मणिपुर और संभल की बीमारी एक जैसी है ,लेकिन उसका इलाज अलग-अलग तरीके से किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में सरकार और सरकार संरक्षित लोग / संस्थाएं जामा मस्जिद की जामा तलाशी लेने के लिए अदालती आदेशों और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण महकमे का सहारा ले रही है। ये काम अयोध्या की बाबरी मस्जिद से शुरू हुआ था और आज तक जारी है। कभी ज्ञानवापी के रूप में तो कभी संभल के रूप में। ये घृणित कोशिश उत्तराखंड में भी हुई और देश के दूसरे हिस्सों में भी। देश में लोगों के पास महंगाई के खिलाफ लड़ने का माद्दा नहीं है । लोग बेरोजगारी के खिलाफ नहीं लड़ सकते, महिला हिंसा के खिलाफ खड़े नहीं हो सकते । भूख-गरीबी के खिलाफ एकजुट होकर अदालतों के चक्कर नहीं काट सकते, लेकिन जामा मस्जिद की जामा तलाशी के लिए अदालतों के चक्कर काटने की फुरसत उन्हें है।
सोमवार, 25 नवंबर 2024
संभल से इम्फाल तक हिंसा की एक ही बीमारी
उत्तर प्रदेश में संभल हिंसा की आग में जल रहा है । हिंसा में 4 लोग मारे जा चुके हैं। मणिपुर में हिंसा का जघन्य रूप सामने है लेकिन सरकार महारष्ट्र में जीत का जश्न मना रही है। उत्तर प्रदेश में सरकार और सरकारी पार्टी के लोग मस्जिदों के नीचे दबे मंदिरों को खोजने की सनक में गड़े मुर्दे उखाड़ने से पीछे नहीं हैट rah। वैसे भी उसका नारा है ' बटोगे तो कटोगे ' का है। महारष्ट्र के विधानसभा चुनाव ने समाज को एक नहीं किया बल्कि बाँट दिया है। ये बँटवारा मणिपुर में पूरी तरह हो चुका है और उत्तर प्रदेश में जारी है। उत्तर प्रदेश बहराइच से होता हुआ साम्भल तक आ पहुंचा है।
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