आज का शीर्षक पढ़कर आप कहेंगे कि क्या बेवकूफी भरा सवाल है ,लेकिन सवाल तो है, क्योंकि बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती शेख हसीना को भारत में शरणार्थी की हैसियत से रहते हुए आज 100 दिन पूरे हो गए हैं।हमारे यहां सौ दिन सास के हों या सरकार के या शेख हसीना के महत्वपूर्ण मने जाते हैं। शेख हसीना के भारत में सौ दिन इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि बांग्लादेश की अस्थायी सरकार भारत से हसीना के प्रत्यर्पण की मांग कर रही है और भारत इस मुद्दे पर गुड़ खाकर बैठा हुआ है। भारत ने अब तक साफ़ नहीं किया है कि हसीना को लेकर उसकी नीति क्या है ?
माननीय शेख हसीना जिन परिस्थितियों में भारत में शरणार्थी बनकर आयीं वे जग जाहिर है। एक सनातनी होने के नाते मै शेख हसीना को शरण देने के पक्ष में हूँ ,क्योंकि हमारी सनातन शरणार्थी नीति आज की सरकार की शरणार्थी नीति से बिलकुल अलग है। हमारे राम जी कह गए हैं कि -सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि।
ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकत हानि॥
इसलिए शेख हसीना को भारत से निकालना राम जी की शरणागत नीति के विरुद्ध जाएगा। दुर्भाग्य ये है कि भारत की शरणागत नीति शेख हसीना के बारे में अलग है और शेष बांग्लादेशियों या म्यांमार के रोहंगियों के बारे में अलग। हमारी सरकार बांग्लादेशियों को देश के लिए एक बड़ा खतरा मानती है और अब चुन-चुनकर उन्हें वापस बांग्लादेश और म्यांमार भेज रही है । इन्हीं बांग्लादेशियों की शिनाख्त के लिए भाजपा की सरकार ने तमाम क़ानून बनाये,जिनमें से सीएए भी एक है। मेरा कहना है कि शरणागत क़ानून भी एक देश एक विधान जैसा होना चाहिए,यानि जो कानून शेख हसीना के लिए हो वो ही दिल्ली में रिक्शा खींचने वाले बदरुद्दीन के लिए भी हो। लेकिन मै जानता हूँ कि मेरी बात किसी के गले नहीं उतरेगी,क्योंकि ऐसा करना न आसान है और न व्यावहारिक।
बांग्लादेश में तख्ता पलट के बाद जान बचाकर भागी शेख हसीना के प्रत्यर्पण के लिए बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मुहम्मद यूनुस प्रयासरत है। बांग्लादेश ने इस बारे में भारत से खतो -किताबत भी की है ,लेकिन भारत ने अभी तक इस बारे में कोई संकेत नहीं दिए है। भारत में 100 दिन से रह रहीं शेख हसीना को फिलहाल स्वदेश लौटने का ख्वाब देखना बंद कर देना चाहिए और तस्लीमा नसरीन की तरह भारत में स्थायी निवास के लिए अर्जी लगा देना चाहिए। वे चाहें तो भारत की नागरिकता भी मांग सकती हैं और यहां रहकर भी बांग्लादेशियों के लिए नयी पार्टी बनाकर सियासत शुरू कर सकती हैं। वे चाहें तो सत्तारूढ़ भाजपा में शामिल हो सकतीं है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद उन्हें आसानी से मिल सकता है।
भारत शरणार्थियों के लिए स्वर्ग है। रामजी के राज में भी और मोदी जी के राज में भी । कांग्रेस के राज में भी शरणागत नीति बड़ी उदार थी । 1975 में जब बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद शेख मुजीबर्रहमान के परिवार की हत्या की गयी थी उस समय भी शेख हसीना भारत में थीं। शेख हसीना ने उस समय भी 1975 सी 1981 तक दिल्ली के पंडरा रोड पर रहकर स्वदेश वापसी के लिए तैयारी की थी। यानि उनके लिए भारत में 100 दिन शरणार्थी बनकर रहना कोई नयी बात नहीं है। मोदी जी चाहें तो भारत उन्हें भारत में अगले आम चुनाव तक यानि 2029 तक आसानी से रुकने की इजाजत देकर कांग्रेस की सरकार के समय का कीर्तिमान भंग कर सकती है।
भाजपा में शेख हसीना को लेकर दो धड़े है। एक धड़ा चाहता है कि शेख हसीना भारत में ही रहें और दूसरा धड़ा चाहता है कि उन्हें जबरन बांग्लादेश भेज दिया जाये। मोदी जी कि शेख हसीना से जो कुर्बत है वो मोदी विरोधियों कि आँखों में किरकिरी जैसी खटकती है। 77 साल कि शेख हसीना हमारे प्रधानमंत्री जी कि बड़ी बी, यानि बड़ी बहन हैं। वे चाहें तो आगामी रक्षाबंधन पर शेख हसीना से राखी बंधवाकर उन्हें अपनी धर्म बहन बना सकते हैं। इससे उनके ऊपर मुस्लिम विरोधी होने का जो दाग है वो भी धुल जाएगा और बांग्लादेशी घुसपैठियों का समर्थन भी मिल जाएगा।
शेख हसीना की भारत में मौजूदगी का लाभ भारत अनेक तरीकों से ले सकता हैं । शेख हसीना 20 साल तक बांग्लादेश कि प्रधानमंत्री रह चुकी है। माननीय मोदी जी उनसे लम्बे समय तक सत्ता में बने रहने के गुर सीख सकते है। हमारी वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण चाहें तो शेख हसीना से ट्यूशन लेकर भारत कि जीडीपी बढ़ाने के नुस्खे हासिल कर सकती हैं। मोदी जी कि नीतियों को समझना आसान नहीं है । एक तरफ वे बाँटेंगे तो कटेंगे के नारे का समर्थन करते हैं तो दूसरी तरफ वे उस अजमेर शरीफ कि दरगाह के लिए चादर भी भेजते हैं जिसके नीचे शिव मंदिर होने की बात को लेकर मामला अदालत में विचारधीन है।इस बार ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का 813 उर्स पर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की और उनकी ओर से चादर चढ़ाई जाएगी। पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी पीएम मोदी के प्रतिनिधि बनकर अजमेर शरीफ दरगाह पर चादर चढ़ाने जाया करते थे, इस बार केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू उनके प्रतिनिधि बनकर जाएंगे।
बहरहाल मुद्दा शेख हसीना का है। आने वाले दिनों में ये देखना होगा कि शेख हसीना भारत के लिए शुभ साबित होतीं हैं या अशुभ ?2025 में शेख हसीना का भविष्य किस करवट बैठेगा ,कोई नहीं जानता। शेख हसीना चाहें तो भारत में रहकर कोई किताब लिख सकती हैं ' डिस्कवरी आफ इंडिया ' की तर्ज पर ' डिस्कवरी आफ बांग्लादेश ' के नाम से।
@ राकेश अचल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें