गीता जयंती, मोक्षदा एकादशी व्रत 22 ,23 को दो दिन


मोक्षदा एकादशी व्रत,गीता जयंती दोनो ही मार्गशीर्ष  शुक्ल पक्ष एकादशी को   एक ही दिन में पड़ती हैं। इस दिन से श्री कृष्ण जी ने अर्जुन को गीता का ज्ञान देना प्रारंभ किया इस लिए गीता जयंती  इस दिन मनाई जाती हैं। इस मोक्षदा एकादशी का व्रत को मोन  रहकर करने से मोनी एकादशी भी कहा जाता है।

वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य डॉ हुकुमचंद जैन ने बताया कि इस बार 22 और 23 दिसंबर दो दिन यह व्रत रखा जाएगा। 22 दिसंबर को गृहस्थ जन व्रत रखेंगे और 23 दिसंबर को वैष्णव जन व्रत रखेंगे।

जैन ने कहा कि  22 दिसंबर शुक्रवार को एकादशी तिथि प्रातः 08:16 बजे से प्रारंभ हो रही है और 23 को प्रातः 07:11 बजे तक समाप्त हो रही है। ऐसे में 22 को सूर्योदय के समय तिथि किसी भी शहर में नहीं  होगी क्योंकि 08:16 से प्रारंभ है। 23 को जहा पर सूर्योदय 07:11 बजे से पहले उदय होगा तो सूर्योदय के संयोग में 23 को मिलेगी ।

  मान्यता है कि इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की विधि विधान के साथ पूजा करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है। साथ ही जीवन में सभी तरह के कष्ट समाप्त हो जाते हैं। *पारण का सही समय*

एकादशी व्रत में पारण का बड़ा महत्वा होता है। अगर जातक मुहूर्त में पारण नहीं करता है तो उसका व्रत निष्फल माना जाता है। वहीं जो लोग 22 दिसंबर को व्रत रखते हैं तो वह 23 दिसंबर को दोपहर  01:22 बजे से 03:25  बजे तक पर पारण करें। वही जो लोग 23 दिसंबर को व्रत रखेंगे, वे पारण अगले दिन यानी 24 दिसंबर को सुबह 07: 10 बजे से 09:14 बजे तक   पारण करे।

मोक्षदा एकादशी पर पूजा का मुहूर्त

एकादशी तिथि को भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा की जाती है। वहीं संध्या काल में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की भी पूजा का विधान है। ऐसे में एकादशी के दिन भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी की पूजा करने का शुभ मुहूर्त संध्या 04:00 बजे से लेकर 05:00 बजे तक का है।

मोक्षदा एकादशी की पूजा विधि

 एकादशी के दिन सुबह उठकर स्नान कर सूर्य देव की उपासना कर व्रत का संकल्प लें। घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें। ब्रह्मचर्य रखकर एकादशी व्रत का पालन करें।वहीं, संध्या के समय पीला वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु के सामने पीला पुष्प, पीला फल, धूप, दीप आदि से पूजन करें. फिर विष्णु भगवान के सामने ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः’ मंत्र का जाप करते हुए माता लक्ष्मी की भी पूजा करें। इसके बाद भगवान को भोग लगाएं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं। तत्पश्चात आरती के साथ पूजा संपन्न करें।

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