कमला हैरिस अमेरिका की राष्ट्रपति नहीं बन पायी। उनकी छलांग उप राष्ट्रपति तक हिसिमित कर रह गयी। कमला हैरिस को भी शायद ये पता होगा की जिस देश में वे रहतीं हैं वो देश पिछले 225 साल से पुरुषों के हाथ में है । महिला-पुरुष के बीच तमाम बराबरी की वकालत करने वाले अमेरिका का पुरुष प्रधान समाज देश के सर्वोच्च पद पर किसी महिला को बर्दाश्त करने की स्थिति में अब तक आया ही नहीं है। इस मामले में अमेरिका भारत से भी मीलों पीछे है।
मुझे कमला हैरिस की पराजय से कोई हैरानी नहीं हुई । मै ये भी नहीं कह सकता की चुनाव में उनके साथ वैसी चीटिंग हुई होगी जैसी भारत और दूसरे देशों में होने की गुंजाइशें होती है। हकीकत तो ये है की कमला या किसी दूसरी महिला को अमेरिका कभी राष्ट्रपति के रूप में स्वीकार कर ही नहीं सकता। कहते हैं की भारत यदि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है तो अमेरिका दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र है। अमेरिका की जनता को पहले भी हाथी पसंद था ,और इस बार भी उसे ही चुना गया हालाँकि बीच में गधा भी अमेरिका की जनता पसंद करती रही है । मै अमेरिका के दो प्रमुख दलों के चुनाव चिन्हों की बात कर रहा हूँ । क्योंकि अमेरिका में कोई नेता गधा नहीं हो सकता।
हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी के दोस्त डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका के 130 साल के इतिहास में ऐसे पहले राष्ट्रपति हैं जो कि पिछली बार चुनाव में पराजय का स्वाद चख चुके हैं। यानि वे अमेरीका के इतिहास पुरुष तो बन ही गए है। अब पूरे चार साल दुनिया में ट्रम्प साहब का ही डंका बजेगा।ट्रम्प के पास भी वैसे ही अंधभक्त हैं जैसे की भारत में मोदी जी के पास है। आपको याद होगा की ट्रम्प साहब के भक्त गुस्से में उस व्हाइट हाउस पर चढ़ गए थे ,जिस पर वे लम्बी प्रतीक्षा के बाद विधिवत पहुँच रहे हैं।
भारत अब अमेरिका के साथ किस तरह से जुगलबंदी बनाएगा येकहना कठिन भी है और जल्दबाजी भी। अमेरिका के निवर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन की निष्क्रियता और अस्पष्ट विदेश नीति की वजह से हमारे प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र दामोदर दास मोदी अपना डंका बजानेमें लगे थे। वे अपने घर में लगी आग की अनदेखी कर रूस और यूक्रेन के बीच की जंग को समाप्त करने के लिए प्रयत्नशील थे । उन्होंने चीन और पाकिस्तान के साथ भी बिगड़े रिश्ते सुधारने की पहल की। ट्रैम्प को न शांतिदूत बनाना है औरन विश्व गुरु। वे विश्व दादा जरूर बनना चाहेंगे। वे विश्व के नए दादा बन भी सकते हैं।
डोनाल्ड ट्रम्प के आने से अमेरिका में रहने वाले भारतीयों के जीवन पर क्या फर्क पडेगा,इसकी आहट वहां रहने वालों को पहले ही मिल चुकी है। ट्रंप का कार्यकाल भारत के लिए भी काफी महत्वपूर्ण है। ट्रंप के नेतृत्व में अगर नया अमेरिकी प्रशासन ‘अमेरिका फर्स्ट’ एजेंडा को आगे बढ़ाने का फैसला करता है, तो भारतीय एक्सपोर्टर्स को ऑटोमोबाइल, टेक्सटाइल और फार्मा के लिए ज्यादा कस्टम ड्यूटी का सामना करना पड़ सकता है। ट्रम्प की वीजा नीति भारत हितैषी होगी या विरोधी ,कहना कठिन है। अमेरिका में जिस तरह से बेरोजगारी और महंगाई बढ़ी है उसे देखते हुए लगता है की ट्रम्प साहब भारतीयों का ख्याल रखने से पहले अपने नागरिकों का ख्याल रखेंगे।
विशेष्ज्ञों की मानें तो कि ट्रंप एच-1बी वीजा नियमों को भी सख्त कर सकते हैं, जिससे भारतीय आईटी कंपनियों की लागत और वृद्धि पर असर पड़ेगा। भारत में 80 प्रतिशत से ज्यादा आईटी एक्सपोर्ट इनकम अमेरिका से आती है, जिससे वीजा पॉलिसी में बदलाव के प्रति भारत संवेदनशील हो जाता है। अमेरिका, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। अमेरिका से भारत का सालाना कारोबार 190 अरब डॉलर से ज्यादा है। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के संस्थापक अजय श्रीवास्तव को लगता है कि डोनाल्ड ट्रंप चीन के बाद अब भारत और अन्य देशों पर भी शुल्क लगा सकते हैं। ट्रंप ने पहले भारत को ‘बड़ा शुल्क दुरुपयोगकर्ता’ कहा था और अक्टूबर, 2020 में भारत को ‘टैरिफ किंग’ करार दिया था।
डोनाल्ड ट्रम्प के सामने ठीक वैसी ही समस्याएं हैं जैसी की भारत में माननीय मोदी जी के सामने है। लेकिन मोदी जी और ट्रम्प में एक और समानता ये भी है कि दोनों कहते हैं की नामुमकिन कुछ भी नहीं है। दोनों नेताओं का आत्म- विश्वास बेमिसाल है। दोनों की बेमिसाल जोड़ी आने वाले दिनों में देश-दुनिया की राजनीति और अर्थव्यवस्था को किस सीमा तक प्रभावित करेंगे ? ये जानने के लिए महीने-दो महीना इन्तजार करना होगा।
ट्रम्प से हटाकर बात करें तो अमेरिका में कोई महिला कब राष्ट्रपति बनेगी इसका इन्तजार भी दुनिया को है । इस मामले में भारत अमेरिका से बहुत आगे हैं। भारत क्या दुनिया के बहुत से देशों के रष्ट्र प्रमुख महिलाओं को शिरोधार्य कर चुके हैं। विश्व कि महिला राष्ट्राध्यक्षों कि सूची में अमेरिका का नाम अब तक जुड़ा ही नहीं है । यानि इस मामले में अमेरिका बदनसीब है।
विश्व के ज्यादातर देशों में महिलाओं के हाथ में देश के शीर्ष राजनीतिक पदों की कमान नहीं रही है। यहां तक कि विश्व के लगभग 79 देशों के राजनीतिक समीकरण में आज तक एक भी महिला को जगह नहीं मिली है।भारत इस मामले में सबसे आगे रहा है। भारत में श्रीमती इंदिरा गांधी और प्रतिभा पाटिल का नाम सबसे ऊपर आता है। श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश में दो भागों में 16 सालों तक प्रधानमंत्री पद की कमान संभाली। पहले भाग में 1966 से लेकर 1977 तक और फिर दूसरे भाग में 1980 से लेकर 1984 इंदिरा ने भारत के प्रधानमंत्री पद का दायित्व संभाला। इसके बाद नाम आता है प्रतिभा पाटिल का, जिन्होंने 2007 से लेकर 2012 तक भारत का राष्ट्रपति होने का गौरव हासिल किया।श्रीमती द्रोपदी मुर्मू इस समय भारत कि राष्ट्रपति हैं ही। अभी तो अमेरिका की महिलाओं की स्थितियों पर भारत के राष्ट्र कवि मैथली शरण गुप्ता की वो पंक्तियाँ याद आतीं हैं ,जिनमें उन्होंने लिखा था की -
अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी,
आँचल में है दूध और आँखों में पानी
वे यदि आज होते तो लिखते की -
कमला हैरिस हाय ! तुम्हारी यही कहानी ।
सीने में है क्षोभ और आँखों में पानी।।
@ राकेश अचल
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