निर्जला एकादशी व्रत 11जून शनिवार को उदया और त्रिस्पर्शा योग में व्रत श्रेष्ठ है

दशमी तिथि 10 जून शुक्रवार को प्रातः 07:26 बजे तक है।11 जून शनिवार को एकादशी तिथि प्रातः 05:45 बजे तक है।

 इसलिए निर्जला एकादशी  व्रत स्मार्त केलिए 10 जून शुक्रवार को और वैष्णो के लिए 11 जून शनिवार का होगा।

उदया एकादशी  तिथि 11 जून शनिवार की है। दूसरे शनिवार को एकादशी,द्वादशी और त्रियोदशी  तीन तिथियां मिल गई जिसे त्रिस्पर्शा योग कहा जाता है जिसमे व्रत करने बाले वैष्णवादि सभी संप्रदायवालो को त्रियोदशी में पारण करने से महा पुण्य का फल मिलता है।

यह जाकारी ज्योतिषाचार्य डॉ हुकुमचंद जैन ने देते हुए बताया।

 जैन ने ज्योतिष गणना में कहा कि त्रिस्पर्शा और उदया एकादशी तिथि ही निर्जला एकादशी व्रत में ग्रहण करना चाहिए। 

ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी के नाम से जाना जाता है। निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी या पांडव एकादशी भी कहते है। निर्जला एकादशी का व्रत अन्य सभी एकादशी के व्रत से कठिन होता है क्योंकि इसमें भोजन के साथ-साथ पानी का भी त्याग करना पड़ता हैं। भरी गर्मी में आने वाले इस व्रत में बिना जल के रहना पड़ता है इसलिए इसे निर्जला एकादशी कहते है।चूँकि निर्जला एकादशी का व्रत कठिन है इसलिए इस व्रत का फल भी अधिक है। शास्त्रों में तो यहाँ तक कहाँ गया है कि विधिपूर्वक निर्जला एकादशी का व्रत करने से अन्य सभी एकादशियों के बराबर फल प्राप्त होता है।

निर्जला एकादशी व्रत कथा -

एक बार जब महर्षि वेदव्यास पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प करा रहे थे। तब महाबली भीम ने उनसे कहा- पितामह। आपने प्रति पक्ष एक दिन के उपवास की बात कही है। मैं तो एक दिन क्या, एक समय भी भोजन के बगैर नहीं रह सकता- मेरे पेट में वृक नाम की जो अग्नि है, उसे शांत रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन करना पड़ता है। तो क्या अपनी उस भूख के कारण मैं एकादशी जैसे पुण्य व्रत से वंचित रह जाऊंगा?

तब महर्षि वेदव्यास ने भीम से कहा- कुंतीनंदन भीम ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला नाम की एक ही एकादशी का व्रत करो और तुम्हें वर्ष की समस्त एकादशियों का फल प्राप्त होगा। नि:संदेह तुम इस लोक में सुख, यश और मोक्ष प्राप्त करोगे। यह सुनकर भीमसेन भी निर्जला एकादशी का विधिवत व्रत करने को सहमत हो गए और समय आने पर यह व्रत पूर्ण भी किया। इसलिए वर्ष भर की एकादशियों का पुण्य लाभ देने वाली इस श्रेष्ठ निर्जला एकादशी को पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।

निर्जला एकादशी 

 निर्जला एकादशी व्रत में क्या करें-

भगवान विष्णु की पूजा करें।

किसी भी स्थिति में पाप कर्म से बचें अर्थात पाप न करें।

माता पिता और गुरु का चरण स्पर्श करें।

श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें।

श्री रामरक्ष स्तोत्र का पाठ करें।

श्री रामचरितमानस के अरण्यकाण्ड का पाठ करें।

धार्मिक पुस्तक का दान करें।

यह महीना गर्मी का होता है इसलिए प्याऊ की व्यवस्था करें।

अपने घर की छत पे पानी से भरा पात्र अवश्य रखें।

श्री कृष्ण की उपासना करें।

निर्जला एकादशी व्रत में क्या न करें -

अन्न किसी कीमत पे ग्रहण न करें।

निन्दा न करें।

माता पिता और गुरु का अपमान न करें।

घर में चावल न पकाएं।

गन्दगी मत होने दें।

दिन में मत सोएं।

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