धागा और जुबान अधिक ढील देने पर उलझ जाते हैं-मुनिश्री


ग्वालियर। सत्य प्रतिष्ठित है, सत्य परमेश्वर है, सत्य को प्रतीति है, अनुभूति है जो कि शब्दों के द्वारा व्यक्त नहीं की जा सकती। सृष्टि का संचालन परमेश्वर करता है। संसार के सारे जीवों के प्रति करूणा, दया, परोपकार के भाव ही सत्य हैं। सत्य को खरीदा नहीं जा सकता और न ही सत्य भाड़े पर मिलता है। असत्य आसानी से कहीं भी उपलब्ध हो जाता है।


यह बात राष्ट्रसंत मुनिश्री विहर्ष सागर महाराज ने हरिशंकरपुरम में महेश जैन गुरुभक्त के निवास पर धर्मचर्चा में कही। इस मौके पर मुनिश्री वियजेश सागर महाराज मौजूद थे। मुनिश्री ने कहाकि भगवान महावीर, भगवान श्रीराम, गुरुनानक देव जैसे जगतकर्ताओं ने सत्य पुंज के दीपक की रोशनी से जगत को प्रकाशित किया। सत्य कभी परिवर्तित नहीं होता, जो सत्य है वही मेरा है ऐसा दिव्य बोध रखो, जो मेरा है वही सत्य है ऐसी आदत बदल डालो। सत्य की सत्ता का नाश नहीं होता और सदा शाश्वत रहता है। मुनिश्री ने आगे कहा कि धागा और जुबान को नियंत्रित कर के रखे अधिक ढील देने पर उलझ जाती है। वाणी वीणा का काम करे बाण का नहीं क्योंकि शब्द को ब्रह्म कहा है।


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