कहते हैं की जो होता है सो अच्छा ही होता है। भारत में न्यायपालिका का प्रतीक चिन्ह आँखों पर पट्टी बंधे हाथ में तलवार लिए एक स्त्री का चित्र था । इसे न्याय की देवी कहा और माना जाता है ,क्योंकि न्याय देने का काम शायद देवता नहीं कर पाते हैं। न्याय की देवी की आँखों पर पट्टी शायद इसलिए बंधी गयी होगी ताकि वो नीर-क्षीर विवेक से न्याय कर सके,हाथ में तलवार शायद इसीलिए दी गयी होगी ताकि वो निर्ममता से दंड दे सके,लेकिन अब उसकी आँखों से पट्टी भी हटा दी गयी है और हाथ से तलवार भी छीन ली गयी है । न्याय की देवी के हाथों में उस संविधान की प्रति पकड़ा दी गयी है जो हाल के आम चुनाव में कांग्रेस के नेता राहुल गाँधी और बाकी का विपक्ष लेकर घूम रहा था।
कहते हैं कि न्याय के प्रतीक को बदलने की सारी कवायद के पीछे देश के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ हैं। उनके निर्देशों पर न्याय की देवी में बदलाव कर दिया गया है। न्याय कि देवी कि नयी प्रतिमा सुप्रीम कोर्ट में जजों की लाइब्रेरी में लगाई गई है। पहले जो न्याय की देवी की मूर्ति होती थी. उसमें उनकी दोनों आंखों पर पट्टी बंधी होती थी. साथ ही एक हाथ में तराजू जबकि दूसरे में सजा देने की प्रतीक तलवार होती थी। ये बदलाव हालाँकि सांकेतिक ही है लेकिन है अच्छा। इस फैसले पर मौजूदा सरकार की सोच भी परिलक्षित होती है। आपको याद होगा कि हमारी मौजूदा सरकार को आजकल सब कुछ बदलने का भूत सवार है । शहरों,स्टेशनों के नाम ही नहीं बल्कि अंग्रेजों के जमाने के तमाम क़ानून भी बदले गए हैं। ऐसे में न्यायपालिका क्यों पीछे रहे ? इसीलिए अब भारतीय न्यायपालिका ने भी ब्रिटिश काल को पीछे छोड़ते हुए नया रंगरूप अपनाना शुरू कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट का ना केवल प्रतीक बदला है बल्कि सालों से न्याय की देवी की आंखों पर बंधी पट्टी भी हट गई है। जाहिर है कि सुप्रीम कोर्ट ने देश को संदेश दिया है कि अब ' कानून अंधा' नहीं ह। क़ानून को अंधा होना भी नहीं चाहिए ।दुर्भाग्य से देश में आज भी तमाम क़ानून अंधे हैं।
मुझे लगता है कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य नयायधीश को ये विचार या प्रेरणा पिछले दिनों गणेशोत्स्व पर प्रधानमंत्री जी के साथ गणेश पूजन के बाद मिली। शुरुआत अच्छी है। हम सब इसका स्वागत करते है । इस समय जिस भी व्यवस्स्था की आँखों पर पट्टी बंधी हो उसे हटाने की जरूरत है। आँखों पर पट्टी का बंधा होना जहाँ नीर-क्षीर विवेक का प्रतीक माना जाता रहा है वहीं इसे जानबूझकर आखें बंद करने का प्रतीक भी माना जाता है। द्वापर में गांधारी ने अपनी आँखों पर पट्टी अपने पति प्रेम के चलते बाँधी थी ,लेकिन उसका क्या परिणाम हुआ ,पूरी दुनिया जानती है । दुनिया न भी जानती हो , लेकिन भारत का बच्चा -बच्चा जानता है। सुप्रीम कोर्ट के इस नवाचार का हम दिल खोलकर स्वागत करते हैं और चाहते हैं कि अब देश में न्यायप्रणाली की ऑंखें न सिर्फ खुलीं हों बल्कि गंगाजल से धुली भी हो। अभी तक भारतीय न्यायपालिका में देश का भरोसा कायम है यद्द्पि न्यायपालिका तमाम आधे-अधूरे फैसलों की वजह से संदिग्ध हुई है तथापि उसे अनेक फैसलों की वजह से पूरा सम्मान भी हासिल है।
दुर्भाग्य ये है कि इस समय देश में कार्यपालिका हो या विधायिका,सभी की आँखों पर पट्टी और हाथों में तलवार है । पक्षपात की तलवार । अदावत की तलवार। हमारी सरकार के नियंत्रण में सब कुछ है । न्यायपालिका भी ,क्योंकि इस अंग की नियुक्ति,वेतन-भत्तों तक की व्यवस्था सरकार करती है। सरकार भी अपनी आँखों पर पट्टी बांधकर काम करती है । वो जिस मंजर को नहीं देखना चाहती उसे नहीं देखती । वो जहाँ तलवार चलाने की जरूरत होती है वहां तलवार को हाथ भी नहीं लगाती और जहाँ तलवार नहीं चलना होती वहां तलवार भी चलाती है और आँखों पर बंधी पट्टी भी हटा लेती है। इस बात के उदाहरण नहीं दूंगा,इसका विश्लेषण आपको भी करना चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश माननीय चंद्रचूड़ का मानना है कि अंग्रेजी विरासत से अब आगे निकलना चाहिए। कानून कभी अंधा नहीं होता। वो सबको समान रूप से देखता है। इसलिए न्याय की देवी का स्वरूप बदला जाना चाहिए। साथ ही देवी के एक हाथ में तलवार नहीं, बल्कि संविधान होना चाहिए; जिससे समाज में ये संदेश जाए कि वो संविधान के अनुसार न्याय करती हैं। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ साहब का मानना है कि तलवार हिंसा का प्रतीक है। जबकि, अदालतें हिंसा नहीं, बल्कि संवैधानिक कानूनों के तहत इंसाफ करती हैं। दूसरे हाथ में तराजू सही है कि जो समान रूप से सबको न्याय देती है।
हमें उम्मीद करना चाहिए की जिस तरह से माननीय मुख्य न्यायाधीश ने अपनी सेवा निवृत्ति से कुछ दिन पहले न्यायपालिका के प्रतीक को बदला है उसी तरह वे जाते-जाते उन सभी संवैधानिक संस्थाओं की आँखों पर बंधी पट्टी और हाथों में ली गयी दृश्य और अदृश्य तलवारों को हटवाने का भी इंतजाम कर जायेंगे। ईडी हो,सीबीआई हो या केंद्रीय चुनाव आयोग हो सबकी आँखों पर पट्टी और हाथों में तलवार है । आज का युग आँखों पर पट्टी बांधकर काम करने का है भी नही। आज के युग में तलवार हाथ में लेकर दुनिया को नहीं चलाया जाता । आज कीदुनिया के हाथों में तलवार की जगह विनाशकारी बम आ गए हैं, मिसाइलें आ गयीं हैं ,जो सामूहिक नरसंहार कर रहे हैं।
हमारे क़ानून के शिक्षक स्वर्गीय गोविंद अग्रवाल साहब हमें पढ़ते वक्त बताया करते थे कि -न्याय की देवी की वास्तव में यूनान की प्राचीन देवी हैं, जिन्हें न्याय का प्रतीक कहा जाता है. इनका नाम जस्टिया है. इनके नाम से जस्टिस शब्द बना था। इनके आंखों पर जो पट्टी बंधी रहती है, उसका मतलब है कि न्याय की देवी हमेशा निष्पक्ष होकर न्याय करेंगी। किसी को देखकर न्याय करना एक पक्ष में जा सकता है। इसलिए इन्होंने आंखों पर पट्टी बांधी थी। वैसे आपको भी पता है और मुझे भी पता है कि आँखों पर पट्टी बांधकर मोटर साइकल चलाना और चित्र बनाना जादूगरों का काम है,न्यायधीश ये नहीं कर सकते । नेता जरूर कर सकते हैं,कर भी रहे हैं। । बहरहाल मुख्य न्यायाधीश को इस तब्दीली के लिए तहेदिल से बधाई। कम से कम सेवनिवृर्ति से पहले वे भी एक नया इतिहास लिखकर जो जाने वाले हैं। अब पुरानी हिंदी फिल्मों में दिखाए जाने वाले अदालतों के इस प्रतीक चिन्ह का क्या होग। राम जाने ?
@ राकेश अचल
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