कायदे से अखबारों के लिए मुझे ये लेख एक दिन पहले लिकना था,लेकिन इसे मै आज लिख रहा हूँ । आज इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि आज ही इसकी प्रासंगिकता है। आज 14 नवम्बर की तारीख है । एक ऐसी तारीख जिसने इस देश को एक बांका ,लड़ाकू,पढ़ाकू और दूरदृष्टि रखने वाला राजनेता दिया था। राजनेता ही नहीं भारत के इतिहास का आरक नेशनल हीरो यानि राष्ट्रनायक। जी हाँ ! मै भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की बात कर रहा हूँ। इस देश के बच्चे एक लम्बे अरसे से ' बाल दिवस ' के रूप में मानते आ रहे हैं ,लेकिन अब स्कूलों को ,बच्चों को ये दिन मनाने से डर लगता है।
इस देश में जबसे अदावत की राजनीति शुरू हुई है तभी से देश के असली राष्ट्रनायकों को ' खलनंनायक ' की तरह पेश किया जा रहा है। आज की राजनीति ने किसी को नहीं बख्शा, फिर चाहे वो पंडित जवाहर लाल नेहरू हों या राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी। आज की सत्ता के लिए ये दोनों राष्ट्रद्रोही है। इन दोनों ने ही देश को 1947 में ' हिन्दू राष्ट्र ' नहीं बनने दिया और इन्हीं की वजह से आज हमारी सरकार को ,हमारे प्रधानमंत्री को हमारे देश की तमाम डबल इंजिन की सरकारों के मुख्यमंत्रियों को ' बंटोगे तो कटोगे ' जैसे नारे देने पड़ रहे हैं। देश को आजादी के 77 साल बाद धकेल कर 1947 के पीछे ले जाने की कोशिश की जा रही है।
हम लोग उस समय की पैदाइश हैं जब गांधी-नेहरू को ये देश राष्ट्रनायक मानता ही नहीं बल्कि पूजता भी था । उस समय भी नेहरु गाँधी को खलनायक समझने वाले लोग देश में थे, लेकिन उन्हें तब सत्ता सुख नहीं मिला था । आज हालत बदले हुए हैं । आज गांधी और नेहरू की छवि को कलंकित करने के अभियान चलाये जा रहे है। उनकी निशानियां मिटाई जा रहीं हैं और तो और उनका नाम स्मरण करना भी राष्ट्रद्रोह माना जा रहा है क्या मजाल है कि कोई शैक्षिक संसथान ,कोई प्राइमरी स्कूल बाल दिवस के नाम पर कोई आयोजन कर देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को याद कर ले ?
चूंकि आज सरकार और सरकारी पार्टी देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल का जन्मदिन है । बच्चे उन्हें चाचा नेहरू के नाम से याद करते थे ,इसलिए आज के बच्चों को मै बताना चाहता हूँ कि नेहरू का जन्म आज के राष्ट्रनायक और विश्व गुरु के जन्म से 61 साल पहले 14 नवंबर 1889 को हुआ था। कोई माने या न माने किन्तु ये हकीकत है कि लम्बी गुलामी के बाद आजाद हुए देश को नए सिरे से गढ़ने की नींव पंडित जवाहर लाल नेहरू ने ही रखी। नेहरू की जगह यदि आज के प्रधानमंत्री जैसा कोई व्यक्ति होता तो वो देश को आजादी के बाद एक बार और विभाजित करा चुका होता।
बहरहाल बात नेहरू की हो रही है । मैंने नेहरू जी को तब देखा था जब मेरी उम्र कोई 5 साल की रही होगी ।उनकी छवि मेरे मानस पटल पर ठीक उसी तरह अंकित है जैसे कि मारीच वध के लिए जाते श्रीराम की छवि माता सीता के मन पर अंकित थी । एक मखमली मुस्कान से मंडित चेहरा,धवल अचकन पर सुर्ख गुलाब का फूल टांकने वाला व्यक्ति,जिसके हाथ अक्सर पीठ की और बंधे रहते थे। जो आजादी के संघर्ष से थका और जिम्मेदारियों के बोझ से झुका हुआ लगता था। उस समय मोबाइल की ईजाद नहीं हुई थी अन्यथा मै नेहरू जी के साथ ' सेल्फी ' लेकर रख लेता। तब नेहरू यानि देश के प्रधानमंत्री के पास पहुंचना आज के प्रधानमंत्री के पास पहुँचने जैसा कठिन नहीं था।
नेहरू की पूरी जीवनी आपको हरेक सर्च इंजिन पर हासिल हो जाएगी ,इसलिए मै उसके बारे में ज्यादा नहीं लिख रह। मै केवल इतना बता रहा हूँ कि नेहरू 30 साल की उम्र में महात्मागांधी के सम्पर्क में आये और आजन्म गांधीवादी बने रहे। उस समय देश में कोई हेडगेवार शायद नहीं रहा होगा अन्यथा वो नेहरू को नेहरू न बनने देता। नरेंद्र मोदी बना देता। इस तुलना को आप अन्यथा न लीजिये । मै आज के प्रधानमंत्री को नेहरू से हल्का नहीं बता रहा ,आज कि प्रधानमंत्री से मीलों आगे हैं । मेरे कहने का अर्थ ये है कि संगत के प्रभाव का अपना असर होता है।
बच्चों के चाचा नेहरू गाल बजने से ज्यादा पढ़ने लिखने में यकीन रखते थे । वे कोई 13 साल अंग्रेजों की जेलों में रहे। उन्होंने वहां रखकर भी लिखा और प्रधानमंत्री बनने के बाद भी । नेहरू के बारे में कहा जाता है के वे लोकमान्य तिलक के बाद सबसे ज्यादा लिखने वाले नेता थे। अब थे तो थे । उनकी उपाधियाँ असली थीं । उन्हें पढ़ना-लिखना विरासत में मिला था। ये उनका सौभाग्य था ,न होता तो वे भी किसी स्टेशन पर चाय बेच चुके होते। नेहरू जी की आधा दर्जन से अधिक पुस्तकें तो इस लेखक ने भी पढ़ीं है। इनमें पिता के पत्र : पुत्री के नाम
विश्व इतिहास की झलक (ग्लिंप्सेज ऑफ़ वर्ल्ड हिस्ट्री) ,मेरी कहानी (ऐन ऑटो बायोग्राफी) ,भारत की खोज/हिन्दुस्तान की कहानी (दि डिस्कवरी ऑफ इंडिया) ,राजनीति से दूर,इतिहास के महापुरुष प्रमुख हैं।
बहरहाल नेहरू ने अपनी ऊर्जा किसी को कोसने में नहीं बल्कि देश को बनाने में खर्च की। पढ़ने-लिखने में खर्च की। देश की जनता को निर्भीक बनाने में खर्च की। उन्होंने कभी बंटोगे तो कटोगे का नारा नहीं दिया। उनके जमाने में देश में इतनी नफरत थी ही नही। नफरत का एक दरवाजा तो पाकिस्तान बनने के साथ ही हमेशा के लिए बंद हो गया था।
भारत में, बच्चों के कल्याण के प्रति नेहरू की प्रतिबद्धता का सम्मान करने के लिए 14 नवंबर को बाल दिवस मनाया जाता है । यह दिन शिक्षा, पोषण और सुरक्षात्मक वातावरण पर ध्यान केंद्रित करते हुए सुरक्षित, स्वस्थ बचपन सुनिश्चित करने की आवश्यकता की याद दिलाता है। यह बच्चों के पालन-पोषण के महत्व पर जोर देता है, जो दुनिया के भविष्य के नेता हैं। मुझे याद है कि बाल दिवस पर तमाम संस्थाएं बच्चों के लिए कोई न कोई आयोजन करतीं थीं,बच्चों के लिए चिड़ियाघरों और सिनेमाघरों के दरवाजे निशुल्क खोले जाते थे ,लेकिन अब ऐसा करना सरकार का कोप भजन बनने जैसा है ,इसलिए अब बाल दिवस पहले जैसा उत्साह और उमंग का दिवस नहीं रहा ।
आज के प्रधानमंत्री बाल दिवस पर बच्चों के साथ नहीं होते,वे किसी चुनावी सभा में चीख-चीखकर भाषण दे रहे होते हैं। लेकिन इन तमाम कोशिशों से ,बाल दिवस की आभा कम करने से विश्व रंगमंच पर और भारतीयों के दिलों पर नेहरू का महत्व और लोकप्रियता कम नहीं होती। नेहरू कल भी बच्चों के चाचा थे और आज भी हैं ,कल भी रहेंगे। बच्चों का चाचा बनना आसान नहीं है। आजकल के नेता बच्चों के मामा बनना ज्यादा पसंद करते हैं। चाचा नेहरू के जन्मदिन पर उनका विनम्र स्मरण ,
@ राकेश अचल
हम लोग उस समय की पैदाइश हैं जब गांधी-नेहरू को ये देश राष्ट्रनायक मानता ही नहीं बल्कि पूजता भी था । उस समय भी नेहरु गाँधी को खलनायक समझने वाले लोग देश में थे, लेकिन उन्हें तब सत्ता सुख नहीं मिला था । आज हालत बदले हुए हैं । आज गांधी और नेहरू की छवि को कलंकित करने के अभियान चलाये जा रहे है। उनकी निशानियां मिटाई जा रहीं हैं और तो और उनका नाम स्मरण करना भी राष्ट्रद्रोह माना जा रहा है क्या मजाल है कि कोई शैक्षिक संसथान ,कोई प्राइमरी स्कूल बाल दिवस के नाम पर कोई आयोजन कर देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को याद कर ले ?
चूंकि आज सरकार और सरकारी पार्टी देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल का जन्मदिन है । बच्चे उन्हें चाचा नेहरू के नाम से याद करते थे ,इसलिए आज के बच्चों को मै बताना चाहता हूँ कि नेहरू का जन्म आज के राष्ट्रनायक और विश्व गुरु के जन्म से 61 साल पहले 14 नवंबर 1889 को हुआ था। कोई माने या न माने किन्तु ये हकीकत है कि लम्बी गुलामी के बाद आजाद हुए देश को नए सिरे से गढ़ने की नींव पंडित जवाहर लाल नेहरू ने ही रखी। नेहरू की जगह यदि आज के प्रधानमंत्री जैसा कोई व्यक्ति होता तो वो देश को आजादी के बाद एक बार और विभाजित करा चुका होता।
बहरहाल बात नेहरू की हो रही है । मैंने नेहरू जी को तब देखा था जब मेरी उम्र कोई 5 साल की रही होगी ।उनकी छवि मेरे मानस पटल पर ठीक उसी तरह अंकित है जैसे कि मारीच वध के लिए जाते श्रीराम की छवि माता सीता के मन पर अंकित थी । एक मखमली मुस्कान से मंडित चेहरा,धवल अचकन पर सुर्ख गुलाब का फूल टांकने वाला व्यक्ति,जिसके हाथ अक्सर पीठ की और बंधे रहते थे। जो आजादी के संघर्ष से थका और जिम्मेदारियों के बोझ से झुका हुआ लगता था। उस समय मोबाइल की ईजाद नहीं हुई थी अन्यथा मै नेहरू जी के साथ ' सेल्फी ' लेकर रख लेता। तब नेहरू यानि देश के प्रधानमंत्री के पास पहुंचना आज के प्रधानमंत्री के पास पहुँचने जैसा कठिन नहीं था।
नेहरू की पूरी जीवनी आपको हरेक सर्च इंजिन पर हासिल हो जाएगी ,इसलिए मै उसके बारे में ज्यादा नहीं लिख रह। मै केवल इतना बता रहा हूँ कि नेहरू 30 साल की उम्र में महात्मागांधी के सम्पर्क में आये और आजन्म गांधीवादी बने रहे। उस समय देश में कोई हेडगेवार शायद नहीं रहा होगा अन्यथा वो नेहरू को नेहरू न बनने देता। नरेंद्र मोदी बना देता। इस तुलना को आप अन्यथा न लीजिये । मै आज के प्रधानमंत्री को नेहरू से हल्का नहीं बता रहा ,आज कि प्रधानमंत्री से मीलों आगे हैं । मेरे कहने का अर्थ ये है कि संगत के प्रभाव का अपना असर होता है।
बच्चों के चाचा नेहरू गाल बजने से ज्यादा पढ़ने लिखने में यकीन रखते थे । वे कोई 13 साल अंग्रेजों की जेलों में रहे। उन्होंने वहां रखकर भी लिखा और प्रधानमंत्री बनने के बाद भी । नेहरू के बारे में कहा जाता है के वे लोकमान्य तिलक के बाद सबसे ज्यादा लिखने वाले नेता थे। अब थे तो थे । उनकी उपाधियाँ असली थीं । उन्हें पढ़ना-लिखना विरासत में मिला था। ये उनका सौभाग्य था ,न होता तो वे भी किसी स्टेशन पर चाय बेच चुके होते। नेहरू जी की आधा दर्जन से अधिक पुस्तकें तो इस लेखक ने भी पढ़ीं है। इनमें पिता के पत्र : पुत्री के नाम
विश्व इतिहास की झलक (ग्लिंप्सेज ऑफ़ वर्ल्ड हिस्ट्री) ,मेरी कहानी (ऐन ऑटो बायोग्राफी) ,भारत की खोज/हिन्दुस्तान की कहानी (दि डिस्कवरी ऑफ इंडिया) ,राजनीति से दूर,इतिहास के महापुरुष प्रमुख हैं।
बहरहाल नेहरू ने अपनी ऊर्जा किसी को कोसने में नहीं बल्कि देश को बनाने में खर्च की। पढ़ने-लिखने में खर्च की। देश की जनता को निर्भीक बनाने में खर्च की। उन्होंने कभी बंटोगे तो कटोगे का नारा नहीं दिया। उनके जमाने में देश में इतनी नफरत थी ही नही। नफरत का एक दरवाजा तो पाकिस्तान बनने के साथ ही हमेशा के लिए बंद हो गया था।
भारत में, बच्चों के कल्याण के प्रति नेहरू की प्रतिबद्धता का सम्मान करने के लिए 14 नवंबर को बाल दिवस मनाया जाता है । यह दिन शिक्षा, पोषण और सुरक्षात्मक वातावरण पर ध्यान केंद्रित करते हुए सुरक्षित, स्वस्थ बचपन सुनिश्चित करने की आवश्यकता की याद दिलाता है। यह बच्चों के पालन-पोषण के महत्व पर जोर देता है, जो दुनिया के भविष्य के नेता हैं। मुझे याद है कि बाल दिवस पर तमाम संस्थाएं बच्चों के लिए कोई न कोई आयोजन करतीं थीं,बच्चों के लिए चिड़ियाघरों और सिनेमाघरों के दरवाजे निशुल्क खोले जाते थे ,लेकिन अब ऐसा करना सरकार का कोप भजन बनने जैसा है ,इसलिए अब बाल दिवस पहले जैसा उत्साह और उमंग का दिवस नहीं रहा ।
आज के प्रधानमंत्री बाल दिवस पर बच्चों के साथ नहीं होते,वे किसी चुनावी सभा में चीख-चीखकर भाषण दे रहे होते हैं। लेकिन इन तमाम कोशिशों से ,बाल दिवस की आभा कम करने से विश्व रंगमंच पर और भारतीयों के दिलों पर नेहरू का महत्व और लोकप्रियता कम नहीं होती। नेहरू कल भी बच्चों के चाचा थे और आज भी हैं ,कल भी रहेंगे। बच्चों का चाचा बनना आसान नहीं है। आजकल के नेता बच्चों के मामा बनना ज्यादा पसंद करते हैं। चाचा नेहरू के जन्मदिन पर उनका विनम्र स्मरण ,
@ राकेश अचल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें