यूं तो हर माह में दो एकादशी आती है एक कृष्ण पक्ष में दूसरी शुक्ल पक्ष में इस प्रकार पूरे एक वर्ष भर में 24 एकादशी आती है ।
वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य डॉ हुकुमचंद जैन ने बताया कि हर एकादशी तिथि का अपना-अपना महत्व होता है इसी प्रकार उत्पन्न एकादशी का बहुत बड़ा महत्व है।
एकादशी का व्रत मार्गशीर्ष माह कृष्ण पक्ष में एकादशी तिथि को व्रत किया जाता है इस व्रत में भगवान श्री कृष्ण जी की, विष्णु जी, लक्ष्मी जी की पूजा का विधान है। व्रत रखने वाले को दशमी तिथि के दिन रात में भोजन नहीं करना चाहिए दिन अस्त होने से पहले ही कर लेना चाहिए।
और एकादशी के दिन ब्रह्म बेला में भगवान कृष्ण भगवान, विष्णु और लक्ष्मी जी की पुष्प, जल, अक्षत ,धूप,दीप से पूजन करके पूजा अर्चना प्रार्थना करनी चाहिए। इस व्रत में केवल फलों का ही भोग लगाया जाता है ब्रह्मा विष्णु महेश त्रिदेवों का संयुक्त अंश माना जाता है।इस एकादशी का व्रत मोक्ष देने वाला व्रत कहा जाता है और अनेक पापों को नष्ट करता है।
जैन ने बताया कि एकादशी तिथि 25 नवंबर की रात्रि यानी 26 नवंबर को रात 01:01 बजे पर प्रारंभ होगी और यह 26 नवंबर की रात्रि 27 नवम्बर की रात 03:45 पर समाप्त होगी 26 नवंबर मंगलवार को पूरे दिन उदय काल में यह तिथि हस्त नक्षत्र सौम्य योग और प्रीति योग में रहेगी इसी दिन मंगलवार के दिन उत्पन्ना एकादशी का व्रत होगा इसके दूसरे दिन 27 नवंबर बुधवार को हरी वासर समाप्त होने का समय 10:26 बजे प्रातः है।
इस समय के उपरांत इस व्रत का पारण करना चाहिए । पारण का समय दोपहर 01:09 से 03:17 बजे तक रहेगा। पारण को द्वादशी तिथि समाप्ति होने से पहले करना अति आवश्यक है।
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