राजस्थान में MP दोहराना चाहते थे पायलट, पर नहीं दिखा सके सिंधिया जैसा साहस

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सियासी शह-मात का खेल जारी है. यही वजह है कि राजस्थान की राजनीतिक पटकथा भी मध्य प्रदेश की तरह लिखी जा रही थी. सचिन पायलट ने अपने मित्र ज्योतिरादित्य सिंधिया की राह पर चलते हुए बगावत का झंडा तो उठाया, लेकिन सिंधिया जैसा राजनीतिक साहस नहीं दिखा सके. इसी का नतीजा है कि सियासी रण के पहले राउंड में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने विधायकों के समर्थन का दम दिखाते हुए अपनी सरकार पर मंडराते खतरे को फिलहाल टाल दिया है.


 


ज्योतिरादित्य सिंधिया मध्य प्रदेश में कमलनाथ-दिग्विजय से नाराज हुए तो सिर्फ पाला ही नहीं बदला बल्कि कांग्रेस को सत्ता से बेदखल भी कर दिया. वहीं, राजस्थान में सचिन पायलट न तो अशोक गहलोत सत्ता से बेदखल कर सके और न ही अपने समर्थकों को एकजुट कर अभी तक कोई राजनीतिक निर्णय ले सके हैं. राजस्थान की तस्वीर मध्य प्रदेश से अलग है. इसमें सबसे बड़ा अंतर दिखता है गणित में, जो न तो बीजेपी के पक्ष में दिखता है और ना ही सचिन पायलट के लिए मुफीद नजर आ रहा है.


 


दरअसल, राजस्थान के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट नाराज तो तभी से चल रहे थे जब 2018 में उन्हें नजरअंदाज करके अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाया गया था. उन्हें प्रदेश अध्यक्ष के साथ उपमुख्यमंत्री की जिम्मेदारी सौंपकर साधने की कोशिश की गई. इसके बावजूद गहलोत और पायलट के बीच राजनीतिक वर्चस्व जारी रहा, जो अब खुलकर सामने आ गया है


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