ऋषि परम्परा के उद्योगपति थे रतन टाटा


आज हिंदुस्तान में सबसे बड़ी खबर श्रीमान रतन  के निधन की है। रतन टाटा आजाद भारत में उद्योग जगत के ऐसे नायक कहें या महानायक   कहें जिन्हें हर कोई स्नेह करता था। वे 86  साल के थे, उनका जाना दुखी करता है लेकिन उनका जीवन कभी भी शोक का क्षोभ  का कारण नहीं रहा ।क्योंकि उनके हिस्से में यश-कीर्ति के अलावा कुछ और था ही नहीं। वे अपयश से कोसों दूर रहे।  जो उनसे मिला  वो भी और जो उनसे नहीं मिला वो भी रतन टाटा का मुरीद था।

मै रतन टाटा से कभी नहीं मिला,लेकिन मुझे ऐसा प्रतीत होता था कि वे हमारे घर के ही बुजुर्ग सदस्य हैं।  वे न हमारी जाति के थे और न बिरादरी के ,फिर भी अपने से थे। वे पारसी थे ,ये बहुत कम लोग जानते होंगे,क्योंकि उन्होंने कभी अपने पारसी होने का डंका नहीं पीटा ,जैसे की आज लोग अपने हिन्दू होने का डंका पीटते हैं।  हिन्दुस्तान के बच्चे -बच्चे की जुबान पर रतन टाटा का नाम था ।  आखिर क्यों न होता? आखिर एक जमाने में टाटा उद्योग समूह ने भारतीयों के लिए छोटे से लेकर बड़े उपभोक्ता सामन का गुणवत्ता के साथ निर्माण किया और जन-जन तक उसे पहुंचाया। रतन टाटा दरअसल  आज के भारत में एक अपवाद थे, जो उद्योगपति होते हुए भी सादगी पसंद थे। उनका जीवन हर किसी के लिए प्रेरणा  का स्रोत है ।  उनके जीवन के तमाम ऐसे किस्से हैं जो आपको चौंकाएंगे भी और प्रभावित भी करेंगे।
आज के युग में  जहाँ कोई भी उद्योगपति विवादों से परे नहीं है । विवाद भी ऐसे जो कि जो आपको हैरान भी करें और दुखी भी। लेकिन रतन टाटा इन सबसे बचे  रहे। कैसे बचे  रहे ये शोध का विषय हो सकता है। रतन टाटा को हालाँकि भारतरत्न अलंकरण नहीं मिला लेकिन वे थे तो भारतीय उद्योग जगत  के रतन  ही। उनकी चमक दमक आखरी वक्त तक कायम रही ।  उनका नाम सड़क से संसद तक सम्मान के साथ ही लिया गया ।  कभी किसी कि सरकार के  साथ उनकी न नजदीकी रही और न दूरी।  किसी सरकार को उनकी वजह से और उन्हें किसी सरकार की वजह से न विवादित होना पड़ा और न अपमानित। उन्हें लेकर संसद में कभी कोई उत्तेजक  बस नहीं हुई ।
रतन टाटा को ईश्वर ने बेहद खूबसूरत बनाया था ।  वे यदि उद्योगपति न होते और फ़िल्मी दुनिया में काम कर रहे होते तो शायद वहां भी उनका स्थान शीर्ष पर ही होता । रतन जी खास होकर भी हमेशा आम आदमी कि बारे में सोचते थे ।  पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी कि छोटे बेटे की कल्पना से जैसे सबसे सस्ती पारिवारिक कार मारुती-800  का जन्म हुआ था उसी तरह रतन टाटा ने भी 1  लाख की कीमत वाली नैनो कार का निर्माण कराया और आम आदमी कि कार वाले सपनों में रंग भरे थे। नैनो को मारुती-800  जैसा प्रतिसाद नहीं मिला लेकिन उनकी सोच को प्रणाम किया गया और उसे एक कीर्तिमान की तरह हमेशा याद किया जाएगा।
रतन टाटा अविवाहित थे,क्यों थे इसकी एक अलग कहानी है। उस पर आज लिखना मुनासिब नहीं है। लेकिन अविवाहित   होने से उनके जीवन पर ,उनकी उपलब्धियों पर उनकी रफ्तार पर कोई फर्क पड़ा हो ये किसी ने अनुभव नहीं किया । इस मामले में आप उनकी तुलना पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी से कर सकते हैं।  उनका अविवाहित होना या उनका पढ़ा-लिखा होना कभी उस तरह विवादित नहीं हुआ जैसा आज कि जननायकों का होता है।  वे एक विरासत कि मालिक थे ।  उनके ऊपर परिवारवाद का आरोप नहीं लगाया जा सकता जिस तरह राजनेताओं पर लगाया जाता है।  हमेशा हंसमुख रहने   वाले रतन टाटा के जीवन में दर्द भी कम नहीं था लेकिन उन्होंने अपना दुःख बांटा नहीं बल्कि उसे अपने उद्योग में विलीन कर सुख में बदलने की कोशिश की ।  वे अविवाहित तो थे ही साथ ही उन्होंने जिस युवक को अपना उत्तराधिकारी बनाया था वो भी उनके जीवनकाल में ही असमय चल बसा।
रतन टाटा कि भारत के  विकास में योगदान को रेखांकित करने की जरूरत नहीं है क्योंकि वे किस न किसी रूप में भारत कि जनमानस में मौजूद हैं।  नमक से लेकर कलाई घडी तक टाटा ही टाटा है।  भारत में जो विश्वसनीयता टाटा और बाटा को मिली वैसी विश्वसनीयता कि लिए आज दुनिया कि नंबर एक और दो क्रम कि भारतीय उद्योगपतियों को भी हासिल नहीं है। बल्कि आज तो उद्योगपतियों को लुटेरों की संज्ञा दी जाने लगी है जो सरकार की मदद से ,संरक्षण से जनता को लूटने में लगे हैं।  रतन टाटा कि साथ ये सब बाबस्ता नहीं है। वे निर्विवाद रहे और जो विवाद उनके साथ जोड़े भी गए उनकी उम्र बहुत छोटी साबित हुई।  
रतन टाटा हालाँकि उद्योगपति थे किन्तु वे राजनीतिक क्षेत्र में काम करने वालों कि लिए भी आदर्श बन सकते हैं । उन्होंने अपने जीवनकाल में ही अपने उद्योग समूह से निवृत्ति ले ली थी ।  वे कुर्सी से चिपके रहने में भरोसा नहीं करते थे,जबकि रजनीति में लोग आजन्म सत्ता से चिपके रहा चाहते हैं।  रतन टाटा अपने उद्योग समूह कि मानद प्रमुख जरूर थे किन्तु उन्होंने जो आदर्श प्रस्तुत किया वो अनुकरणीय है।  वे कैमरा प्रेमी भी नहीं थे, वे मूक प्राणियों कि मित्र थे,खासतौर पर श्वानों क। मैंने कहीं पढ़ा था कि   वे सालों से मुम्बई के कोलाबा जिले में एक किताबों और कुत्तों से भरे हुए बेचलर फ्लैट में रह रहे थे।रतन टाटा कि चेरे से शर्म ऐसे टपकती थी जैसे किसी सुकुमार कि चेहरे से टपकती है ।  उन्हें कभी भारत के आज कि जन नायकों की तरह दिन में दस बार कपडे बदलते नहीं देखा गय।  इस मामले में वे उद्योग जगत के डॉ मन मोहन सिंह थे। एक खास रंग का सूट और टाई उनकी पहचान रहे ।  वे चाहते तो दुनिया का महंगे से महंगा  कपड़ा पहन सकते थे ,लेकिन सादगी से प्रेम ने उन्हें ऐसा करने  नहीं दिया ।
भारतरत्न जेआरडी टाटा रतन  टाटा के चाचा थे।  रतन टाटा का जाना लम्बे समय तक एक शून्य का कारण बना रहेगा,क्योंकि कोई दूसरा रतन टाटा पैदा होने में वक्त लगता है और कभी-कभी कोई दूसरा पहले जैसा पैदा हो भी नहीं पाता। रतन टाटा के लिए मै कोई स्मारक बनाने या कोई संसथान खोलने का सुझाव नहीं दूंगा,क्योंकि ये सब तो नेताओं की जरूरत होते हैंउद्योगपतियों की नहीं। खासतौर पर रतन टाटा जैसे ऋषि परम्परा के उद्योग पतियों को तो इसकी जरूरत होती ही नहीं है ।  विनम्र श्रृद्धांजलि
@ राकेश अचल 

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