मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं हो सकता है : मुनिश्री


ग्वालियर ! धर्मात्मा वह नहीं जो मंदिर मस्जिद में पूजा, 5 बार की नमाज अदा करता हो अपितु धर्मात्मा वह हैं जो मानवता से प्यार करता हो मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं हो सकता है।जो व्यक्ति इंसान की गोद में जन्म लेकर इंसान से प्यार नहीं कर सका वह भगवान से भी प्यार नहीं कर सकता है। भगवान से वही प्यार कर सकता है जो चींटी के अंदर भी भगवान देखने की नजर रखता हो। यह बात मुनिश्री प्रतीक सागर ने सोनागिर भट्टारा कोठी के सामने स्थित अमोल धर्मशाला में धर्म सभा को संबोधित करते हुए कही!


 मुनि श्री ने कहा कि सेवा वह धर्म है जिस से सभी के दिलों में स्थान बनाया जा सकता है सेवा से ही हनुमान ने राम के हृदय में स्थान बनाया था जिस कारण राम को कहना पड़ा कि हनुमान तो मेरा भरत के समान प्रिय भाई है। इसलिए भारतवर्ष में बड़े से बड़े शहर छोटे से छोटे गांव में राम का मंदिर हो या ना हो मगर हनुमान का मंदिर जरूर मिलेगा। हनुमान शब्द कहता है हन मान जो मान का हनन करता है वही हनुमान होता है । इसीलिए सरदारों में सेवा भाव सबसे अधिक होता है करोड़पति घर के लोग भी गुरुद्वारे में आकर सेवा का कार्य करते हैं। जो सेवा करता है वही तो मेवा खाता है। मगर सेवा में स्वार्थ और अहंकार नहीं होना चाहिए स्वार्थ और अहंकार आदमी को पतन के रास्ते पर ले जाते हैं।


धर्म सभा के पश्चात मुनिश्री कि आरती की गई! अमोल धर्मशाला स्थित आचार्य पुष्पदंत सागर सभागृह में मुनि श्री के प्रतिदिन शाम 6:45 बजे मंगल प्रवचन आरती का कार्यक्रम होगा।


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