(खुशियों की दास्तां) स्व-सहायता समूह की चल निकली सवारी गाड़ी

डी.डी.शाक्यवार

मुरैना | बाग वाली मां आजीविका स्व-सहायता समूह की महिलाओं की सवारी गाड़ी अब चल निकली है। इससे समूह की महिलाओं का आर्थिक उन्नयन शुरू हुआ है।   

    अम्बाह विकासखण्ड के ग्राम रिठौना में बाग वाली मां आजीविका स्व-सहायता समूह की कुछ महिलाओं ने जय बजरंग आजीविका मिशन की सहायता से लगभग दो लाख रूपये का ऋण प्राप्त करके महिला समूह द्वारा निर्मला आजीविका मारूति की ईको सवारी गाड़ी खरीदी। सवारी गाड़ी से प्राप्त होेने वाली इनकम से समूह की महिलायें अब अपने पैरों पर खड़ी हो गई है। यह सब मध्यप्रदेश राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के सहयोग से साकार हुआ हैै।  

    समूह की अध्यक्ष श्रीमती निर्मला तोमर ने बताया कि राज्य ग्रामीण आजिविका मिशन द्वारा पिछले वर्ष 2018 में मध्यप्रदेश राज्य ग्रामीण आजिविका मिशन के सहयोग से बाग वाली मां आजिविका स्व-सहायता समूह का गठन किया था, जिसमें 12 महिलाओं की सदस्यता थी। समूह की महिलायें धीरे-धीरे घर से बाहर निकलकर इनकम का स्त्रोत समझने लगीं। सभी महिलाओं ने 20-20 रूपये की बचत करके एक अच्छी खासी रकम इकट्ठी की। इस रकम से उन्होंने बैंक में खाता खोला। हर माह बैंक में समूह के द्वारा बचत की राशि जमा होती रही, जब समूह की एक अच्छी खासी रकम बैंक में जमा हो गई, तब बागवाली मां आजिविका स्वसहायता समूह की बैंक में एक अच्छी साख बन गई। 

    उधर ग्रामीण आजीविका मिशन के पदाधिकारियों ने बाग वाली मां स्व-सहायता समूह को आत्मनिर्भर बनाने के लिये ग्वालियर के अलावा अन्य शहरों में विभिन्न व्यवसायों का प्रशिक्षण समूह की महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिये भरपूर प्रयास किये। प्रशिक्षण के पश्चात् इन 12 महिलाओं के बाग वाली मां स्व-सहायता समूह ने एक सवारी गाड़ी खरीदने की कार्ययोजना बनाई। समूह के लिये मध्यप्रदेश डे राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन अम्बाह की परियोजना ने सवारी गाड़ी की कार्ययोजना बनाकर, जिसमें बाग वाली मां स्व-सहायता समूह का अंशदान 80 हजार रूपये और मध्यप्रदेश ग्रामीण बैंक से 2 लाख रूपये का ऋण लेकर एक सवारी गाड़ी मारूति ईको क्रय किया। सवारी गाड़ी पर समूह की महिलाओं ने एक ड्राइवर का चयन कर गांव से अंबाह तक चलने के लिये परमिट लिया, सवारी गाड़ी चलने लगी। अब तो समूह को प्रतिदिन 750 रूपये आय प्राप्त होने लगी। जिसमें कुल मासिक आय 25-30 हजार रूपये प्राप्त होने लगा जिसमें से प्रति महिला को 500 रूपये की आय होने लगी। तब समूह की महिलायें कहने लगीं कि हम भी पुरूषों से कहीं कम नहीं हैं। भला हो प्रदेश के मुख्यमंत्री जी का जिन्होंने महिलाओं को स्वावलम्बी बनाने के लिये स्व-सहायता समूह का गठन और समूह को रोजगार दिलाने के लिये मध्यप्रदेश डे राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन जैसी योजनायें चलाई है। 


 


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