मुहूर्त गणना के लिए पंचांग का होना आवश्यक है
वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य डॉ हुकुमचंद जैन ने बताया इस बार रक्षाबंधन की पूर्णिमा तिथि 30 अगस्त बुधवार को प्रातः 10:58 बजे प्रारंभ हो जायेगी जो दूसरे दिन 31 अगस्त को प्रातः 07:05 बजे तक रहेगी।इस दिन 30 अगस्त को ही पूर्णिमा के प्रारंभ समय यानी 10:58 से ही भद्रा तिथि भी प्रारंभ हो जायेगी जो रात्रि 09:01 बजे तक रहेगी। इस बार भद्रा तिथि का निवास पृथ्वी पर होने से इस समय रक्षाबंधन का कार्य करना निषेध है।
*आइए जानते हैं भद्रा क्या है ज्योतिष व अन्य शास्त्रों के अनुसार* मुहूर्त गणना के लिए पंचांग का होना आवश्यक है।तिथि,वार,नक्षत्र,योग व करण इन पांच अंगों को मिलाकर ही 'पंचांग' बनता है। करण पंचांग का पांचवां अंग है। तिथि के आधे भाग को करण कहते हैं। तिथि के पहले आधे भाग को प्रथम करण तथा दूसरे आधे भाग को द्वितीय करण कहते हैं। इस प्रकार 1 तिथि में दो करण होते हैं। करण कुल 11 प्रकार के होते हैं इनमें से 7 चर व 4 स्थिर होते हैं
चर करण- 1 बव 2 बालव 3 कौलव 4 तैतिल 5 गर 6 वणिज 7 विष्टि (भद्रा)।
स्थिर करण- 8 शकुनि 9 चतुष्पद 10 नाग 11 किंस्तुघ्न।
इसमें विष्टि करण को ही भद्रा कहते हैं। समस्त करणों में भद्रा का विशेष महत्व है। शुक्ल पक्ष अष्टमी (8) व पूर्णिमा (15) तिथि के पूर्वाद्ध में, चतुर्थी (4) व एकदाशी (11) तिथि के उत्तरार्द्ध में, एवं कृष्ण पक्ष की तृतीया (3) व दशमी (10 ) तिथि के उत्तरार्द्ध में, सप्तमी (7) व चतुर्दशी (14) तिथि के पूर्वाद्ध में 'भद्रा' रहती है अर्थात् विष्टि करण रहता है।
जब चन्द्रमा कर्क, सिंह, कुंभ व मीन राशि में विचरण करता है और भद्रा विष्टि करण का योग होता है, तब भद्रा पृथ्वीलोक में रहती है।
इस बार 30 अगस्त बुधवार को 10:58 बजे से चंद्रमा कुंभ राशि में प्रवेश करेगा इस से भद्रा का निवास पृथ्वी पर रहेगा।
इस समय सभी शुभ कार्य वर्जित होते हैं। रक्षाबंधन अर्थात राखी बांधना इस समय निषेध है।
*इस बार भद्रा समाप्ति 30 अगस्त को रात्रि 09:01 बजे के बाद से 31 अगस्त प्रातः 07:05 बजे तक राखी बांधी जा सकेगी।*
जैन ने कहा मुहुर्त्त चिंतामणि और अन्य ग्रंथों के अनुसार भद्रा में कई कार्यों को निषेध माना गया है।
जैसे मुण्डन संस्कार, गृहारंभ, विवाह संस्कार, गृह - प्रवेश, रक्षाबंधन, होलीका दहन , यात्रा, नया व्यवसाय आरंभ करना और सभी प्रकार के मंगल कार्य भद्रा में वर्जित माने गये हैं।
पंचक का रक्षाबंधन त्योहार से कोई लेना देना नहीं है। राहू काल और शुभ की चौघड़िया जैसे सभी कार्यों के लिए है वैसे ही रहती है।
मुहुर्त्त मार्त्तण्ड के अनुसार भद्रा में किए गये शुभ काम अशुभ होते हैं। कश्यप ऋषि ने भद्रा का अति अनिष्टकारी प्रभाव बताया है।
उनके अनुसार अपना जीवन जीने वाले व्यक्ति को कोई भी मंगल काम भद्राकाल में नहीं करना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति अनजाने में ही मंगल कार्य करता है तब उसके मंगल कार्य के सब फल खतम हो सकते हैं।
कुछ शास्त्र विदो ने भद्रा काल को स्वर्ग, पाताल लोक में रहते कार्य करने और उसके पुच्छ काल के कुछ समय में शुभ कार्य करने को कहा।
रविवार,मंगलवार,बुधवार,शनिवार की भद्रा और पृथ्वी लोक की भद्रा को अधिक अशुभ माना गया है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें