नवोदित कलाकारों को बडी गंगादास की शाला रागायन मंच प्रदान कराती है: महंत रामसेवक दास

रविकांत दुबे AD News 24



 ग्वालियर। ग्वालियर के महारानी लक्ष्मीबाई समाधि के पीछे स्थित बडी गंगादास की शाला का अपना ही विशेष महत्व है। भारत की आजादी से जुडी इस गंगादास की शाला में झांसी की रानी का अंतिम संस्कार किया गया था वहीं सैकडों की संख्या में साधू भी इस लडाई में शहीद हुये थे। अब बडी गंगादास की शाला शास्त्रीय संगीत को बढावा देने के लिये रागायन संस्था के माध्यम से नवोदित कलाकारों युवाओं को बढावा देने मंच प्रदान कर रही है। 

उक्त जानकारी आज पत्रकारों को देते हुये श्री गंगादास की बडी शाला लक्ष्मीबाई कालोनी पडाव के महंत रामसेवक दास पूरन वैराठी पीठाधीश्वर ने बताया कि सिद्ध पीठ श्री गंगादास जी की बडी शाला एक प्राचीन एतिहासिक धार्मिक स्थल है। इसका इतिहास 600 साल से भी पुराना है। बताया जाता है कि मुगल बादशाह अकबर भी गंगादास की शाला में आया था और तत्कालीन महंत स्वामी परमानंद जी महाराज के श्री चरणों में नतमस्तक होकर आशीर्वाद लेकर गया था। कालांतर में 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में यहां के तत्कालीन महंत गंगादास जी महाराज ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की पार्थिव देह की अंग्रेजों से रक्षा करते हुये उनका यहां अंतिम संस्कार किया था। और 745 साधू संतों ने अंग्रेजों से लोहा लेते हुये देश की आजादी में अपने प्राण न्यौछावर किये थे। 

वर्तमान में पूरन वैराठी पीठाधीश्वर स्वामी रामसेवक दास जी इस सिद्ध पीठ के महंत हैं। उनके नेतृत्व एवं मार्गदर्शन में शाला का सुचारू रूप से कार्य चल रहा है। शाला द्वारा प्रतिवर्ष जून माह में 10 से 18 जून तक श्रीमद भागवत कथा का आयोजन किया जाता है। इस अवसर पर विशाल भंडारा भी आयोजित किया जाता है। इसके अलावा श्री रामनवमी, पर भगवान श्री राम के जन्मोत्सव का आयोजन , कृष्ण जन्माष्टमी, महाशिवरात्रि सहित अन्य तीज त्यज्ञैहार परंपरा के अनुसार मनाये जाते हैं। श्रीवण मास में भगवत पारायण के साथ ७ दिन का झूला महोत्सव भी आयोजित होता है। 

शाला द्वारा गौशाला संचालित कर गौ सेवा भी की जा रही है। शाला परिसर में हनुमान जी का स्वयंभू विग्रह है। मान्यता है कि हनुमान जी के दर्शन मात्र से श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण होती है। यहां भव्य रामदरबार भी है। शाला के तहत शास्त्रीय संगीत को बढावा देने के लिये रागायन संस्था बनाई गई है। जो पिछले ३० वर्षो से सांगीतिक आयोजन करती आ रही है। यह संस्था शाला में ही रहे संगीताचार्य पंडित सीतारामशरण महाराज ने बनाई थी। १९९० से निरंतर यह संस्था हर माह संगीत सभा का आयोजन करती है। जिसमें नवोदित से लेकर वरिष्ठ कलाकार प्रस्तुति देते हैं। संस्था द्वारा हर साल वार्षिक संगीत समारोह भी आयोजित किया जाता है। जिसमें देश के वरिष्ठ संगीत साधक अपनी प्रस्तुति देने आते रहे हैं। शाला भविष्य में एक संस्कृत विद्यालय एवं संगीत विद्यालय भी शुरू करने पर विचार कर रही है। शाला की जमीनों पर अतिक्रमण करने के बारे में पूछे एक प्रश्र के उत्तर में महंत रामसेवक दास महाराज ने बताया कि हां बडी गंगादास की शाला की जमीनों पर कुछ लोगों ने अतिक्रमण कर अपना कब्जा जमाया है हम जिला प्रशासन को पूरी जानकारी देते हैं एक दो बार प्रशासन ने अतिक्रमण हटवाये भी हैं लेकिन अभी भी काफी जमीन पर अतिक्रमण हैं। तानसेन जैसे संगीत समारोह मेें क्या गंगादास की शाला का योगदान है के बारे में महंत रामसेवक दास महाराज ने बताया कि प्रसिद्ध तानसेन संगीत समारोह में उन्हें प्रशासन द्वारा कोई जानकारी नहीं दी जाती है। प्रशासन स्वयं ही सबकुद करके लाता है। उसे ग्वालियर के साधकों से कोई मतलब ही नहीं है। पत्रकार वार्ता में अन्य संत भी मौजूद थे। 


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