भद्रा के बाद इस बार अमृत व सर्वार्थसिद्धि योग में मनाया जायेगा रक्षाबंधन का त्योहार

3 अगस्त सोमवार श्रावण पूर्णिमा को इस बार रक्षाबंधन का त्यौहार है। इस बार इस दिन भद्रा तिथि का साया प्रातः सूर्योदय से  9-28 बजे तक है।  उसके बाद प्रातः 09-29 बजे से  रात्रि 9-09 तक  रक्षाबंधन के लिए भद्रा रहित अमृत और सर्वार्थ सिद्धि योग में पूरे दिन बहने अपने भाई की कलाई पर रात्रि 9-09 तक राखी आराम से बांध सकेंगे।
 ज्योतिषाचार्य डॉ हुकुमचंद जैन ने यह जानकारी देते हुए कहा कि भद्रा में रक्षाबंधन और होलिका दहन दो पर्व कभी नहीं मनाना चाहिए इससे परिवार ,समाज व राष्ट्र को बड़ी क्षति होती है।
 इस बार 3 अगस्त सोमवार श्रावण पूर्णिमा के दिन भद्रा तिथि प्रातः 9-28 तक रहेगी सूर्योदय से प्रातः 9-28 तक श्रावणी कर्म व  राखी बांधने से पूरी तरह बचना चाहिए।
 इसके बाद प्रातः 9-29 से रात्रि 9-09 तक 11 घंटे 41 मिनट तक का समय रक्षाबंधन व श्रावणी कार्य के लिए  श्रावणी पूर्णिमा तिथि में अमृत और पूरे समय तक सर्वार्थ सिद्धि योग दिन और रात तक रहेगा। इसी में करना चाहिए।
चैघड़िया के अनुसार प्रातः 09-29 से 10-44 बजे तक शुभ, 15-41 से 17-20 तक लाभ एवं 17-20 से 18-59 बजे तक अमृत की चैघड़िया रहेंगी और अमृत व सर्वार्थ सिद्धि योगों का समावेश भी रहेगा।
 रक्षाबंधन का यह त्यौहार भाई बहन का प्यार भरा त्यौहार है।  बहिन को अपने भाई की कलाई पर राखी बांधने इस दिन का  वर्ष भर इंतजार रहता है। इससे बहिन- भाई के  आपसी रिश्ते मजबूत रहते हैं। बहन भाई को लंबी उम्र की प्रार्थना उसके माथे पर तिलक लगाकर रक्षा सूत्र बांधकर और मिठाई खिलाकर इस दिन करती है। भाई उसे उसकी सुहाग की रक्षा का वचन देता है। 
जैन ने कहा कि रक्षाबंधन का यह त्यौहार भारतीय समाज में भाई-बहन का पवित्र त्यौहार तो है ही परंतु धर्म पुराण इतिहास से जुड़ा हुआ भी यह पर्व है।
 पदम पुराण और श्रीमद्भागवत में 52 अवतार  कथा से रक्षाबंधन का प्रसंग मिलता है विष्णु द्वारा राजा बलि से ब्राह्मण का रूप रखकर भिक्षा में तीन पग भूमि लेकर राजा बलि के अभिमान को विष्णु जी ने चूर चूर करने से भी जुड़ा है। इसी दिन बलि ने विष्णु जी को अपने पास रहने का वचन ले लिया था तब लक्ष्मी जी घबरा कर राजा बलि के पास गई और उनके इसी दिन रक्षा सूत्र बांधकर उन्हें अपना भाई बना लिया और अपने सुहाग की रक्षा का वचन लेकर विष्णु जी को अपने साथ ले आए उस दिन श्रावण शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि थी उसी समय से यह रक्षाबंधन का पर्व प्रचलित है।



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