तप के बिना नहीं टिकता कोई धर्मः मुनिश्री


ग्वालियर। तप में जो विश्वास करता है, वहीं मोक्ष में जाता है। तप के बिना कोई धर्म टिक नहीं सकता है। संसार का कोई भी धर्म देखे, तो उसमें तप का महत्वपूर्ण स्थान है। अंग्रेज फास्ट बोलते हैं, मुस्लिम रोजा बोलते है और हिन्दू इसे उपवास बोलते है। तप का आशय यह है कि त्याग वहीं आगे रहता है। शरीर में कहीं दुखता है, तो उसे तपाते है। जैसे लकड़ी में कील नहीं जाती,लेकिन वह आग में जलकर राख हो जाती है। वैसे ही तपस्या की आग कर्मों को स्वाहा करती है। यह बात राष्ट्रसंत मुनिश्री विहर्ष सागर  महाराज ने अक्षय तृतीया पर धर्मचर्चा में व्यक्त किए!


मुनिश्री विजयेश सागर महाराज भी मौजूद थे! मुनिश्री ने कहा कि जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर भगवान अदिनाथ ने मुनि दीक्षा ग्रहण करने के बाद छह माह तक उपवास की प्रतिज्ञा लेकर तपस्या में लीन हो गये। छह माह बाद उपवास की समाप्ति के बाद वह आहार हेतु निकले किंतु श्रावकों को मुनियोचित आहार-विधि का ज्ञान नहीं होने के कारण उनका आहार नहीं हो पाया। इसके बाद बिना आहार के ही वे वापस आ गये और लगभग एक वर्ष तक और निराहार रहकर अपनी तपस्या शुरू कर दीसमाचार


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