आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष में संकल्प से सिद्धि अंतरिक्ष में भारत के बढते कदम को लेकर कार्यशाला आयोजित

ग्वालियर / आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष में एनसीसी आर्मी विंग शासकीय आदर्श विज्ञान महाविद्यालय ग्वालियर द्वारा एक दिवसीय कार्यशाला ‘संकल्प से सिद्धि’ अंतरिक्ष में भारत के बढ़ते कदम बाल भवन में आयोजित की गई। कार्यशाला में मुख्य अतिथि नगर निगम आयुक्त किशोर कन्याल ने कहा कि हमें कभी भी निराश नहीं होना चाहिए, हमेशा पॉजीटिव सोच के साथ कार्य करें तो कार्य में सफलता जरूर मिलती है। आपने देखा होगा हमारे इसरो के वैज्ञानिकों द्वारा रात दिन कार्य किया जाता है, फिर भी उनके कई प्रोजेक्ट अंतरिक्ष में जाने में असफल हुए, उसके बाद भी वह हार नहीं मानते नये प्रोजेक्ट के काम में जुट जाते हैं। उन्होंने इसरो के कार्य की भूरि-भूरि प्रसंशा की ओर कहा कि अगर आप रेत पर अपने कदमों के निशान छोड़ना चाहते हो तो एक ही उपाय हैं अपने कदम पीछे मत खीचिए।Sandhyadesh

इस असवर पर मुख्य वक्ता वरिष्ठ वैज्ञानिक भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) डॉ. नवल किशोर गुप्ता ने अंतरिक्ष में भारत की भूमिका को लेकर कहा कि वर्ष 1969 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान की स्थापना हुई। यह भारत सरकार की अंतरिक्ष एजेंसी है और इसका मुख्यालय बंगलुरू में है। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के प्रयासों से इसरों को स्थापित किया गया। इसे भारत सरकार के ‘स्पेस डिपार्टमेंट’ द्वारा प्रबंधित किया जाता है, जो सीधे भारत के प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करता है। इसरो अपने विभिन्न केंद्रों के देशव्यापी नेटवर्क के माध्यम से संचालित होता है।

डॉ. गुप्ता ने कार्याशाला को संबोधित करते हुए बताया कि विश्व में आज अंतरिक्ष-विज्ञान के क्षेत्र में जो होड़ लगी हुई है, उसमें हमारा देश भारत भी कहीं पीछे नहीं है। हमारे देश ने इस क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हासिल की हैं। अंतरिक्ष में विज्ञान के आविष्कार के लिए छोड़े गए उपग्रह विश्व को चकित करने वाले रहे हैं। विश्व में अंतरिक्ष यात्रा की शुरुआत रूस ने 4 अक्टूबर 1957 को ‘स्पुतनिक-1’ कृत्रिम उपग्रह छोड़कर की थी। भारत ने सर्वप्रथम स्वतंत्रता प्राप्ति के कुछ ही वर्षों बाद थुम्बा से अपना प्रथम साउंडिंग राकेट छोड़कर अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में पदार्पण किया था। 1974 में भारत ने अंतरिक्ष में अपना पहला उपग्रह आर्यभट्ट स्थापित किया था। उन्होंने कहा कि जब रूस ने अमेरिका के दवाब में क्रायोजनिक इंजन की तकनीक देने से मना कर दिया। तब देश के वैज्ञानिकों को साथ लेकर डॉ गुप्ता ने क्रायोजनिक इंजन का निर्माण किया जिसके कारण  अंतरिक्ष के क्षेत्र में इतिहास रचा गया। भारत ने उसी क्रायोजनिक इंजन से 104 उपग्रह एक साथ  अंतरिक्ष भेजे जो विश्व का इतिहास बन गया।

इस अवसर पर कार्यशाला की अध्यक्षता कमान अधिकारी 15 एमपी बटालियन एनसीसी ग्वालियर कर्नल अरिन्दम मजूमदार ने स्वागत भाषण, सहायक निदेशक रक्षा अनुसंधान विकास स्थापना ग्वालियर डॉ. परितोष मालवीय ने वैज्ञानिक क्षेत्र में मातृभाषा का महत्व एवं चुनौतियॉ, शासकीय आदर्श विज्ञान महाविद्यालय की वरिष्ठ प्राध्यापक भौतिक विज्ञान डॉ. नीलम भटनागर ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत की ऐतिहासिक पृष्टभूमि, प्राचार्य शासकीय आदर्श विज्ञान महाविद्यालय डॉ. बीपीएस जादौन ने भी मंच से संबोदन दिया। मप्र उच्च शिक्षा विभाग के विशेष कर्तव्यस्त अधिकारी डॉ. सपन पटेल ने कार्यशाला में  विचार व्यक्त किये।

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