सर्व पितृ शनि अमावस्या को सूर्य ग्रहण के साथ दुर्लभ संयोग

यू तो हर माह अमावस्या तिथि आती है इस प्रकार एक वर्ष में बारह अमावस्या तिथि आती है  परंतु शनि बार को अमावस्या तिथि वर्ष में दो या तीन बार ही आती है। 

वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य डॉ हुकुमचंद जैन ने जानकारी देते हुए कहा कि  इस बार की अमावस्या  विशेष महत्त्व वाली है क्योंकि शनिवार को है साथ ही सूर्य ग्रहण भी है।

परंतु सूर्य ग्रहण भारतीय समय अनुसार रात्रि समय 08:34 बजे से स्पर्श करेगा जो भारत में दिखाई नहीं देगा इसलिए इस ग्रहण  की भारत में सूतक आदि धार्मिक मान्यता नहीं है।

   आश्विन माह में शनि बार को सूर्य ग्रहण  के साथ  पड़ने से यह अमावस्या सर्व पितृ मोक्षदायनी बन गई। इस दिन जिन राशियों पर शनि की ढैया,साढ़ेसाती,या महादशा चल रही है उन लोगो के लिए तो वरदान सिद्ध  होगी।

जैन ने कहा इस दिन उन लोगों का श्राद्ध और तर्पण किया जाता है, जिनकी मृत्यु तिथि पता नहीं है। साथ ही इस दिन श्राद्ध के लिए बनाए गए भोजन से पंचबलि अर्थात गाय, कुत्ते, कौए, चीटियों और देवों के लिए भोजन का अंश निकालकर उन्हें देना चाहिए। फिर किसी ब्राह्मण को कराना चाहिए।

अमावस्या तिथि  13 अक्टूबर को रात्रि 9 बजकर 51 मिनट से प्रारंभ होगी इस का समापन 14 अक्टूबर, शनिवार की रात 11 बजकर 25 मिनट पर हो जायेगा।

इस दिन दुर्लभ संयोग* सर्वपितृ अमावस्या पर दुर्लभ संयोग बन रहा है

ज्योतिषाचार्य जैन  ने बताया   इस बार सर्वपितृ अमावस्या पर बहुत ही दुर्लभ शुभ संयोग बन रहा है। इस बार अमावस्या के दिन शनिवार होने के चलते इसे शनिचरी अमावस्या भी कहा जाएगा साथ ही  इस दिन साल का अंतिम सूर्य ग्रहण भी लगने जा रहा है इस दिन शुभ इंद्र योग भी बन रहा है  सर्वपितृ अमावस्या अश्विन माह में पड़ने से इसका महत्व और बढ़ गया है  इन शुभ संयोगों में पितरों का तर्पण कर उन्हें प्रसन्न और तृप्त किया जा सकता है साथ ही शनि, राहु,केतु की अशुभ दशा या पितृ दोष, काल सर्प दोष से पूरी तरह छुटकारा पाया जा सकता है।

ऐसे करें पितरों को विदा

 सर्वपितृ अमावस्या तिथि को ही पितृ पक्ष का समापन होता है। इस दिन प्रात: स्नान करने के बाद गायत्री मंत्र का जाप करते हुए सूर्यदेव को जल अर्पित करना चाहिए।पीपल में पितरों का वास माना जाता है।इसलिए इस दिन पीपल के पेड़ पर जल जरूर चढ़ाएं। इस दिन काले तिल के साथ पितरों को जल अर्पित करें, इससे घर में हमेशा पितरों का आशीर्वाद बना रहता है।

 दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिश्रित जल से पितरों का तर्पण करें। माना जाता है कि जल का तर्पण करने से पितरों की प्यास बुझती है और जन्म कुंडली में पितृ दोष,कालसर्प योग शनि की पीड़ा से छुटकारा हमेशा के लिए मिल जाता है।

इन लोगों को इस दिन जरूर भोजन कराए

घर में श्राद्ध के लिए बनाए गए भोजन से पंचबलि अर्थात गाय, कुत्ते, कौए, देव एवं चीटिंयों के लिए भोजन का अंश निकालकर उन्हें देना चाहिए। श्रद्धापूर्वक पितरों से मंगल कामना करें।

इस दिन ब्राह्मण या किसी गरीब जरूरतमंद को भोजन जरूर करवाएं और अपने सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देकर विदा करें।इस दिन बहन, दामाद और भांजा-भांजी को भी भोजन अवश्य कराएं। माना जाता है कि उनके भोजन के बिना पितर प्रसन्न नहीं होते हैं। इसके बाद अपने पूरे परिवार के साथ बैठकर भोजन करें।

 भोज के बाद पितरों को धन्‍यवाद देना चाहिए और जाने-अनजाने हुई भूल के लिए माफी मांगनी चाहिए।

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