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शरद पूर्णिमा:16 कलाओं से पूर्ण चन्द्रमा हेमंत ऋतु,और सर्दी का भी आगमन -ज्योतिषाचार्य डॉ हुकुमचंद जैन

अश्वनी पूर्णिमा की रात्रि का लोगो को साल भर इंतजार पूरा होगा। इस रात्रि को लोग चावल ,मेवा, युक्त खीर को रात भर चन्द्रमा की किरणों में रखते है। तरह तरह से अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति हेतू दूसरे दिन इस को प्रशाद के रूप में ग्रहण करते है।
कोई संतान की कामना से,कोई स्वास्थ्य की,कोई धन-की कोई नेत्र ज्योति बढ़ाने व अन्य कामनाओं से भी भक्ति भाव से इसे ग्रहण करते है।
जैन के अनुसार अश्विन शुक्ल पक्ष पर पड़ने वाली पूर्णिमा पर, चंद्रमा, पृथ्वी के सर्वाधिक निकट होने से सोलह कला संपूर्ण होता है। इस रात्रि में चंद्र किरणों में अमृत का निवास रहता है , अतः उसकी रश्मियों से अमृत और आरोग्य की प्रप्ति होती है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी   इस रात , ऐसे मूहूर्त में , चंद्र किरणों में कुछ रासायनिक तत्व , मौजूद होते हैं जो शरीर को बल प्रदान करते हैं, निरोग बनाते हैं तथा  संतान प्राप्ति में सहायक होते हैं। इस पूर्णिमा पर लक्ष्मी जी की आराधना की जाती है।
 शरद पूर्णिमा से ही हेमंत ऋतु का आरंभ अर्थात ठंड बढ़नी शुरु हो जाती है। इस बार की पूर्णिमा भी खगोलीय दृष्टि से ऐतिहासिक होगी क्योंकि  यह ब्लू मून की रात होगी। इसके बाद नीला चंद्र 19 साल बाद ही देखा जा सकेगा।
शरद पूर्णिमा
 ’पूर्णिमा आरम्भ - 30अक्टूबर  2020 को 17.45 से
’पूर्णिमा समाप्तर अक्टूबर 31,  को 20.18 पर.
   इस के बाद हेमंत ऋतु एवं कार्तिक मास स्नान भी आरंभ हो जाएंगे। और सर्दी  बढ़ने लगेगी।
इस दिन कोजागर व्रत जिसे कौमुदी व्रत भी कहते हैं, रखा जाता है। शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा अर्थात रासोत्सव भी माना जाता है। इस रात चंद्र किरणों में विशेष प्रभाव माना जाता है जिसमें से अमृत सुधा बरसती है। 
 


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