सुरों की गरमाहट से फीके पड़े जाड़ों के नमो-नाज़ुक लम्हे

तानसेन समारोह-2022

(प्रात:कालीन सभा 20 दिसम्बर)

तानसेन समारोह की प्रातःकालीन सभा में एक से बढ़कर एक प्रस्तुतियाँ  



ग्वालियर 20 दिसम्बर / सुदूर देश चिली से आए कला साधकों के बैंड की मधुर धुनें, पखावज व तबले की मदमाती थाप से झर रहे प्रेम में पगे सुर और इन सबके बीच जब गायन की रसभीनी तानें निकलीं तो ऐसा लगा मानो सुरों की गर्माहट को जाड़ों के नरम नाजुक लम्हों ने लिबास बनाकर ओढ़ लिया है। मौका था तानसेन समारोह के दूसरे दिन प्रात:कालीन सभा का । इस सभा में विश्व संगीत के तहत चिली देश के “सेर ओ ड्यूओ बैंड” की प्रस्तुति हुई। वहीं उदयीमान एवं युवा शास्त्रीय गायिका सुश्री दीपिका भिड़े भागवत मुम्बई व सुश्री श्रुति फड़के देशपाण्डे पुणे की उच्चकोटि की घरानेदार गायकी और सुविख्यात पखावज वादक पं. डालचंद शर्मा के पखावज वादन ने संगीत सभा में अलग ही रंग भरे। 

पारंपरिक ढंग से ध्रुपद गायन के साथ हुई प्रातःकालीन सभा की शुरुआत

विश्व संगीत समागम तानसेन समारोह में मंगलवार की प्रातःकालीन सभा का शुभारंभ ध्रुपद केन्द्र भोपाल के ध्रुपद गायन के साथ हुआ। राग "भैरव" में प्रस्तुत ध्रुपद रचना के बोल थे "शिव आदि मदअंत"। पखावज पर श्री आदित्य दीप ने संगत की।

इसके बाद स्थानीय शंकर गांधर्व महाविद्यालय के विद्यार्थियों ने  राग "देसी" और चौताल में निबद्ध ध्रुपद बंदिश "रघुवर की छवि सुंदर.." का सुमधुर गायन किया। पखावज संगत श्री मुन्नालाल भट्ट की रही।

चिली के कलाकारों ने पाश्चात्य मुरली से दी सुर सम्राट को स्वरांजलि....




सात समंदर पार चिली से आए "सेर ओ ड्यूडो बैंड" के कला साधकों ने पाश्चात्य मुरली (बाँसुरी) और इलेक्ट्रॉनिक गिटार सहित अन्य वाद्य यंत्रों की संगत से मधुर धुन बिखेर कर युवा दिलों की धड़कनें बढ़ा दीं। वहीं सुधीय रसिकों को लगा कि द्वापर युग में मुरलीधर ने ब्रजभूमि से अपनी मुरली की तान से  मानव सभ्यता को प्रेम का जो संदेश दिया था, उससे पश्चिमी देश भी अछूते नहीं है। इस साल के तानसेन समारोह की दूसरी और आज की प्रातःकालीन सभा में विश्व संगीत समागम के तहत चिली राष्ट्र के वालपराइसो शहर के बैंड की प्रस्तुति हुई। इस बैंड के मुख्य कलाकार थॉमस कैरासको मुख्यतः बाँसुरी वादक हैं और निकोलस एकॉस्टिक इलेक्ट्रॉनिक गिटार वादन करते हैं। चिली के कलाकारों ने पाश्चात्य लोकधुनें पेश कर सुर सम्राट को स्वरांजलि अर्पित की। साथ ही तेज रिदम में पारंपरिक पाश्चात्य वादन कर कर श्रोताओं में जोश भर दिया।

"हूँ तो जैहौं पिया के देशवा..."

देश की आर्थिक राजधानी मुंबई से तानसेन समारोह में पधारीं शास्त्रीय संगीत की उदयीमान गायिका सुश्री दीपिका भिड़े भागवत ने अपनी माधुर्य भरी गायिकी से गुणीय रसिकों का मन मोह लिया। उन्होंने राग " जौनपुरी" और विलंबित तिलवाड़ा ताल में जब बड़ा ख्याल "हूँ तो जैहौं पिया के देशवा.." का गायन अपनी दानेदार मधुर आवाज में किया तो रसिक श्रोता विरह रस में डूब गए। दीपिका भिड़े ने इसी कड़ी में एक ताल में निबद्ध छोटा ख्याल " रे तोरी शान बरक़रार रहे.." प्रस्तुत कर घरानेदार गायकी को जीवंत कर दिया। उन्होंने मीरा रचित भजन " जागो बंसी बारे.." गाकर भक्तिरस की धारा बहाई और अपने गायन को विराम दिया। उनके गायन में तबले पर श्री अनंत मोघे और हारमोनियम पर श्रीमती रचना शर्मा ने दिलकश संगत की।

पखावज से झरे मान-मनुहार के अनूठे सुर



नाथद्वारा परंपरा के देश के सुविख्यात पखावज वादक पंडित डालचंद शर्मा की अंगुलियों का सानिध्य पाकर पखावज से मान-मनुहार के अनूठे सुर झरने लगे। सुधीय रसिकों को एक बारगी ऐसा महसूस हुआ कि किसी प्रेयसी की अपनी पिया से मीठी- मीठी नोकझोंक चल रही है। तानसेन समारोह में मंगलवार को सजी प्रातःकालीन सभा में तीसरे कलाकार के रूप में राजस्थान से पधारे पं डालचंद शर्मा का पखावज वादन हुआ। पंडित डालचंद जी वर्ष 2016 के तानसेन अलंकरण से सम्मानित हो चुके हैं ।

पंडित जी ने अपने वादन के लिए श्रंगार प्रधान ताल  "धमार'' को चुना। उत्कृष्ट वादनकर पंडित जी ने श्रंगारिक गुलदस्ते से ओतप्रोत रसों का गलीचा बिछा दिया। उन्होंने गणेश परन से पखावज वादन का आगाज़ किया। इसके बाद कर्णप्रिय फुटकर परनें पेश कीं। इसी क्रम में शिव स्तुति परण , झाला व रेला पेश कर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने ताल चौताल में शिव परन, धाकिट के प्रकार, अतीत-अनाघात, धिन नक बाज, रेला आदि की खूबसूरत प्रस्तुति दी।

उनके वादन में हारमोनियम पर इंदौर के श्री साखरवाल की संगत कमाल की रही। पखावज पर पंडित जी के शिष्य श्री हरिश्चन्द्र पति ने अच्छा साथ निभाया। तानपूरे पर योगिनी तांबे और खुशबू भारके ने साथ निभाया।

गुनगुनी धूप में श्रुति फड़के ने की सुरों की बारिश..



शास्त्रीय संगीत के सुरमयी क्षितिज पर किराना सांगीतिक घराने का परचम लहरा रहीं युवा गायिका सुश्री श्रुति फड़के देशपाण्डे ने गुनगुनी धूप में मीठे-मीठे सुरों की बारिश कर रसिकों के कानों में मिसुरी घोल दी। विश्व संगीत समागम तानसेन समारोह में पुणे से प्रस्तुति देने पधारीं श्रुति फड़के ने राग "मुल्तानी" और एक ताल में विलंबित बंदिश " गोकुल गाँव का छोरा.." का मनोहारी गायन किया। सुंदर अलापचारी के साथ अपने गायन को आगे बढ़ाते हुए  इसी राग और द्रुत एक ताल में निबद्ध रचना " नैनन में आन बान " प्रस्तुत की। इसके बाद एक कजरी सुनाई। जिसके बोल थे "सावन की ऋतु.."। उन्होंने  राग " भैरवी" में प्रसिद्ध भजन  "धन्य भाग सेवा का अवसर पाया.." गाकर  अपने गायन को विराम दिया। मंगलवार की प्रातःकालीन सभा में अंतिम कलाकार के रूप में उनकी प्रस्तुति हुई।

श्रुति फड़के के गायन में श्रीमती संगीता-श्री संतोष अग्निहोत्री दंपति ने क्रमशः तबले व हारमोनियम पर बहुत शानदार संगत की। 

हितेन्द्र सिंह भदौरिया 


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