नया साल हो या रूमाल तभी तक नया है जब तक कि वो आपके पास आया नहीं। नया होना पुराने का वजूद समाप्त नहीं करता ,बल्कि नयेपन की खुशबू बिखेरता आता है। नए का अहसास पुराने को मुकाबिल रखकर किया जा सकता है। नई कोंपल हो, नया अंकुर हो ,नया पैगाम हो या नया जाम हो सभी आल्हादित कर देते हैं। नया आखिर नया ही होता है ,लेकिन यदा रखिये कि नया भी ' पानी केरा बुदबुदा ' ही है ,पलक झपकते प्रभात के तारे की तरह छिप जाता है या पुराना हो जाता है।
आज हमारे पास जो है वो कल पुराना हो जाएगा और कल जो हमारे पास आएगा वो नया कहलायेगा। नए और पुराने के बीच एक महीन सी लकीर होती है। अदृश्य लकीर। नया अल्पजीवी होता है फिर भी सभी को नए की दरकार होती है। जड़ हो या चेतन नयेपन को लेकर सदैव उत्सुक रहता है।नया स्वाद, नया कपड़ा,नया मौसम ,नयी जगह, नया घर,नयी गाडी ,नयी नौकरी, नया -नया-नया। सब कुछ नया। किन्तु प्रकृति में एक तारीख और वर्ष संख्या ही ऐसी है जो नई कही जाती है ,बाकी सब 365 दिन में नया नहीं हो पाता।मनुष्यों को छोड़ शायद ही कोई नया साल मानता हो।
आज जो 31 है कल वो 1 हो जाएगा। आज जो 2024 है ,कल से वो 2025 हो जाएगा,लेकिन बाकी सब कुछ पुराना होगा ,फिर भी सब नए साल का जश्न मानकर स्वागत करेंगे। नए संकल्प लेंगे, नए सपने देखेंगे, नए ठिकाने तलाशेंगे ,हालाँकि होगा सब कुछ पुराना है । जैसे नयी बोतल में पुरानी शराब। ये जुमला केवल जुमला नहीं है बल्कि एक हकीकत है। हम सनातनी तो जीवन और मृत्यु को भी इसी सिद्धांत के तहत लेकर चलते है। हमारी आत्मा अजर,अमर है। वो केवल देह बदलती है। हमेशा नई देह चाहिए आत्मा को। नए की तलाश ही हमें गतशील बनाये रखती है।
मजे की बात ये है कि हम एक तरफ नए की और भागते हैं और दूसरी तरफ पुराने के प्रति हमारी आशक्ति समाप्त नहीं होती। हम नया स्वीकार करने में हिचकिचाते हैं और पुराने को लगातार गले से लगाए रखना चाहते हैं। यादें इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। विरासत दूसरा बड़ा उदाहरण है। दुनिया में कोई ऐसा है जिसे नए के मुकाबिले पुराना अप्रिय लगता हो ! हम पुराने रिश्ते मरने नहीं देत। पुरानी तस्वीरें उठाकर फेंक नहीं देते। फिर आखिर क्यों हमें पुराने जख्म कुरेदने में मजा आता है। आखिर हम क्यों पुराने और गड़े हुए मुर्दे उखड़ते हैं ? ये बात अलग है कि हम पुराने से ऊबने लगते हैं। इसी ऊब से नयेपन की चाहत जन्म लेती है।
नए साल में भी हमारे साथ अधिकांश चीजें पुरानी ही रहने वाली है। न हम बदलेंगे और न हमरे आसपास के लोग । हम उसी घर में रहेंगे जहां वर्षों से रहते आए हैं ,लेकिन हम नयेपन का अहसास करने के लिए हफ्ते -दस दिन के लिए अपने ठिकाने बदल सकते हैं वो भी तब जब हमारे पास इसकी सामर्थ्य हो ,अन्यथा झोपडी में रहने वाला किसान,मजदूर नयेपन से हमेशा वंचित रहता है ,नया सभी को चाहिए किन्तु कुछ नया हो तब न ! !
बुधवार को जब नया साल आएगा तब भी हमारे पास न सरकार नई होगी और न अखबार, न टीवी चैनल नया होगा और न कोई स्वाद। हाँ हमारे पास नए कपड़े हो सकते हैं, नया घर हो सकता है , नया वाहन हो सकता है ,नया मोबाईल सेट हो सकता है ,लेकिन अलप समय के लिए। हम नए दौर में प्रवेश जरूर करते हैं किन्तु ये नयापन टिकाऊ नहीं होता । आप याद करके देखिये और बताइये कि आपके पास नया क्या है ? नए केवल संकल्प हो सकते है। नया केवल सपना हो सकता है। नया केवल व्यवहार हो सकता है। नयी केवल शैली हो सकती है। नया केवल स्वाद हो सकता है हालाँकि हर नए के गर्भ में पुराना ही छिपा होता है। यानि नयापन एक ' मृग मरीचिका ' है। जो कभी हाथ नहीं आती और यही वो चीज है जो हमें निरंतर गतिशील बनाये रखती है।
नया साल आप सभी को मुबारक हो ये कामना हम भी करते हैं ,क्योंकि आने वाले दिनों में कुछ तो नया हो। नए रिश्ते बनें, नयी सियासत शुरू हो। नया नेतृत्व सामने आये । नया भारत बने जिसमें संकीर्णता ,साम्प्रदायिकता, वैमनस्य की दुर्गन्ध न आती हो। एक ऐसी नई दुनिया हमारा सपना है जिसमें युद्ध न हो ,केवल और केवल शांति हो। एक ऐसी दुनिया और एक ऐसा देश हो जहाँ भूख,गरीब। गैर बराबरी न हो कोई नया अवतार न हो। लेकिन ये सब कैसे हो ,कोई नहीं जानता। आप अपने लिए अपना नया खुद तलाशिये,कोई सरकार आपको कुछ भी नया नहीं
दे सकती। दुनिया में हादसे और खुशियां समान रूप से नई और पुरानी होती आयीं है और होती रहेंगी।
मुझे हर साल नए साल के वक्त प्रेम धवन याद आते है। हम हिंदुस्तानी फिल्म याद आती है। मुकेश याद आते है। उषा खन्ना याद आतीं हैं क्योंकि उन्होंने जो आव्हान ,जो सलाह हम हिन्दुस्तानियों को दी है वो कोई और दे नहीं सकत। प्रेम धवन जी लिख गए हैं -
छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी
नए दौर में लिखेंगे, मिल कर नई कहानी
हम हिंदुस्तानी, हम हिंदुस्तानी
हम अपनी पुरानी ज़ंजीरों को तोड़ चुके हैं , इसीलिए क्या देखें उस मंज़िल को जो छोड़ चुके हैं ? क्योंकि चांद के दर पर जा पहुंचा है आज ज़मानानए जगत से हम भी नाता जोड़ चुके हैं। अब हमारे पास नया खून है नई उमंगें है ,नई जवानी है। हममें सोचना है की हम को कितने ताजमहल और बनाने हैं। हमें उन्हें खोदने की बात नहीं सोचना । हमें सोचना है कि कितने अजंता हम को और सजाने हैं। हमें तय करना है अभी कितने दरियाओं का रुख पलटना है , और कितने पर्वतों को राहों से हटाना है। हमें अपनी मेहनत को अपना ईमान बनाना है। हमें किसी अवतार की जरूरत नहीं है ,हमें अपने हाथों से अपना भगवान बनाना है। हमें राम,कृष्ण और गौतम की इस पुण्य भूमि पर ही सपनों से भी प्यारा हिंदुस्तान बनाना है ,न की कोई हिन्दू राष्ट्र।
? हमें नहीं भूलना चाहिए की हमने दाग गुलामी का धोया है जान लुटा के,हमें याद रखना है कि हमने दीप जलाए हैं, ये कितने दीप बुझा के। हमें याद रखना होगा कि हमने ली है आज़ादी तो फिर इस आज़ादी को रखना होगा ,हर दुश्मन से आज बचा के । ? हमें हकीकत को पहचानना होगा। क्योंकि हमारा हर ज़र्रा है मोती है ,जरा आँख उठाकर देखो। हमारी मिटटी केवल मिटटी नहीं है इसमें सोना है, हाथ बढ़ाकर देखो। हमारी गंगा भी सोने की है ,चांदी की जमुना है। इसकी मदद से चाहो तो पत्थर पे धान उगाकर देखो। किसी राज सत्ता या व्यक्ति के अंधभक्त बनकर हम ये सब नहीं कर सकत। नयापन हमारे लिए एक ख्वाब ही बनकर रह जाएगा। बहरहाल आप सब खुश रहें ,सुख-समृद्धि आपके कदम चूमे। यही नए वर्ष पर हमारी शुभ कामना है।
@ राकेश अचल
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