित घी का दीपक रोगाणुओं को मारता है। डॉक्टरों का मानना है कि वातावरण साफ और खुशनुमा रहने से इम्यून सिस्टम बेहतर रहता है और व्यक्ति निरोगी रहता है। अगर दिवाली की बात करें तो नरक चतुर्दशी के दिन कूड़े के ढेर और नाली के मुहाने पर और दिवाली पर घर-बाहर हर जगह दीपक रखा जाता है।
रसायनविज्ञान भी इस बात की पुष्टि करता
यह तो नहीं कहूंगा कि दीये जलाने से कोरोना वायरस नष्ट होंगे, लेकिन यह जरूर है कि सरसों के तेल में ऐसे तत्व होते हैं, जिनके ज्वलन और वातावरण में मौजूद रसायनों से प्रतिक्रिया स्वरूप विषैले तत्वों, कीट-पतंगे, रोगाणु आदि की मारने की शक्ति होती है। यह दिवाली के पीछे का वैज्ञानिक कारण भी हो सकता है। रसायनविज्ञान भी इस बात की पुष्टि करता है।
प्रो. अनिमांगशू घटक, विभागाध्यक्ष केमिकल इंजीनियरिंग विभाग, आइआइटी कानपुर
दीपक जलाने से हवा हल्की और साफ होगी
दीपक जलाने से नमी भी बढ़ती है। अधिक संख्या में जलाने पर वातावरण का तापमान बढ़ता है। दोनों स्थितियां कोरोना से लड़ने के लिए मुफीद हैं। चूंकि इस बार मार्च-अप्रैल का औसत तापमान कमोबेश अक्टूबर जैसा ही है, जैसा कि दिवाली के समय रहता है, इसलिए हवा भारी है। दीपक जलाने से वह हल्की और साफ होगी।
-प्रो. आरके त्रिवेदी, सेनि विभागाध्यक्ष, ऑयल एंड पेंट टेक्नालॉजी, एचबीटीयू कानपुर
साभार जागरण
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