ग्वालियर। बच्चों के निर्माण में पिता का व्यक्तिगत आचरण बहुत महत्व रखता है। बच्चे सहज ही अनुकरणशील होते हैं, वे जैसा पिता को करते देखते हैं, वैसी ही सीख लेते हैं। अतः पिता को अपना रहनसहन, आचारविचार और स्वभाव उसके अनुकूल रखना चाहिए, जिस आदर्श में वह अपने बच्चों को ढालना चाहता है। यदि पिता अपने इस महान दायित्व को समझे और अपने को त्याग, प्रेम, परिश्रम, पुरुषार्थ, सदाचार के आदर्श के रूप में प्रस्तुत करे तो कोई कारण नहीं कि उसके बच्चे वैसे न बन जाएं। जो पिता स्वार्थी, क्रोधी, कर्कश, और व्यसनी, विलासी होता है, वह न तो आदर का पात्र होता है और न उसके बच्चे ही अच्छे बन पाते हैं। यह विचार मुनिश्री प्रतीक सागर ने सोनागिर स्थित आचार्यश्री पुष्पदंत सागर सभागृह में धर्मसभा में संबोधित करते हुए कही l
अहिंसा रैली एवं केशलोच समारोह कल
गणाचार्य श्री पुष्पदंत सागर के शिष्य मुनिश्री प्रतीक सागर के मार्गदर्शन एवं पावन सानिध्य में विराट अहिंसा महारैली एवं केशलोच समारोह 4 अक्टूबर को सोनागिर सिद्धक्षेत्र पर आचार्य पुष्पदंत सागर चातुर्मास समिति भारत एवं दिगंबर जैन जागरण युवा संघ रजिस्टर मुंबई द्वारा आयोजित होगी।
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