धूपदशमी /शुगंध दशमी जैन पर्व शुक्रवार आज

  

08 सितंबर,  रविवार से दिगंबर जैन समाज के दशलक्षण महापर्व/ पर्युषण पर्व शुरू हो गए हैं  जो 17 सितम्बर को समाप्त होंगे। 

इस पर्व के अंतर्गत आने वाला पर्व सुगंध/ धूप दशमी को बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। 

वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य डॉ हुकुमचंद जैन ने बताया प्रतिवर्ष दश लक्षण महापर्व पर्व के भाद्रपद शुक्ल दशमी तिथि पर दिगंबर जैन धर्मावलंबियों द्वारा धूप दशमी का पर्व बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता हैं। 

इस वर्ष यह पर्व  शुक्रवार, 13 सितंबर  को मनाया जा रहा है। 

इस दिन सभी जैन जिनालयों में 24 तीर्थंकरों, शास्त्रों तथा जिनवाणी के सम्मुख चंदन की धूप अग्नि पर खेवेंगे यानी धूप खेवन पर्व मनाया जाता है, जो कि जैन धर्म में बहुत महत्व रखता है। इस दिन धूप खेवन यानि जिनेंद्र देव के समक्ष धूप अर्पित करके यह पर्व मनाया जाता है। तथा इस दिन सभी जैन मंदिरों में दर्शनार्थियों की भीड़ देखी जा सकती है। 

  धूप के इस पवित्र वातावरण से जैन मंदिरों में सुगंध नुमा वातावरण बन जाता है 

 इस पर्व को आनंद और उल्लास के साथ सभी जैन बच्चे,बड़े,महिला,पुरुष सभी हर्ष ,उल्लास,के साथ  मनाते है। 

 इसे धूप दशमी, धूप खेवन पर्व भी कहते हैं। धूप की सुगंध से जिनालय महक उठते है। और वायुमंडल सुगंधित व स्‍वच्‍छ हो जाता है। 

ज्योतिषाचार्य ने कहा दिगंबर जैन धर्म में सुगंध दशमी व्रत का काफी महत्‍व है और महिलाएं हर वर्ष इस इस दिन निर्जला उपवास भी  करती हैं। सुगंध दशमी के दिन हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह इन पांच पापों के त्‍याग रूप व्रत/ उपवास को धारण करते हुए चारों प्रकार के आहार का त्‍याग, मंदिर में जाकर भगवान की पूजा, स्‍वाध्‍याय, धर्म चिंतन, श्रवण, सामयिक आदि में अपना समय व्‍यतीत करने का बड़ा महत्व है। 

 इस दिन जैन जिनालयों में विशेष आकर्षण बना रहता है, क्योंकि इस त्योहार पर मंदिरों में बेहतरीन साज-सज्जा, रंगोली के द्वारा जगह-जगह के मंदिरों में मंडल विधान की रचना तथा धार्मिक संदेश देते हुई कई अन्य रचनाएं बनाकर मनोहारी झांकियों का निर्माण किया जाता है तथा धार्मिक पुस्तकें, पुराणों तथा शास्त्रों को सजाया जाता है। इस अवसर पर सुगंध दशमी कथा का वाचन भी होता है। इस दिन जिनवाणी व पुराने शास्त्रों के सम्मुख धूप चढ़ाई जाती है तथा उत्तम तप धर्म की आराधना कर आत्म कल्याण की  कामना की जाती है।

मान्यतानुसार इस धार्मिक व्रत को विधिपूर्वक करने से मनुष्य के सारे अशुभ कर्मों का क्षय होकर पुण्‍य की प्राप्ति होती है तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही सांसारिक दृष्टि से उत्‍तम शरीर प्राप्‍त होना भी इस व्रत का फल बताया गया है। इस दिन जैन धर्मावलंबी अपनी-अपनी श्रद्धानुसार कई मंदिरों में अपने शीश नवाकर सुंगध दशमी का पर्व बड़े ही उत्साह और उल्लासपूर्वक मनाते हैं।

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