ग्वालियर। आज का मनुष्य तन से ज्यादा मन से दुखी है। जो कहता है कि है प्रभु आप के ही आशीर्वाद का प्रसाद है कि मेरा पांच खंड का मकान है। अच्छा परिवार है। किंतु एक ही आकुलता है कि पड़ोसी का दस खंड का भवन क्यों है।जो मेरे मन में खटकता है ! यह विचार राष्ट्रसंत मुनिश्री विहर्ष सागर महाराज ने हरिशंकरपुरम स्थित महेश जैन गुरुभक्त के निवास पर धर्मचर्चा में व्यक्त किए। मुनिश्री विजयेश सागर महाराज भी मौजूद थे।
मुनिश्री ने कहा कि आज का मनुष्य सामने वाले का भला नहीं चाहता। जिसके कारण वह मन से दुखी रहता है। मनुष्य मोह, राग, द्वेष से दुखी है। अपनी दुकान के आगे दूसरे की दुकान खुलने पर दुखी हो जाता है। मुनिश्री ने कहा कि क्षत्रिय वही कहलाता है जो पाप से बचे और दूसरों को बचाए तथा असहायक जीवों की रक्षा करें। सब कुछ होते हुए भी संसारी प्राणी बहाना करता है कि मेरे पास ऐसा होता तो मैं ऐसा करता।आम आदमियों को समझना आज मुश्किल हो गया है। मुनिश्री विहर्ष सागर महाराज ओर विजयेश सागर महाराज के सानिध्य ने भगवान विमलनाथ के मोक्ष कल्याणक पर अभिषेक एवं शन्तिधार की।
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