तानसेन समारोह:सर्द मौसम में मीठी-मीठी राग-रागनियों की फुहार

राग मनीषियों के गायन-वादन से रसिक हुए मंत्रमुग्ध

ग्वालियर / संगीत शिरोमणि तानसेन की याद में आयोजित हो रहे 97वें  “तानसेन समारोह” में सोमवार की सुबह से ही हल्की-हल्की सर्द हवा चल रही थी। राग-मनीषियों ने जब मीठी-मीठी राग-रागनियाँ छेड़ीं तो रसिक सर्दी का अहसास ही भूल गए। भारतीय शास्त्रीय संगीत के इस सर्वाधिक प्रतिष्ठित पाँच दिनी महोत्सव के दूसरे दिन की प्रात:कालीन सभा में एक से बढ़कर एक प्रस्तुतियाँ हुईं। तानसेन समाधि परिसर में सिद्धेश्वर मंदिर ओंकारेश्वर की थीम पर बने भव्य एवं आकर्षक मंच से “नाद ब्रम्ह” के सीर्षस्थ साधक सुर सम्राट तानसेन को स्वरांजलि अर्पित कर रहे हैं। 

तानसेन समारोह के दूसरे दिन की प्रातः कालीन सभा का आगाज़ राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्व विद्यालय के आचार्यों व विद्यार्थियों द्वारा प्रस्तुत ध्रुपद गायन के साथ हुआ। राग  "अहीर भैरव" में विलंबित ध्रुपद रचना के बोल थे "एक दंत लंबोदर मुसिक वाहन सिद्ध सदन गिरिजा सुत गणेश"। इसके बाद राग "बैरागी" और सूल ताल में ध्रुपद " डम डम डमरू बाजे" की प्रस्तुति दी। पखावज पर श्री जयंत गायकवाड़ और तबला पर श्री विनय राठौर द्वारा संगत की गई। 

बांसुरी और तबले की जुगलबंदी में झरे मीठे-मीठे सुर.....

मुंबई से पधारे श्री तेजस विंचुरकर एवं मिताली खरगोणकर द्वारा राग "विभास" में अलापचारी के साथ बाँसुरी व तबले की जुगलबंदी में जब मीठे-मीठे सुर झरे तो रसिक उसके माधुर्य में गोते लगाते नज़र आए। उन्होंने विलंबित ताल रूपक में गत व द्रुत तीन ताल में एक गत की मनोहारी प्रस्तुति दी। पहाड़ी राग में एक मधुर धुन निकालकर अपने वादन को विराम दिया। सिलसिलेवार बढ़त व रूपकारी युक्त बाँसुरी व तबले की जुगलबंदी ने रसिकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। 

आज कैसी धूम मची बृज में....

तानसेन समारोह के दूसरे दिन प्रातःकालीन सभा में दूसरे कलाकार के रूप में  इंदौर से पधारे श्री मनोज सर्राफ़ का ध्रुपद गायन हुआ।  उन्होंने नोम तोम के आलाप से शुरू करके राग “चारुकेशी” में दो बंदिशें पेश की । धमार में पहली बंदिश के बोल थे "आज कैसी धूम मची बृज में"। इसके बाद सूलताल में दूसरी बंदिश पेश की जिसके बोल थे "बांके बनबारी"। उन्होंने रागदारी की बारीकियों के साथ दोनों ही बंदिशों को पूरे कौशल से गाया। उनके साथ श्री संजय पंत आगले ने पखावज पर संगत की। 

संजय गरुड़ ने तानसेन की धरती पर जीवंत की घरानेदार गायकी...

दोपहर के राग " शुद्ध सारंग में श्री संजय गरुड़ ने एक ताल में विलंबित बड़ा ख्याल " हे मानत नाहिं पिया..." का जब अपनी खुली और खनकदार आवाज में सुमधुर गायन किया तो गान मनीषी तानसेन की धरती घरानेदार गायकी जीवंत हो गई। पुणे से पधारे श्री गरुड़ के गायन में मूर्धन्य गायक स्व भीमसेन जोशी और किराना घराने की बारीकियाँ साफ झलक रहीं थीं। उनके गायन से श्रोता पुरानी यादों में खो गए। उन्होंने सुरीली तान और सुंदर अलापचारी के साथ तीन ताल में निबद्ध छोटा ख्याल " अब मोरी बात मान ले.." प्रस्तुत कर संगीत रसिकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। गरुड़ जी ने किरवानी में “सजनवा तुम क्या जानो पीर " ठुमरी सुनाकर रसिकों को विरह रस में डुबोया तो भीमसेन जोशी का प्रसिद्ध भजन " बाजे मुरलिया बाजे.." सुनाकर कृष्ण और गोपियों के निश्छल प्रेम का अहसास कराया। इसी के साथ उन्होंने अपने गायन को विराम दिया। उनके गायन में श्री अनिल मोघे ने तबले पर और श्री जितेन्द्र शर्मा ने हारमोनियम पर नफासत भरी संगत की। तानसेन समारोह के दूसरे दिन प्रातःकालीन सभा में तीसरे कलाकार के रूप में संजय गरुड़ की प्रस्तुति हुई। 

राग "जौनपुरी" में सारंगी वादन सुन झूमे रसिक..

तानसेन समारोह में सोमवार की प्रातःकालीन सभा का समापन सुविख्यात सारंगी वादक पं भारत भूषण गोस्वामी के सारंगी वादन से हुआ। सारंगी वादन से झरी मिठास से रसिक सराबोर हो गए। नई दिल्ली से पधारे पं भारत भूषण जी ने राग "जौनपुरी" में सारंगी वादन किया। यह राग अत्यंत मधुर और लोकप्रिय राग है। पंडित जी ने इस राग में विलंबित गत एक ताल में और द्रुत लय तीन ताल में प्रस्तुत की। इसके बाद मिश्र भैरवी में बनारस घराने की ठुमरी व दादरा की मधुर धुन निकाली। पं भारत भूषण जी ने अपने सारंगी वादन में बड़ी निपुणता के साथ राग विस्तार तो किया ही, साथ ही तान की बारीकियों को बहुत ही सुरीले अंदाज में पेश कर समा बांध दिया।इनके साथ तबले पर उस्ताद सलीम अल्लाहवाले ने कमाल की संगत की। 

हितेन्द्र सिंह भदौरिया 


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