' मोशन ' और ' इमोशन ' के बीच चुनाव

  

मेरी कोशिश है कि राजनीति पर ज्यादा न लिखा जाये,लेकिन मेरी कोशिश को राजनीति ही हर बार नाकाम कर देती है। देश के प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र दामोदर दास मोदी झारखंड और महाराष्ट्र में ताबड़तोड़ रैलियां करने के बाद जलता हुआ मणिपुर छोड़कर नाइजीरिया के दौरे पर निकल गए हैं। वे  नाइजीरिया के राष्‍ट्रपति अहमद टिनूबू के न्‍यौते पर पहली बार इस देश के दौरे पर हैं. नाइजीरिया और भारत के रिश्‍ते काफी पुराने है।

नाइजीरिया की आजादी के बाद सितंबर 1962 में भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने नाइजीरिया का दौरा किया. उसके 40 साल बाद वर्ष 2002 में तत्‍कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी कॉमनवेल्‍थ देशों की मीटिंग में शामिल होने नाइजीरिया पहुंचे थे. इसके बाद 2007 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नाइजीरिया का दौरा किया था. अब 2024 में  प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी यहां के दौरे पर हैं। हमारे प्रधानमंत्री की प्राथमिकताएं हम या आप नहीं बल्कि खुद प्रधानमंत्री तय करते है।  वे नाइजीरिया जाएँ या कहीं और ,आप और हम सवाल नहीं कर सकते ।  हम और आप उनसे नहीं पूछ सकते की वे दुनिया घूम रहे हैं लेकिन मणिपुर क्यों नहीं जाते ?

बहरहाल बात देश के दो राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों की है ।  इस चुनाव में मुद्दे पहले दिन से नदारद है।  चुनाव नेताओं ने एक-दूसरे के ऊपर विष वमन से जीतने की कोशिश की ।  बीच में बांटो और काटो भी चला ,लेकिन अब चुनाव ' मोशन ' और ' इमोशन ' के बीच झूल रहा है। चुनाव में ' इमोशन कार्ड ' का इस्तेमाल बुरी बात नहीं है, लेकिन वोट कबाड़ने के लिए मतदाता के साथ इमोशनली खिलवाड़ बुरी बात है। नेता तो मंजे हुए खिलाडी होते है।  वे हर तरह से खेलना जानते हैं। उन्हें जनता के इमोशन से कोई लेना-देना नहीं। बस उनका  मोशन बना रहना चाहिए।

महाराष्ट्र की बात करते है।  यहां स्वर्गीय बाला साहब ठाकरे की राजनीतिक विरासत तीन हिस्सों में बंटी हुई है ।  ठाकरे की विरासत का एक हिस्सा उद्धव ठाकरे के पास है ।  एक के स्वामी बाला साहब के भतीजे राज ठाकरे है।  और तीसरे  हिस्से के मालिक  महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे हैं। उद्धव और एकनाथ शिंदे तो बाला साहब की विरासत के सहारे सूबे के मुख्यमंत्री बन गए लेकिन बेचारे राज ठाकरे के हिस्से में कुछ भी नहीं आय्या। राज भाई साहब महाराष्ट्र नव निर्माण सेना बनाकर पिछले 16  साल में विधानसभा की 288  सीटों में से अधिकतम 23  सीटों पर कब्जा कर पाए।  उनकी ये ताकत उन्हें मुख्यमत्री नहीं बना सकती।

महाराष्ट्र और झारखण्ड विधानसभा के चुनावों के पहले दौर में आरोप-प्रत्यारोप चले, दूसरे दौर में गड़े मुर्दे उखाड़े गए और अब अंतिम चरण मरण ' इमोशन ' का सहारा लिया जा रहा है।  राज ठकरे हों या पूर्व मुख्यमंत्री विलास राव देशमुख के बच्चे, सबके सब मतदाताओं को इमोशनली ब्लैकमेल करने की कोशिश कर रहे हैं। आदर्श आचार संहिता में इमोशन के इस्तेमाल पर शायद रोक नहीं  है और रोक होती भी तो केंचुआ किसी का क्या बीएड लेता ? केंचुआ सरकार के गले में लिपटकर रहने वाला नाग है। जो किसी को काटता नहीं है केवल  फुफकार कर डराता है।

चुनाव जीतने के लिए इमोशन का इस्तेमाल जीवन के नौवें दशक में चल रहे माननीय शरद पंवार साहब को भी करना पड़ रहा है ।  उन्होंने भी मतदाताओं से कहा है कि  ये उनके  जीवन का अंतिम चुनाव है। शरद पंवार साहब से जुड़े लोगों के इमोशन को केंद्रीय गृहमंत्री माननीय अमित शाह साहब पहले ही अपने श्रीमुख से आहत कर चुके हैं। इलेक्शन और इमोशन का आपस में बड़ा ही गहरा संबंध है।  युगों तक कांग्रेस ने इमोशन का कार्ड खेला,अब भाजपा खेल रही है।  कल कौन खेलेगा पता नहीं।

इमोशन का इस्तेमाल करने के लिए आंसू,आहें ,आवश्यक होतीं हैं। इनसे ही मतदाता द्रवित होता है ।  कभी-कभी छवियां भी इमोशन उभारने के काम आतीं हैं।  जैसे देश प्रियंका वाड्रा में स्वर्गीय इंदिरा गाँधी की झलक देखता है वैसे ही तमाम मराठी राज ठाकरे में बाला साहब की झलक देखते हैं। लेकिन सियासत में सब कुछ झलक  से नहीं मिलता ,काम करना पड़ता है ।  अपने आपको प्रमाणित करना पड़ता है। जो अभी तक झलक  वाले नेता प्रमाणित नहीं कर पाए हैं।  लेकिन जाने-पहचाने नेताओं की कार्बन कॉपी लगने वाले नौजवान नेताओं के प्रति मेरी पूरी सहानुभूति है ,फिर चाहे वो राज ठाकरे हों या प्रियंका वाड्रा।

आने वाले छह दिन में ये छवियां ये इमोशन राजनीति को कितना प्रभावित कर पते हैं ? ये देखना दिलचस्प होगा। नतीजा तो खैर 23  नवंबर को ही सामने आएगा ,लेकिन प्रधानमंत्री मोदी जी की बेफिक्री बताती है कि  उन्होंने हरियाणा की तरह महाराष्ट्र और झारखण्ड का रण जीतने की पूरी तैयारी कर ली है। प्रधानमंत्री इन दोनों राज्यों के संभावित चुनाव नतीजों को लेकर भी बेफिक्र हैं और मणिपुर की दशा-दुर्दशा को लेकर भी। उन्हें पता है की विपक्ष को अभी तक लड़ना नहीं आया है।

@ राकेश अचल 


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