इस बार पौष पूर्णिमा के दिन मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर 13 जनवरी सोमवार को लोहड़ी पर्व बड़े धूम धाम से मनाया जाएगा।इसी के साथ माघ स्नान प्रारंभ हो जाएगा।
वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य डॉ हुकुमचंद जैन ने बताया लोहड़ी और मकर संक्रांति के बाद से ही रातें छोटी होने लगती है और दिन बड़े होने लगते हैं दिन तिल तिल कर बड़े होते हैं। सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण गति प्रारंभ कर देता है। और छः माह तक उत्तरायण रहता है ।
लोहड़ी का त्यौहार अधिकतर मकर संक्रांति से एक दिन पहले उसकी पूर्वसंध्या पर हर्षोउल्लास के साथ मनाते है।पंजाब प्रांत से लोहड़ी पर्व विशेष रूप से महत्व रखता है।
पारंपरिक तौर से ये त्यौहार फसल की बुआई और कटाई से जुड़ा हुआ है और इसे लोग संध्या के समय अग्नि के चारों तरफ नाचते-गाते मनाते हैं। लोहड़ी की अग्नि में गुड़, तिल, रेवड़ी, गजक आदि डालने के बाद इन्हे अपने परिवार एवं रिश्तेदारों के साथ बांटने की परंपरा है, साथ ही तिल के लड्डू भी बांटे जाते हैं।
पंजाब में फसल की कटाई के दौरान लोहड़ी को मनाने का विधान रहा है और यह मूल रूप से फसलों की कटाई का उत्सव है। इस दिन रबी की फसल को आग में समर्पित कर सूर्य देव और अग्नि का आभार प्रकट करने की परंपरा है किसान फसल की उन्नति की कामना करते हैं।
लोहड़ी का पर्व मनाने के पीछे मान्यता है कि आने वाली पीढियां अपने रीति-रिवाजों एवं परम्पराओं को आगे ले जा सकें। जनवरी माह में काफ़ी ठंड होती है ऐसे में आग जलाने से शरीर को गर्मी मिलती है वहीं गुड़, तिल, गजक, मूंगफली आदि के खाने से शरीर को कई पौष्टिक तत्व मिलते हैं।
जैन ने बताया सूर्य 14 जनवरी को सुबह 08 बजकर 54 मिनट पर धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करेंगे इसी मकर में प्रवेश को यानी संक्रमण को मकर संक्रांति कहा जाता है।ऐसे में मकर संक्रांति का पर्व 14 जनवरी 2025 मंगलवार के दिन मनाया जाएगा।तिथि को लेकर कोई झमेला नहीं है
14 जनवरी मंगलवार के दिन संक्रांति का पुण्य काल सुबह 09:03 बजे से शाम 05:47 बजे तक चलता रहेगा इस का कुल समय 08 घंटे 43 मिनट रहेगा।
और महा पुण्य काल सुबह 09:03 बजे से 10:50 बजे तक श्रेष्ठ समय रहेगा । इस की कुल अवधि 01 घंटा 47 मिनट होगी।
दान पुण्य पूरे दिन भर चलेगा
जैन ने कहा ज्योतिष शास्त्र व अन्य शास्त्रों में मकर संक्रांति का महत्व काफी ज्यादा है। महाभारत काल में भीष्म पितामह जब बाणों की शैय्या पर लेटे हुए थे तब उन्होंने मकर संक्रांति तक अपने प्राणों को बचाकर रखा था। उन्होंने अपना देह त्यागने के लिए उत्तरायण के दिन की प्रतीक्षा की थी। मकर संक्रांति पर उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए थे। ऐसा मान्यता है कि जो कोई भी मकर संक्रांति यानी उत्तरायण के दिन देह त्यागता है। दरअसल, गीता में बताया गया है कि उत्तरायण के छह महीने में जो शुक्ल पक्ष की तिथि में जो व्यक्ति देह का त्याग करता है वह जन्म मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है और मोक्ष का प्राप्त करता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनिदेव की राशि यानी मकर में पूरे एक महीने के लिए रहते हैं। दरअसल, सूर्य और शनि के बीच शत्रुता के संबंध है। ऐसे में इस दिन का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि, इस दिन पिता और पुत्र का मिलन हुआ था
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