नवसंबतसर के साथ बसन्त नवरात्र का हुआ प्रारंभ

ज्योतिषाचार्य डॉ हुकुमचंद जैन ने बताया कि चैत्र नवरात्रि हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला एक बेहद प्रमुख पर्व है। हिंदू पञ्चाङ्ग के अनुसार इस वर्ष 13 अप्रैल से 21 अप्रैल तक चैत्र नवरात्र पर्व मनाया जाएगा। इसमें देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग रूप – 1-शैलपुत्री,2- ब्रह्मचारिणी, 3-चंद्रघंटा, 4-कुष्मांडा, 5-स्कंदमाता, 6-कात्यायनी, 7-कालरात्रि,8- महागौरी और 9-सिद्धिदात्रि की बहुत ही भव्य तरीके से पूजा की जाती है। नवरात्रि में माँ दुर्गा को खुश करने के लिए उनके नौ रूपों की पूजा-अर्चना और पाठ की जाती है। इस पाठ में देवी के नौ रूपों के अवतरित होने और उनके द्वारा दुष्टों के संहार का पूरा विवरण है।

 पौराणिक मान्यताओं अनुसार सृष्टि के आरंभ का समय चैत्र नवरात्र का पहला दिन माना गया है। कहा जाता है कि इस दिन देवी ने ब्रह्माजी को सृष्टि की रचना करने का कार्यभार सौंपा था। इसी दिन से कालगणना शरू हुई थी।

देवी भागवत पुराण के अनुसार इसी दिन देवी मां ने सभी देवी देवताओं के कार्यों का बंटवारा किया था।


इसलिए चैत्र नवरात्र हिंदू नव वर्ष का आरंभ माना जाता है। इस दिन सभी हिंदुओ को अपने अपने घरों पर झंडा फहराकर नव वर्ष का हर्ष उल्लास के साथ स्वागत करना चाहिए । देवी पुराण के अनुसार सृष्टि के आरंभ से पूर्व अंधकार का साम्राज्य था। तब आदि शक्ति जगदंबा देवी अपने कूष्मांडा अवतार में भिन्न वनस्पतियों और दूसरी वस्तुओं को संरक्षित करते हुए सूर्यमंडल के मध्य में व्याप्त थीं। जगत निर्माण के समय माता ने ही ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शिव की रचना की थी। इसके बाद सत, रज और तम नामक गुणों से तीन देवियां लक्ष्मी, सरस्वती और काली माता की उत्पत्ति हुईं। आदिशक्ति की कृपा से ही ब्रह्मा जी ने इस संसार की रचना की थी। मां ने ही भगवान विष्णु को पालनहार और शिवजी को संहारकर्ता बनाया और सृष्टि के निर्माण का कार्य संपूर्ण हुआ

इसलिए सृष्टि के आरंभ की तिथि से नौ दिनों तक मां अम्बे के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। इस दिन से ही पंचांग की गणना भी की जाती है।इस दिन से नवसमत्सर 2078 विक्रम सम्बत शुरू होगा। मर्यादा पुरषोत्तम श्रीराम का जन्म भी चैत्र नवरात्र में ही नवमी तिथि को हुआ था। नवरात्रि में दुर्गासप्तशती का पाठ करने से देवी भगवती की खास कृपा होती है।

घट स्थापना का रहा शुभ मुहूर्त :- दिनांक 13 अप्रैल मंगलवार को सुबह 05:45 मिनट से दोपहर 02:02 मिनट तक रहेगा। अभिजित मुहूर्त 11:56 से 12:47 तक श्रेष्ठ समय।

चौघड़िया अनुसार:- लाभ-10:46 से 12:22 तक

अमृत:- 12:22 से 13:58 बजे तक। इस समय  में पूजा तथा कलश स्थापना शुभ व श्रेष्ठ फल दाई होगी।

महानिशापूजा 19 अप्रैल सोमवार को ।

महाअष्टमी व्रत 20 अप्रैल मंगलवार को मनाया जायेगा।

श्री राम जन्मोत्सव:,रामनवमी, नवरात्र हवन 21 अप्रैल बुधवार को मनाया जायेगा।

घट विसर्जन 22 अप्रैल गुरुवार को किया जायेगा,उसके उपरांत पारणा।

 राक्षसी संवत्सर 2078 और तिथियों का क्षय महामारी रोग बढ़ाएगा दिनांक 12 अप्रैल सोमवार अमावस्या को प्रातः 8:00 बजे संवत 2077 समाप्त होकर संवत 2078 प्रारंभ होगा।

 13 अप्रैल मंगलवार से बसंत नवरात्र घट स्थापना, गुड़ी पड़वा, चैतीचांद का पर्व भी रहेगा प्रसिद्ध भविष्यवक्ता ज्योतिषाचार्य डॉ हुकुमचंद जैन  ने बताया कि इस संवत्सर 2078 का नाम राक्षस संवत्सर है। इसके राजा और मंत्री दोनों ही पद मंगल के अधीन होने से इस वर्ष भी लोग दुःखी, रोग आदि बिछोर से पीड़ित, अग्नि, चोरी की लूटपाट ,हिंसा, उपद्रव बनेंगे। कहीं-कहीं अनावृष्टि, सूखा से फसलों को हानि। आंधी तूफान अधिक आएंगे।

 जैन ने भविष्यवाणी करते हुए कहा कि शास्त्रों में ऐसा कहा गया है की एक चंद्रमास के दोनों पक्षों में एक-एक तिथि अथवा दो या दो से अधिक तिथियों का छह हो तो आगे के महीनों में रोग महामारी, उपद्रव फैलने के योग बनते हैं पिछले वर्ष 2020 में चैत्र माह में दो बार तिथि क्षय हुआ था और महामारी फैलती गई।

 इस वर्ष 2021 में फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष में तृतीया तिथि और शुक्ल पक्ष में त्रयोदशी तिथि का क्षय हुआ है। महामारी का दूसरा  रूप चलपडा ।

 जैन ने कहा वैशाख मास कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथियां क्षय हैं। ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्थी जेष्ठ शुक्ल चतुर्दशी का क्षय है। श्रावण माह में कृष्ण पक्ष प्रतिपदा और शुक्ल पक्ष नवमी तिथि का क्षय है। भाद्र माह में भाद्रपद कृष्ण अमावस्या और शुक्ल त्रयोदशी का विषय है। अतः कुल मिलाकर इस वर्ष में 18 तिथि छह हैं। केवल 12 तिथि वृद्धि है अतः महामारी अक्टूबर 2021 तक भयंकर रूप लेती रहेगी जिससे हाहाकार मच सकता है।

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