श्रीमद्भागवत कथा मनुष्य की सभी इच्छाओं को करती है पूर्ण: सुश्री गुंजन जी वशिष्ठ

रविकांत दुबे AD News 24

ग्वालियर। भागवत कथा श्रवणार्थ फल की कामना नहीं होना चाहिए, फल से फल नहीं मांगा जाता। श्रीमद् भागवत कथा स्वयं एक फल है क्योंकि कमाई हुई वस्तु खर्च हो जाती है। अपनी किसी भी वस्तु को कमाया तो वह खर्च होगी, लेकिन भक्ति खर्च नहीं होती वरण दिन प्रतिदिन बढती जाती है। बड़े सौभाग्यशाली हैं जिनको भागवत की कथा सुनने को मिलती है। इस भक्तिमय, संगीतमयी कथा का रसपान व्यासपीठ सुश्री गुजंन वशिष्ठ ने आज श्री चलेश्वर महादेव मां शक्ति मंदिर, पत्रकार काॅलेनी, विनय नगर में चल रही श्रीमद भागवत कथा के दूसरे दिवस भक्तों को कराया। सुश्री गुजंन वशिष्ठ ने आज भीष्म चरित्र, परीक्षित का जन्म, सुखदेव जी का आगमन की कथा सुनाई अंत में आरती क्षेत्र के वरिष्ठ नागरिकों ने उतारी।

     श्री चलेश्वर महादेव मां शक्ति मंदिर पर आयोजित संगीतमय श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के दूसरे दिवस व्यासपीठ सुश्री प्रज्ञा भारती जी की परमशिष्या सुश्री गुंजन वशिष्ठ ने नरसिंह अवतार की कथा के प्रसंग सुनाते हुए कहा कि सच्चे मन से यदि ईश्वर की आराधना की जाए तो निश्चित ही ईश्वर की कृपा बनी रहती है और ईश्वर अपने भक्त पर संकट आने पर मदद करते है। भक्त प्रहलाद ने भी भगवान की सच्चे मन से ईश्वर की आराधना की और जब प्रहलाद पर संकट आया तो भगवान ने अवतार लेकर भक्त के प्राणों की रक्षा की। उन्होंने भगवान के वामन अवतार की कथा के प्रसंग सुनाए।

        व्यासपीठ सुश्री गुंजन वशिष्ठ ने भक्तों को कथा का रसपान कराते हुए कहा कि श्रीमद्भागवत कथा मनुष्य की सभी इच्छाओं को पूरा करती है। यह कल्पवृक्ष के समान है। इसके लिए मनुष्य को निर्मल भाव से कथा सुनने और सत्य के मार्ग पर चलना चाहिए। कथा व्यास ने कहा कि, भागवत कथा ही साक्षात कृष्ण है और जो कृष्ण है, वही साक्षात भागवत है। भागवत कथा भक्ति का मार्ग प्रशस्त करती है। भागवत की महिमा सुनाते हुए कहा कि, एक बार नारद जी ने चारों धाम की यात्रा की, लेकिन उनके मन को शांति नहीं हुई। नारद जी वृंदावन धाम की ओर जा रहे थे, तभी उन्होंने देखा कि एक सुंदर युवती की गोद में दो बुजुर्ग लेटे हुए थे, जो अचेत थे। युवती बोली महाराज मेरा नाम भक्ति है। यह दोनों मेरे पुत्र हैं, जिनके नाम ज्ञान और वैराग्य है। यह वृंदावन में दर्शन करने जा रहे थे। लेकिन बृज में प्रवेश करते ही यह दोनों अचेत हो गए। बूढे हो गए। आप इन्हें जगा दीजिए। इसके बाद देवर्षि नारद जी ने चारों वेद, छहों शास्त्र और 18 पुराण व गीता पाठ भी सुना दिया। लेकिन वह नहीं जागे। नारद ने यह समस्या मुनियों के समक्ष रखी। ज्ञान, वैराग्य को जगाने का उपाय पूछा। मुनियों के बताने पर नारद जी ने हरिद्वार धाम में आनंद नामक तट पर भागवत कथा का आयोजन किया। मुनि कथा व्यास और नारद जी मुख्य परीक्षित बने। इससे ज्ञान और वैराग्य प्रथम दिवस की ही कथा सुनकर जाग गए। उन्होंने कहा कि, गलती करने के बाद क्षमा मांगना मनुष्य का गुण है, लेकिन जो दूसरे की गलती को बिना द्वेष के क्षमा कर दे, वो मनुष्य महात्मा होता है। जिसके जीवन में श्रीमद्भागवत की बूंद पड़ी, उसके हृदय में आनंद ही आनंद होता है। भागवत को आत्मसात करने से ही भारतीय संस्कृति की रक्षा हो सकती है। भगवान को कहीं खोजने की जरूरत नहीं, वह हम सबके हृदय में मौजूद हैं। अगर जरूरत है तो सिर्फ महसूस करने की।



 


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