पूर्व मुख्य न्यायाधिपति सर्वोच्च न्यायालय, भारत श्री रमेशचंद्र जी लाहोटी की स्मृति में श्रद्घांजलि सभा का आयोजन
ग्वालियर । ग्वालियर संभाग ही नहीं अपितु म.प्र. का नाम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रोशन करने वाले न्याय के सर्वोच्च पद, मुख्य न्यायाधिपति सर्वोच्च न्यायालय भारत को सुशोभित करने वाले न्यायमूर्ति श्री रमेशचन्द्र जी लाहोटी को पुष्पांजलि देने, उनकी नीति और विचारों को आत्मसात करने के लिए आज सायं 5.00 बजे श्रद्घांजलि सभा का आयोजन ‘चेम्बर भवन` में किया गया।
श्रद्घांजलि सभा कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे एमपीसीसीआई के उपाध्यक्ष-पारस जैन ने कहा कि श्रद्घेय श्री रमेशचंद्र जी लाहोटी जी का जीवन सादगी से परिपूर्ण था, उनकी कार्यशैली और उनसे मिली प्रेरणा को शब्दों में पिरोना मेरे लिए संभव नहीं है। मैने उनके जीवन से एकलव्य की तरह बहुत कुछ सीखा है। उनके मिलने पर हमें कभी यह महसूस ही नहीं हुआ कि हम भारत के सर्वोच्च न्यायाधिपति के समक्ष बैठे हैं। मैं अपनी ओर से एवं व्यापार एवं उद्योग जगत की ओर से अपने श्रद्घासुमन एवं भावभीनी श्रद्घांजलि अर्पित करता हूं।
पूर्व मुख्य न्यायाधिपति, सर्वोच्च न्यायालय भारत श्री आर.सी. लाहोटी के जीवन परिचय पर जस्टिस श्री एन.के. मोदी जी द्बारा विस्तार से प्रकाश डाला गया। आपने कहा कि वह जब जिला न्यायाधीश बने तब मेरा उनसे परिचय हुआ। उच्च पद पर रहने पर भी उनकी सादगी बेमिसाल थी दूसरों की मदद के लिए वह सदैव तत्पर रहते थे। कई बार किसी विशेष परिस्थिति में मार्गदर्शन मुझे चाहिए होता तो सबसे पहले मेरे जहन में श्री लाहोटी जी का ही नाम आता था। वह हमेशा मुझे मार्गदर्शन देने के लिए तत्पर रहते थे। उनमें परिवार को जोड़ने की बेमिसाल कला था।
श्रद्घांजलि सभा में उद्बोधन देते हुए एमपीसीसीआई के कोषाध्यक्ष-वसंत अग्रवाल ने कहा कि आदरणीय लाहोटी अंकल जी के साथ वर्ष 1990 के दशक में काम करने का अवसर प्राप्त हुआ तत्समय रोटरी की युवा शाखा रोट्रेक्ट के अध्यक्ष होने के नाते डिस्ट्रिक्ट रायला कैम्प की जिम्मेदारी मुझे दी गई थी, जिसमें अंकल रोटरी की ओर से कन्वेनर थे। उनकी कार्यशैली, कार्यक्षमता को व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्दों का अभाव है। उनसे मिलने पर समय का पता ही नहीं चलता था। आपने कहा कि 82 वर्ष का इतना सुंदर, धार्मिक एवं यशस्वी जीवन विरलों को ही प्राप्त होता है।
शहर के सुप्रसिद्घ आर्किटेक्ट श्री प्रभात भार्गव जी ने श्री लाहोटी जी के साथ बिताये पलों को याद करते हुए कहा कि वह जब हाईकोर्ट जज बने तो गांधी रोड पर उनका बंगला था। रोटरी क्लब के वह अध्यक्ष और मैं सचिव था तो उनसे मिलने उनके बंगले पर जाता था। एक बार उन्होंने कहा कि आप इतनी दूर मुझसे मिलने आते हैं, मैं हाईकोर्ट से सीधे आपके पास मिलने आ जाया करूंगा, यह थी उनकी सादगी। उनके बोलने की कला सम्मोहक थी।
राजवैद्य श्री वैणी माधव शास्त्री की अनुपस्थिति में उनके संदेश का वाचन मानसेवी सचिव डॉ. प्रवीण अग्रवाल द्बारा किया गया। श्री शास्त्री ने अपने संदेश में कहा कि ìङ्मक्ति के जीवन का सेतु जन्ङ्क स्तंभ और निर्वाण स्तंभ के बीच बनता है। जन्ङ्क स्तंभ कुल-संस्कार शिक्षा और सत्संग से दृढ होता है। जीवन के निष्ठापूर्वक कार्ङ्म-सङ्काज सेवा, सद्भाव अनुशासन तथा प्रेरणादाङ्मक कार्ङ्म शैली से निर्वाण स्तंभ स्ङ्करण किङ्मा जाता है। वही जन्ङ्क सङ्खल होता है जिससे कुल, नगर, जिला, प्रदेश और राष्ट्र का आदर्श प्राप्त होता है। श्री लाहोटी का जीवन सेतु और उसके आधार स्तंभ सर्वदा स्ङ्करणीङ्म रहेंगे। ङ्केरा उनके दीर्घ जीवन से निरंतर दशकों तक श्रेष्ठ संबंध रहा है।
पूर्व महाधिवक्ता म.प्र. श्री आर.डी. जैन साहब ने अपने उद्बोधन में श्री लाहोटी से जुड़ी स्मृतियों को याद करते हुए कहा कि आज का सम्बोधन मुझे व्यक्ति कर रहा है, उनकी कार्य शक्ति अद्भुत थी, वह दूसरों के लिए जिया करते थे। उनके वकालत काल में उन्होंने दूसरे वकीलों को पुस्तकें उपलब्ध कराने के लिए लाइब्रेरी खोल रखी थी ताकि दूसरे लोग भी उनकी तरह उच्च पद पर पहुंच सकें। आपके व्यक्तित्व ने ग्वालियर को सीजेआई का पद देकर गौरवान्ति किया है, ग्वालिरयवासी, अपने रत्न को कभी भूल नहीं पायेंगे।
जस्टिस-श्री जितेन्द्र माहेश्वरी जी, सर्वोच्च न्यायालय भारत ने अपने उद्बोधन में कहा कि एलएलबी करने के पश्चात मैंने अपना करियर आदरणीय लाहोटी जी के साथ प्रारंभ किया। वह न्याय क्षेत्र के साथ सामाजिक क्षेत्र के भी बहुत बड़ी शख्सियत थे। आज मैं जो कुछ भी हूं, उन्हीं के आशीर्वाद से हूं। उनके साथ बिताया हुआ हर पल मुझे परेशानी में मजबूत करता है। उनके लिए संस्था ही सर्वोपरि थी। मैं ऐसे व्यक्ति के श्री चरणों में अपनी श्रद्घांजलि अर्पित करता हूं।
केन्द्रीय मंत्री, भारत सरकार-श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि कई लोग पद से सुशोभित होते हैं और कई विरले पद को सुशोभित करते हैं, ऐसे ही थे हमारे लाहोटी जी। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि वह हमारे देश के नवरत्न थे। श्री लाहोटी जी के लिए उनका कर्तव्य ही उनकी पूचा अर्चना था। वह न्याय क्षेत्र में एक सिपाही की तरह रहे, उनसे मिलने पर उनका व्यवहार धर्मगुरू की तरह प्रतीत होता था। जब मैं राज्यसभा सदस्य बना तब वह मुझसे मिलने आये और उन्होंने मुझे श्रीमदभागवत भेंट की, जिससे पढने से मुझे अद्भुत शक्ति प्राप्त हुई। उनके चेहरे पर मुस्कान और व्यक्तित्व में गंभीरता उनकी परिचायक थी। वह जब अस्पताल के आईसीयू में भर्ती थे तब भी उन्होंने एक आर्बिट्रेशन की कॉफ्रेंस को अटेण्ड किया। श्री लाहोटी जी हर व्यक्ति के दिल को छूने वाली शख्सियत थे। हम अपना कार्य जिम्मेदारी, विश्वास और सत्यता के साथ करें, यह प्रेरणा हमें उनके जीवन से मिलती है। ईश्वर उन्हें अपने श्रीचरणों में विशेष स्थान दे और उनके परिवार को इस दुख को सहन की शक्ति, यही मेरी प्रार्थना है।
जस्टिस श्री के.के. लाहोटी जी ने अपने आभार उद्बोधन में कहा कि ग्वालियर शहर ने हमारे परिवार को पूरे देश में पहचान दी। ग्वालियर की माटी को मैं शत् शत् नमन करता हूं। आज ग्वालियर ने जो उनको श्रद्घांजलि अर्पित की है, उसके लिए मैं और मेरा परिवार आपका आभारी है। आप सभी की भावना को मैं पूर्ण नमन करता हूं।
श्रद्घांजलि सभा में म.प्र. उच्च न्यायालय खण्डपीठ ग्वालियर के जस्टिस रोहित आर्या, जस्टिस राजीव श्रीवास्तव, जस्टिस दीपक अग्रवाल सहित पूर्व न्यायाधीश राकेश सिन्हा, रजिस्ट्रार, जिला न्यायालय के न्यायाधीशगण सहित एमपीसीसीआई के पूर्व पदाधिकारीगण कार्यकारिणी समिति सदस्यगण व सदस्यगण काफी संख्या में उपस्थित रहे।
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