किसानों की अस्मिता को ललकार रही है सरकार


हर मुद्दे पर टेसू की तरह अड़ने वाली केंद्र सरकार ने एक बार फिर किसानों की अस्मिता को ललकारा है ।  केंद्र सरकार पिछले 20  दिन से आमरण अनशन पर बैठे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल को बहुत हल्के में ले रही है।  किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल 19 दिनों से अनशन पर हैं।  उनकी मांग है कि सरकार एमएसपी की कानूनी गारंटी दे ताकि किसानों की आत्महत्या न करना पड़े। आपको याद होगा की देश के किसान इससे पहले 2020  में केंद्र सरकार द्वारा बनाये गए 3  किसान विरोधी कानूनों के खिलाफ एक लम्बे आंदोलन से गुजर चुके हैं।

एक देश एक चुनाव जैसे मुद्दों पर देश को उलझाए रखने वाली केंद्र सरकार के पास पिछले 20  दिन से आंदोलनरत किसानों की मांगों पार ध्यान देने की फुरसत नहीं है । सरकार की वादा खिलाफी को लेकर दोबारा आंदोलन के रस्ते पर आये किसानों के नेता जगजीत सिंहडल्लेवाल ने कहा कि उन किसानों का जीवन जो सरकार “सरकार की गलत नीतियों” के कारण आत्महत्या कर रहे हैं, उनके जीवन से ज्यादा मूल्यवान है।  तीन साल पहले हुए किसान आंदोलन में लगभग 700  किसानों ने आत्मोत्सर्ग  किया था। तब का आंदोलन केंद्र सरकार द्वारा पारित तीनों कानूनों को वापस लेने और प्रधानमंत्री  नरेंद्र दामोदर दस मोदी  द्वारा किसानों से माफ़ी मांगने के बाद समाप्त हुआ था।

आपको स्मरण करा दूँ कि   पिछले 25 सालों में 5 लाख से ज्यादा किसानों ने कृषि क्षेत्र में संकट के चलते आत्महत्या की है।  इसे रोकने का एकमात्र उपाय स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के आधार पर फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी देना है।  ये मामला   सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान  में भी है ।  सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को इस बारे में कुछ निर्देश भी दिए थे लेकिन बात बनी नहीं।  जगजीत सिंह  सुप्रीम कोर्ट से  भी अपील कर रहे हैं  कि सरकार पर दबाव डालकर किसानों को आत्महत्या से बचाने का कदम उठाए। 70 वर्षीय जगजीत सिंह डल्लेवाल कैंसर के मरीज हैं।  वे 26 नवंबर से पंजाब और हरियाणा के खनौरी बॉर्डर पर अनशन पर है।  उनकी  मुख्य मांग केंद्र सरकार की ओर से एमएसपी की कानूनी गारंटी देना है।  डॉक्टरों ने उनकी बिगड़ती स्थिति को ध्यान में रखते हुए उन्हें तुरंत अस्पताल में भर्ती कराने की सिफारिश की है, लेकिन डल्लेवाल अपने संकल्प पर अडिग है।

पंजाब से लगी हरियाणा की सीमा पर शनिवार को दिल्ली की ओर बढ़ रहे प्रदर्शनकारी किसानों को तितर-बितर करने के लिए सुरक्षाकर्मियों ने आंसू गैस के गोले छोड़े और पानी की बौछारों का इस्तेमाल किया।  इस दौरान कुछ किसानों के घायल हो जाने के कारण प्रदर्शनकारी किसानों ने अपना 'दिल्ली चलो' मार्च एक दिन के लिए स्थगित कर दिया।  खबर है   की इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसान आंदोलन पर जानकारी ली और मंत्रियों के साथ चर्चा की।

किसानों का आंदोलन अभी खुद किसान कर रहे हैं,लेकिन जैसे-जैसे दिन गुजर रहे हैं वैसे -वैसे इस बात की आशंका भी बढ़ रही है कि इस आंदोलन में राजनीतिक दल भी कूद सकते हैं। हरियाणा की कांग्रेस विधायक और मशहूर ओलम्पियन  विनेश फोगाट तो खनेरी सीमा पर अनशन कर रहे किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल से मिलने पहुँच ही गयीं। विनेश ने कहा की आज देश में इमरजेंसी जैसा माहौल है ।  सरकार न किसानों कीबात सुन रही है और न मजदूरों की।

किसानों का दुर्भाग्य ये है कि पिछले 25 नवमबर से शुरू हुए संसद के शीत सत्र में भी किसान आंदोलन को लेकर कोई ख़ास खरखसा नहीं हुआ ।  संसद अडानी और संविधान के मुद्दे पर ही हंगामाग्रस्त  है। विपक्ष राज्य सभा के सभापति के खिलाफ तो अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए शायर है किन्तु किसानों के मुद्दों को लेकर उसके पास कोई रणनीति नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी ने संविधान पर हुई बहस के दौरान भी किसान आंदोलन को लेकर एक शब्द नहीं कहा। कृषि प्रधान देश में किसानों की बदहाली अभी तक राष्ट्रीय मुद्दा नहीं बन पायी है ।  सभी राष्ट्रीय दल दिल्ली विधानसभा चुनाव में उलझे हैं किन्तु किसान किसी को नजर नहीं आ रहे।आपको याद होगा कि इससे पहले मोदी कैबिनेट के तत्कालीन कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमार भी किसान आंदोलन को समाप्त करने में नाकाम साबित हुए थे और अब नए केंद्रीय कृषि मनत्री शिवराज सिंह चौहान  भी तोमर की गति को प्राप्त होते  दिखाई दे रहे हैं।

किसान आंदोलन को लेकर केंद्र सरकार के रवैये को देखकर कभी-कभी ऐसा लगता है की केंद्र जानबूझकर किसानों के साथ मणिपुर की जनता के साथ की जारही अनदेखी को दोहरा रही है। किसान देश के कारपोरेट घरानों के चंगुल में फसने से आंतकित और आशंकित हैं। आपको बता दें कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर 2021 को घोषणा  की थी  कि केंद्र तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करेगा। तब से लेकर अब तक केंद्र की सरकार रूस और यूक्रेन युद्ध सुलझाने के लिए भाग-दौड़ करचुकी है ।  आम चुनाव निबटा चुकी है ।  आम चुनाव के बाद चार राज्यों के विधानसभा चुनाव लड़ चुकी है ,लेकिन किसानों को दिए आश्वासनों के अनुरूप नए किसान क़ानून नहीं बना पायी। लगता है ज्सिअए सरकार देश में अच्छे दिन लाना भूली है वैसे ही किसानों से किये गए वेड भी उसे याद नहीं है।

हकीकत ये है कि किसान केंद्र सरकार की प्राथमिकता  में हैं ही नही।  केंद्र को तो एक देश ,एक चुनाव , समान नागरिक संहिता ,वक्फ बोर्ड संशोधन की चिंता ह।  केंद्र को चिंता है की कैसे देश भर में अल्पसंख्यकों की मस्जिदों का सर्वे कराकर वहां खुदाई कर दबे मंदिर निकाले जाएँ। केंद्र को चिंता है की प्रयाग में महाकुंभ भव्य-दिव्य कैसे हो ? केंद्र को अडानी की चिंता है ,बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री  शेख हसीना की चिंता है। देश के किसान दूर-दूर तक उसकी फेहरिश्त में हैं ही नहीं। किसानों के मुद्दे पर केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को हड़काने वाले राज्य सभा के सभापति श्रीमान जगदीप धनकड़ किसानों  कि चिंता छोड़ ग्वालियर में केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के महल में शाही भोज के मजे ले रहे हैं।

 आपको याद हो तो पूर्व के किसान आंदोलन के समर्थन में देश के बाहर इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया तक में जुलूस निकाले गए थे।  इस बार किसान आंदोलन क्या शक्ल लेगा ,फिलहाल कहा नहीं जा सकता। लेकिन एक बात तय है की जिस देश का किसान सड़कों पर होगा वो देश किसी भी सूरत में दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन ही नहीं सकता।

@ राकेश अचल

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