द्वापुरा युग में पृथ्वी पर राक्षसों द्वारा बढ़े अत्याचारों से मुक्ति दिलाने मथुरा के राजा कंस की जेल में वासुदेव जी की पत्नी देवकी जी के गर्भ से सोलह कलाओं से युक्त श्री कृष्ण जी का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि ,रोहिणी नक्षत्र ,वृष लग्न में बुधवार के दिन रात्रि को 12 बजे हुआ था। वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य डॉ हुकुमचंद जैन ने यह जानकारी देते हुए बताया कि जन्माष्टमी का पर्व भद्रा माह कृष्ण अष्टमी को बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है।
शास्त्रों के अनुसार, द्वापर युग में इसी दिन भगवान विष्णु ने भगवान कृष्ण का अवतार लिया था। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि व रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि को मथुरा में हुआ था। इस वार 26 अगस्त सोमवार के दिन अष्टमी तिथि रोहिणी नक्षत्र एवम स्वार्थ सिद्धि योग का संयोग बना है।
इस दिन भक्त भगवान कृष्ण के बालस्वरूप की विधिवत पूजा-अर्चना करेंगे और उपवास रखेंगे
मुहूर्त-
अष्टमी तिथि प्रारम्भ - 26 अगस्त को रात्रि 03:39 बजे अष्टमी तिथि समाप्त 27 अगस्त रात्रि 02:19 बजे पर।
रोहिणी नक्षत्र प्रारम्भ - 26 अगस्त दोपहर 03:55 बजे
रोहिणी नक्षत्र समाप्त - 27 अगस्त दोपहर 03:38 बजे
निशिथ काल का पूजन 26 अगस्त रात्रि 11:57 बजे से 12:41 बजे मध्यरात्रि
जैन ने कहा नि:संतान दंपत्तियों के लिए जन्माष्टमी का पर्व काफी महत्वपूर्ण होता है।
कहा जाता है कि जो लोग संतानहीन होते हैं या जिनकी संतान रोगी रहती है दीर्घायु नही होती या गर्भ में नष्ट हो जाती है ऐसे दंपत्तियों को जन्माष्टमी का व्रत रखकर लड्डू गोपाल की पूजा करनी चाहिए। उनकी कृपा से उस व्यक्ति को संतान की प्राप्ति हो सकती है,संतान दीर्घायु होती हैं, और जो भी जन्माष्टमी का विधि वत व्रत रखते हैं उनकी संकट दूर होकर हर मनोकामना पूर्ण होती है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें