ग्वालियर। चेहरे का रंग नहीं जीवन जीने का ढंग बदलना होगा, क्योंकि आदमी की पहचान चेहरे के रंग से नहीं जीवन जीने के ढंग से हुआ करती है। आप अपने बच्चों को ज्ञानवान एवं धन सम्पन्ना बनाने के साथ-साथ सद्गुणी बनाने का भी प्रयास करें। धन सम्पन्नाता और विद्वता के कारण लोग पहचानते हैं, लेकिन सरल स्वभावी और व्यक्ति को लोग पहचानते भी हैं और चाहते भी हैं। यह विचार राष्ट्रसंत मुनिश्री विहर्ष सागर महाराज ने तानसेन नगर स्थित न्यू कॉलोनी में धर्मचर्चा में व्यक्त किये!
मुनिश्री विजयेश सागर महाराज भी मोजूद थे! मुनिश्री ने कहा कि धरती पर प्रेम एवं सद्गुण न हों तो कोई चार दिन भी जीना नहीं चाहेगा।दूसरी ओर यदि प्रेम, सदाचार या सद्गुण हो तो व्यक्ति सौ वर्ष भी जीने को तैयार हो जाता है। परिवार का बिखरना, तलाक का होना, एक-दूसरे के साथ रहने को तैयार न होना, प्रेम सहनशीलता नम्रता जैसे गुणों का अभाव ही कारण बनता है। मुनिश्री ने कहा कि 'मेरी भावना' में एक पंक्ति आती है 'फैले प्रेम परस्पर जग में, मोह दूर ही रहा करे' इसका अर्थ ही यह होता है, मोह शरीर और वस्तुओं से ही होता है जिससे दूर रहने को कहा गया है। अपने बच्चों को धार्मिक, नैतिक संस्कारों की वसीयत लिखकर जाइए। धर्म की वसीयत के अभाव में धन देकर जाओगे तो वे आपस में लड़ेंगे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें