महापर्व छठ सूर्य देव को समर्पित है। छठ का पर्व पूरे चार दिनों तक चलता है। छठ पूजा के चार दिनों तक भगवान सूर्य देव की उपासना की जाती है। छठ का व्रत संतान की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य और परिवार की खुशहाली के लिए किया जाता है।
वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य डॉ हुकुमचंद जैन ने बताया कि छठ पूजा मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और नेपाल के मिथिलांचल क्षेत्र में मनाई जाती है। छठ पूजा के पहले दिन नहाय खाय होता है। इस दिन पवित्र नदी में स्नान कर सात्विक भोजन खाया जाता है। छठ का व्रत काफी कठिन माना जाता है। छठ के चार दिनों का अलग-अलग महत्व होता है।
छठ के दूसरे दिन खरना होता है। इस दिन सूर्योदय से सूर्यास्त तक निर्जला व्रत किया जाता है। सूर्यास्त के बाद सूर्यदेव को प्रसाद अर्पित करने के बाद गुड़ वाली खीर खाई जाती है। इसी दिन से महिलाओं का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू होता है।
तीसरे दिन यानी 07 नवंबर गुरुवार को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जायेगा।
वहीं छठ पूजा के चौथे आखरी दिन 08 नवंबर शुक्रवार के दिन जल्दी प्रातः के समय उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाएगा। जैन ने कहा इसे उषा अर्घ्य के नाम से जाना जाता है।
पंचांग के अनुसार इस बार षष्ठी तिथि का आरंभ 06 नवंबर बुधवार को मध्यरात्रि 12 बजकर 41 मिनट पर होगा। षष्ठी तिथि का समापन 07 नवंबर गुरुवार को मध्यरात्रि 12 बजकर 34 मिनट पर होगा। 07 नवंबर गुरुवार यानी छठ पूजा वृतार्थी सूर्यास्त के समय नदी या तालाब में अर्घ देंगे यह छठ पूजा का सबसे महत्वत पूर्ण दिन है।
सूर्यास्त शाम 7 बजकर 32 मिनट पर होगा।
08 नवंबर शुक्रवार को प्रातः वृतार्थी उगते सूर्य को अर्घ देकर अपना व्रत तोड़ेंगे और प्रसाद वितरण करेंगे।
छठ पूजा का महत्व
छठ पूजा को सूर्य षष्ठी, छठ, छठी, छठ पर्व, डाला पूजा और डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है। छठ पूजा के दौरान सूर्य देव की पूजा करने से सुख, समृद्धि, सफलता और निरोगी शरीर की प्राप्ति होती है। छठ का व्रत करने से संतान दीर्घायु होते हैं और परिवार में संपन्नता और खुशहाली बनी रहती है।
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