सौभाग्यवतियो का नवमी का श्राद्ध गुरुवार कोऔर जिनकी तिथि याद नहीं हो उनका 06 अक्टूबर अमावस्या को होगा


कई बार दुर्घटना से या अन्य कारणों से व्यक्ति  मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। कई बार परिजन तिथि भूल जाते है। कई बार घर के किस उम्र के व्यक्ति का श्राद्ध किस तिथि में हो इस संधर्भ में शहर के ज्योतिषाचार्य डॉ हुकुमचंद जैन ने कहा कि वैसे तो जो जिस तिथि में मरण को प्राप्त हुआ उनका श्राद्ध उसी तिथि में होना चाहिए फिर भी कई वार ज्ञात नही रहती ऐसे मेंसौभाग्यवती यानी पति के रहते ही जिनकी मृत्यु हो गई हो  उन स्त्रियों का श्राद्ध नवमी को किया जाता है। जो 30 सितम्बर गुरुवार को है।

यह तिथि माता के श्राद्ध के लिए भी उत्तम मानी गई है इसलिए इसे मातृ-नवमी भी कहते हैं। मान्यता है कि इस तिथि पर श्राद्ध कर्म करने से कुल की सभी दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध हो जाता है।एकादशी और द्वादशी: एकादशी में वैष्णव संन्यासी का श्राद्ध करते हैं। अर्थात इस तिथि को उन लोगों का श्राद्ध किए जाने का विधान है जिन्होंने सन्यास लिया हो ।चतुर्दशी इस तिथि में शस्त्र, आत्महत्या, विष और दुर्घटना यानी जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध किया जाता है जो 5 अक्टूबर मंगलवार को है। जबकि बच्चों का श्राद्ध कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को करने के लिए कहा गया है।सर्वपितृमोक्ष अमावस्या: किसी कारण से पितृपक्ष की अन्य तिथियों पर पितरों का श्राद्ध करने से चूक गये हैं या पितरों की तिथि याद नहीं है तो इस तिथि पर सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है जो 06 अक्टूबर बुधवार को है। शास्त्र अनुसार इस दिन श्राद्ध करने से कुल के सभी पितरों का श्राद्ध हो जाता है। यही नहीं जिनका मरने पर संस्कार नहीं हुआ हो, उनका भी अमावस्या तिथि को ही श्राद्ध करना चाहिये।  बाकी तो जिनकी जो तिथि हो, श्राद्धपक्ष में उसी तिथि पर श्राद्ध करना चाहिये यही उचित भी है। पिंडदान करने के लिए सफेद या पीले वस्त्र ही धारण करें। ऐसा विधिवत करने से पूर्वजो कि आत्मा शांति होकर वे प्रशन्न होकर सदा सुखी रहने का आशीर्वाद देते है।

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