इक धुंद से आना है ,इक धुंद में जाना है

 

महाराष्ट्र और झारखण्ड के चुनाव परिणामों की प्रतीक्षा कर रहे देश को अचानक गौतम अडानी की गिरफ्तारी वारंट की खबर से रूबरू होना पड़ा ।  गौतम अडानी यानि देश की अर्थव्यवस्था का एक ध्रुव। उनके ऊपर संकट आया तो देश पर संकट आ गया। एक झटके में साढ़े पांच लाख करोड़ रूपये शेयर बाजार में डूब गए ।  अब कल्पना कीजिये कि यदि अमेरिका की पुलिस सचमुच गौतम भाई साहब को गिरफ्तार कर ले जाये तो भारत के शेयर बाजार का  क्या हाल होगा ? गौतम भाई पर अमेरिका में एक सौदा हासिल करने के लिए संबंधित पक्ष के अधिकारियों को भारी-भरकम रिश्वत  देने की पेशकश करने का आरोप है।

भारत के मौजूदा दशक की सियासत पर अडानी ने एक धुंद की चादर दाल दी है ,वैसे ये धुंद तो आती जाती रहती है।  कभी ऐ-१ तो कभी ऐ-२ बनकर ये धुंद आती है और चली भी जाती है।  अपने जमाने के मशहूर शायर साहिर लुधियानवी की याद मुझे अक्सर आती है।  वे धुंद को बाखूबी पहचानते थे। एक जमाने में उन्होंने ' धुंद ' नाम से बनी एक फिल्म के लिए एक गजल लिखी ,जो आज की देशी -विदेशी राजनीति पर सौ फीसदी फिट बैठती है।  साहिर  साहब ने लिखा -

संसार की हर शय का इतना ही फ़साना है

इक धुँद से आना है इक धुँद में जाना है।

भारत की राजनीति में सरकार के पीछे खड़े होकर देश चलने वाले माननीय गौतम अडानी साहब के हाथ ही   लम्बे नहीं हैं बल्कि जिगरा भी शेर का है अन्यथा और कोई है जो अमेरिका में जाकर किसी सौदे केलिए रिश्वत देने की पेशकश कर सके।  रिश्वत के अनेक नाम है।  कोई इसे घूस कहता है तो कोई शुकराना ,कोई इसे नजराना मानता है। भारत में रिश्वत ' बिन पद  चलहि ,सुने बिन काना ' जैसी है।  गोस्वामी तुलसीदास जी ने ये चौपाई हलांक ब्रम्ह को लेकर लिखी थी ,लेकिन ये लागू हो रही है आज के अडानी और अम्बानी पर। ये दोनों महापुरुष आज के ब्रमंह हैं  । ये बिना पैरों के चलते हैं, बिना कानों के सुनते हैं।  बिना  हाथ के नाना प्रकार के काम करता है, बिना मुँह (जिह्वा) के ही सारे (छहों) रसों का आनंद लेता है और बिना वाणी के बहुत योग्य वक्ता है।

गौतम भाई साहब के गिरफ्तारी वारंट से जितने खुद अडानी साहब व्यथित नहीं हैं उससे ज्यादा व्यथित हमारे देश की सत्तारूढ़ पार्टी है ।  सत्तारूढ़ दल के हर नेता का पेट पानी हो रहा है  ।  सबके सब अडानी साहब के बचाव में अपनी तमाम योग्यता के साथ उपस्थित हैं ,क्योंकि लोकसभा में विपक्ष  के नेता राहुल गांधी ने माननीय गौतम अडानी साहब की गिरफ्तारी की मांग  की  है। विपक्ष के नेता का काम ही  मांग  करना है। विपक्ष और कुछ कर भी तो नहीं सकता। जो करना होता है सरकार और अडानी-अम्बानी साहब को करना होता  है ।  लोकसभा अध्यक्ष तो इन दोनों का नाम तक सदन में नहीं लेने देते।

बहरहाल इन दिनों गौतम अडानी साहब के नाम का डंका जोर-जोर से पूरी दुनिया में बज रहा है ।  भारत के नाम का इतना तेज डंका तो माननीय प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र दामोदर दास मोदी भी पिछले 10  साल में नहीं बजा पाए थे। ' डंका वादन ' की इस महान उपलब्धि के लिए इस बार गणतंत्र दिवस पर माननीय गौतम अडानी के नाम एक पदम् पुरस्कार तो बनता   ही है। उन्होंने भारत में रिश्वत प्रथा को अंतर्राष्ट्रीय सम्मान जो दिलाया है। माननीय गौतम अडानी साहब अभी   केवल आरोपी हैं ,इसलिए मै उन्हें अपराधी नहीं मानता ।  मेरे मानने या न मानने से क्या होता है ? हमारे देश की सरकार उन्हें गुनहगार नहीं मानती ।  यदि अमेरिका की अदालत में वे दोषी साबित किये जाते हैं तब की तब देखी जाएगी। अडानी साहब के हमजोली प्रधानमंत्री अमेरिका के राष्ट्रपति के मीटर हैं ,कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेंगे। साहिर लुधियानवी साहब लिखते हैं कि-

 ये राह कहाँ से है ये राह कहाँ तक है

ये राज़ कोई राही, समझा है न जाना है

इस मामले में कमोवेश मै राहुल गाँधी के बजाय साहिर साहब से इत्तफाक रखता हूँ। अडानी भाई साहब के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट क्या जारी हुआ केन्या ने अडानी साहब कि साथ किया गया 700  मिलियन डालर का करार ही रद्द कर दिया। लगता है कि केन्या वाले इस बात से खफा हैं कि  अडानी   साहब ने जो पेशकश अमेरिका में अनुबंध हासिल करने के लिए की ,उससे केन्या वालों को वंचित रखा। लेकिन मुझे इस आशंका पर बिलकुल यकीन नहीं है ।  मुझेलगता है कि  उन्होंने अमेरिका में तो केवल पेशकश की है लेकिन केन्या वालों को तो रिश्वत दी ही होगी,क्योंकि वे जानते हैं की केन्या एक गरीब देश है ।  वहां की सरकार गरीब है ,इसलिए उसकी मदद तो की ही जाना चाहिए। वैसे भी अडानी साहब किसी का हक मारते नहीं है। उन्होंने तो इलेक्टोरल बांड में भी खूब दान दिया था। रिश्वत का ये खेल दुनिया में सब दूर खेला जाता है ,अमेरिका ने खामखां इसे एक जघन्य अपराध बना लिया है जबकि अमेरिका में इसे बख्शीस के रूप में सहर्ष स्वीकार किया जाता है। इस खेल के बारे में साहिर साहब लिखते हैं कि  -

इक पल की पलक पर है ठहरी हुई ये दुनिया

इक पल के झपकने तक हर खेल सुहाना है

आज अडानी के साथ जो हुआ ,कल वो किसी के साथ हो सकता है।  किसी को आने वाले कल का पता नहीं होत।  अब कल तो [ 23  नवमबर को ] महाराष्ट और झारखण्ड विधानसभाओं के चुनावों के नतीजे भी आना है।  कोई दावे के साथ नहीं कह सकता कि  इस बार कौन जीतेगा ? कौन मुख्यमंत्री बनेगा ? कम से कम मै तो नहीं कह सकता,क्योंकि मै मशीनरी और मशीनों   की  क्षमताओं से वाकिफ हूँ। मुमकिन है कि  यहां भी मध्यप्रदेश और हरियाणा जैसा ही खेला  हो जाये और मुमकिन है कि  कहीं पलट बजे और कहीं नहीं। ये चुनाव वैसे भी ' बंटोगे तो कटोगे ' के बीच थे । इस अनिश्चय को लेकर भी साहिर लुधियानबी ने एक शेर लिखा।-  

क्या जाने कोई किस पर किस मोड़ पे क्या बीते

इस राह में ऐ राही हर मोड़ बहाना है ।

हकीकत ये है कि  हम और आप इस खेल में कहीं हैं ही नहीं।  ये खेल महान लोगों का खेल है।  इस खेल में बकौल साहिर साहब -

हम लोग खिलौना हैं इक ऐसे खिलाड़ी का

जिस को अभी सदियों तक ये खेल रचाना है।

यानि ' हरि अनंत ,हरि कथा अनंता ' वाला मामला है। आप अडानियों अम्बानियों की थाह नहीं ले सकते । ये सबके है।  भाजपा के भी ,कांग्रेस के भी ,वामपंथियों के भी ,समाजवादियों के भी।  इन्हें तो कारोबार करना है  ।  सामने कौन है ,इससे कोई फर्क नहीं पड़ता ।  ये नजराने,शुकराने की पेशकश करने में सिद्धहस्त हैं । भगवान इनसे देश और दुनिया की रक्षा करे।

@ राकेश अचल

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