मोहन की भगवत का नया अध्याय 'बंधु भाव''

 

मेरी समझ में आजतक नहीं आया कि ये देश किसकी बात पर भरोसा करे ,आरएसएस प्रमुख डॉ मोहन भगवत की बात पर या प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र दामोदर दास मोदी की बात पर ? दोनों के सुर हर दिन बदल जाते हैं ,ठीक मौसम की तरह। संघ प्रमुख डॉ मोहन भगवत ने गणतंत्र दिवस पर कह दिया कि  असली धर्म ' बंधु भाव  ' है। अर्थात सनातन या हिन्दू धर्म असली धर्म नहीं रहा ,जिसके लिए ममता कुलकर्णी ने सन्यास लिया और महामंडलेश्वर बनीं। 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ) प्रमुख मोहन भागवत ने महाराष्ट्र के ठाणे में भिवंडी के एक महाविद्यालय  में गणतंत्र दिवस समारोह में  तिरंगा फहराने के बाद कहा कि - बंधुभाव ही असली धर्म है। उन्होंने कहा कि  यह बात डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने संविधान देते समय अपने भाषण में भी समझाई है।भागवत ने कहा- समाज आपसी सद्भावना के आधार पर काम करता है। इसलिए मतभेदों का सम्मान किया जाना चाहिए। प्रकृति भी हमें विविधता देती है। विविधता के कारण भारत के बाहर संघर्ष हो रहे हैं। हम इसे जीवन का हिस्सा मानते हैं।उन्होंने कहा कि आपकी अपनी विशेषताएं हो सकती हैं, लेकिन आपको एक-दूसरे के प्रति अच्छा व्यवहार करना चाहिए। अगर आप जीना चाहते हैं, तो आपको एक साथ रहना चाहिए।

मेरी समझ में ये नहीं आता कि  जो बात डॉ भागवत देश को समझा रहे हैं वो ही बात वे संघ दीक्षित भाजपा नेताओं और पार्टी कार्यकर्ताओं कि साथ असंघी  योगी आदित्यनाथ को क्यों नहीं समझाते ? योगी ही हैं जिन्होंने देश कि हिन्दुओं को ' बँटोगे तो कटोगे ' का सनातन सूत्र दिया है।ये नारा तो बंधु भाव की सोच से मेल ही नहीं खाता। संघ का कोई नारा भाजपा के नारों से मेल नहीं खाता।  क्या दोनों में सचमुच कोई तालमेल है ही नहीं या ये सब एकसाजिश है कि -एक आग लगाए और दूसरा आग पर पानी डालने का अभिनय करे। 

आपको याद होगा कि  पिछले दिनों डॉ भागवत ने देशवासियों से असली आजादी 22  जनवरी को मनाने का आव्हान किया था। 22  जनवरी को अयोध्या में राममंदिर का प्राण प्रतिष्ठा समारोह था। भागवत धर्मांतरण ,मस्जिदों की खुदाई और मुसलमान तथा ईसाइयों को आंतरिक दुश्मन माने जाने पर अंतर्विरोधी ब्यान दे चुके हैं। उनके बयानों से उनके ही जगतगुरु रामभद्राचार्य महाराज तक विरोध जता चुके हैं। वे कभी डीप स्टेट, वोकिजम और कलचरल  मार्क्सिस्ट को  सांस्कृतिक परम्पराओं के घोषित शत्रु कहते  हैं। तो कभी  बांग्लादेश में हुए हिंदुओं पर अत्याचार का भी मुद्दा उठाते हुए कहते हैं  कि दुर्बल रहना अपराध है, इसलिए हिंदुओं को एकजुट होने की जरूरत है।

मेरी समझ में ये नहीं आता की डॉ  भागवत   किसी सांस्कृतिक  -सामाजिक संगठन के मुखिया हैं या किसी राजनीतिक संगठन के । आपकी समझ में आता हो तो मुझे भी बताइये। मुझे लगता है कि  डॉ भागवत के विवादास्पद और अंतर्विरोधी भाषण सुन-सुनकर अब शाखामृग और भाजपा के देवतुल्य कार्यकर्ता और नेता भी दिग्भर्मित हो गए हैं। वे समझ नहीं पा रहे हैं है कि  उन्हें ' बंधु भाव  ' के लिए काम करना है या हिंदुत्व भाव के लिए। डॉ भागवत को चाहिए कि वे पल=पल में अपना स्टेण्ड न बदलें। पल-पल में स्टेण्ड हो या रंग, केवल और केवल गिरगिट अपना रंग बदलता है। मै डॉ भागवत को गिरगिट कहने की हिमाकत कर नहीं सकता। ये काम कांग्रेसियों का है। 

आप मुझे भी शौक से कूढ़ मगज कह सकते हैं ,क्योंकि मुझे डॉ भागवत समझ में ही नहीं आते । वे दादा कोंडके की तरह द्विअर्थी बातें करते हैं। यानि वे देश को और अपने शाखा मृगों को ये सुविधा देते हैं कि उनके भाषणों से  जो जैसा अर्थ  निकलना चाहे निकल ले।ये सुविधा आपको दादा नरेंद्र यदि या योगी आदित्यनाथ कि भाषणों को समझने के लिए नहीं दी गयी है। डॉ भागवत पशु चिकित्स्क होकर ऐसी मजेदार बातें करते हैं ,कल्पना कीजिये यदि वे आदमियों के डाक्टर होते तो क्या होता ? मै प्रतीक्षा कर रहा हूँ उस दिन की जब  डॉ भागवत  महाकुम्भ में ममता कुलकर्णी की तरह अचानक प्रकट होकर फिर देश को कोई ज्ञान बाँटेंगे । कुम्भ है ही ज्ञान बाँटने की जगह ।  मुझे तो लगता है कि  डॉ भागवत को महाकुम्भ कि दौरान इधर-उधर भागने के बजाय संगम तट पर कल्पवास करना चाहिए था। वे महाकुम्भ में आरएसएस का तम्बू भी लगाते तो और भी बेहतर होता। ध्यान रहे की अभी तक डॉ भागवत की कुम्भ स्नान करते हुए कोई तस्वीर सामने नहीं आयी है। 

@ राकेश अचल 


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