कंगना रनौत की बहुचर्चित फिल्म ' इमरजेंसी ' बॉक्स आफिस पर हिट होती है या फ्लाफ ये कहना अभी कठिन है क्योंकि ; इमरजेंसी ' की ओपननिंग से कोई भी अनुमान लगना कठिन है। इमरजेंसी ने दर्शकों को फिलहाल दो दिन तो अपनी और आकर्षित कर ये संकेत दिए हैं कि ' इमरजेंसी ' आज भी कौतूहल का विषय है और किंचित लोकप्रिय भी।
सिनेप्लेक्स में फिल्म देखने वाली आज की पीढ़ी ने सचमुच की ' इमरजेंसी ' नहीं देखी ,इसलिए उसे भाजपा संसद कंगना रनौत ' की इमरजेंसी ' में स्वाभाविक दिलचस्पी है। देश में आजादी के बाद पहली और फिलहाल अंतिम बार ' इमरजेंसी ' यानि आपातकाल 50 साल पहले लगा था। उस समय कांग्रेस का शासन था और प्रधानमंत्री के पद पर श्रीमती इंद्रा गाँधी आसीन थीं। इमरजेंसी लागू होने के बाद विपक्षी नेताओं को चुन-चुन कर गिरफ्तार किया गया और उन्हें जेल में डाल दिया गया था।आज की ' इमरजेंसी ' रजतपट की ' इमरजेंसी ' है। इसके जरिये तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी को एक खलनायिका के रूप में प्रस्तुत करना और इसके जरिये दिल्ली जीतने की एक अतृप्त अभिलाषा को पूरा करना है। चुनाव जितने के लिए ' इमरजेंसी ' की तर्ज पर पहले भी अनेक फ़िल्में बन चुकीं हैं।
असली ' इमरजेंसी ' 25 जून, 1975 को घोषित की गयी थी , इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने आपातकाल लगाए जाने पर अपनी मुहर लगाई थी। ये इमरजेंसी 21 मार्च, 1977 तक देशभर में लागू रही। स्वतंत्र भारत के इतिहास में ये 21 महीने काफी विवादास्पद रहे। इन 21 महीनों में जो कुछ भी हुआ। सत्ता दल अभी भी कांग्रेस को समय-समय पर कोसते रहते हैं। संयोग से इन पंक्तियों का लेखक यानि मै समझदार हो चुका था ,लेकिन क़ानून की दृष्टि में नाबालिग था इसलिए औरों की तरह जेल नहीं गया।उन दिनों दूरदर्शन नहीं था केवल रेडियो था इसलिए देश में इमरजेंसी लगाए जाने की घोषणा तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रेडियो के माध्यम से की थी। 26 जून, 1975 की सुबह इंदिरा गांधी ने ऑल इंडिया रेडियो पर कहा, 'राष्ट्रपति ने देश में इमरजेंसी की घोषणा कर दी है। इसमें घबराने की कोई बात नहीं है।
मुझे अच्छी तरह से याद है कि आपातकाल की घोषणा किए जाने के कुछ ही समय पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले पर सशर्त रोक लगा दी, जिसमें लोकसभा के लिए उनके चुनाव को अमान्य घोषित किया गया था। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को संसदीय कार्यवाही से दूर रहने को भी कहा था । वैसे इमरजेंसी से पहले इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने 1971 के लोकसभा चुनावों में शानदार जीत हासिल की थी। तत्कालीन 521 सदस्यीय संसद में कांग्रेस ने 352 सीटें जीती थीं। दिसंबर 1971 में बांग्लादेश को पाकिस्तान के युद्ध से आजाद कराकर इंदिरा गांधी आयरन लेडी के नाम से जानी जा रही थीं। इसके कुछ सालों बाद ही देश में इमरजेंसी की घोषणा ने आयरन लेडी के कामों पर ही सवाल खड़े कर दिए थे।
जिन परिस्थितियों में देश में पहली बार ' इमरजेंसी ' लगाईं गयी थी उन दिनों के हालात आज के हालत जैसे ही थे।जैसे आज नरेंद्र मोदी की सरकार पर आरोप लगाए जा रहे हैं ठीक वैसे ही आरोप इंदिरा गांधी की सरकार पर लगाए जा रहे थे। । गुजरात में सरकार के खिलाफ छात्रों का नवनिर्माण आंदोलन चल रहा था। बिहार में जयप्रकाश नारायण का आंदोलन चल रहा था। 1974 में जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्व में रेलवे हड़ताल चल रही थी। 12 जून, 1975 का इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें रायबरेली से इंदिरा गांधी के लोकसभा के लिए चुनाव को अमान्य घोषित कर दिया गया था। गुजरात चुनावों में पांच दलों के गठबंधन से कांग्रेस की हार और 26 जून 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में विपक्ष की रैली ने इंदिरा गांधी की सरकार को मुश्किल में डाल दिया था। हलनिक आज का विपक्ष का गठबंधन मोदी जी कि लिए उतना खतरनाक नहीं बन पाया है।
देश में यदि ' इमरजेंसी न लगती तो देश को भाजपा न मिलती। देश में नफरत की वो आंधी न चलती जो आज चल रही है। इंदिरा गाँधी की ' इमरजेंसी में तमाम ज्यादतियां भी हुईं , लोगों की जबरन नसबंदी कराई गयी, अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाये गए । लेकिन इमरजेंसी में नागरिक बोध भी बढ़ा । सरकारी दफ्तरों में अधिकारी कर्मचारी ही नहीं बल्कि रेलें ,बसें भी समय से चलने लगीं। लेकिन ' इमरजेंसी ' एक काला अध्याय बनी सो बनी। इस ' इमरजेंसी के लिए बाद में कांग्रेस और इंदिरा गाँधी परिवार के अनेक सदस्य सदन के भीतर और सदन के बाहर देश से माफ़ी भी मांग चुके हैं ,लेकिन भाजपा ने कांग्रेस को कभी माफ़ नहीं किया ,और आज तो ' इमरजेंसी ' पर फिल्म ही बना दी।
देश में ' इमरजेंसी पर पहले भी अनेक फ़िल्में बनी । ' किस्सा कुर्सी का' और आंधी जैसी फ़िल्में भी बनीं ,लेकिन वे भी कांग्रेस के खिलाफ वातावरण पैदा नहीं कर पायी। पीछे वर्षों में कांग्रेस को खलनायक साबित करने के लिए ' दी कश्मीर फाइल बनी,केरल फाइल बनी। फिल्मों के जरिये राजनेताओं को नायक और खलनायक बनाने की मुहीम जारी है। सरकार खुद इन फिल्मों का प्रमोशन करती है। हाल ही में ' दी साबरमती ' बनी। खुद प्रधानमंत्री जी ने इनका प्रमोशन किया ।
' इमरजेंसी ' फिल्म के लिए भाजपा की वे संसद कंगना रनौत काम आयीं जो देश की आजादी का दिन 15 अगस्त 1947 नहीं 5 अगस्त 2014 मानतीं हैं। कंगना ने श्रीमती इंदिरा गाँधी की भूमिका में जान डालने की बहुत कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हुईं।कंगना से पहले सुचित्रा सेन ने फिल्म ' आंधी ' में इंदिरा गाँधी बनने की कोशीश कीथी ' इमरजेंसी देखकर लौटे हमरे मित्र बता रहे हैं कि ' कंगना की ' इमरजेंसी ' इंदिरा गाँधी को खलनायक भी ढंग से नहीं बना पायी ,कोशिश जरूर की। बेहतर होता की फिल्म के लिए कंगना की जगह प्रियंका वाड्रा को चुना जाता । एक तो कंगना के मेकअप का खर्च बचता ,दूसरे अभिनय में जान भी आती। दरअसल इंदिरा गाँधी की नकल करना आसान नहीं है। इंदिरा गाँधी को उनके अपराध के लिए देश की जनता ने असली ' इमरजेंसी के ढाई साल बाद ही माफ़ कर दिया था और प्रचंड बहुमत से जीतकर वापस सत्ता सौंपी थी।
आज की ' इमरजेंसी देखने वालों को ये जानना जरूरी है कि जिस इंदिरा गाँधी को फिल्म के जरिये खलनायिका दिखाया गया है उसी इंदिरा गाँधी के साथ ही दस साल पहले तक देश ने कांग्रेस के 4 प्रधानमंत्री चुने हैं। यानि जनता कभी की ' इमरजेंसी ' को भूल चुकी है । भाजपा और भाजपा की सरकार बार-बार इमरजेंसी का जिक्र कर अपना उल्लू सीधा करना चाहती है ,लेकिन उल्लू सीधा करना और बात है लेकिन हकीकत को झुठलाना और बात। फिर भी चूंकि कंगना की ' इमरजेंसी ' में इंदिरा गाँधी हैं इसलिए उनकी फिल्म की लागत तो निकल ही आएगी ,क्योंकि अंधभक्त दर्शक तो ये फिल्म देखेंगे ही । मुमकिन है कि डबल इंजिन की सरकारें इस फिल्म को कर मुक्त घोषित कर दें ,
खबर है कि पहले दिन जहां ' इमरजेंसी ' ने 2.5 करोड़ का बिजनेस किया था वहीं दूसरे दिन ये आंकड़ा 2.74 करोड़ पहुंच गया है। इस हिसाब से फिल्म का कुल कलेक्शन 5.24 करोड़ रुपये पहुंच गया है। फिलहाल ये आंकड़ा अभी और बढ़ेगा और फिल्म को सप्ताहांत का भरपूर फायदा मिलता नजर आ रहा है।लेकिन प्रयागराज में महाकुम्भ के कारण ' इमरजेंसी ' उतना लाभ नहीं दे पा रही है जितना की अनुमान लगाया गया था। इस फिम के जरिये भाजपा यदि 2025 में दिल्ली विधानसभा जीत जाये तो मै मानूंगा की ' इमरजेंसी ' बंनाने का कुछ हासिल भाजपा को हुआ,कंगना रनौत को हुआ। दिल्ली जीतने के लिए भाजप जूते-चप्पल और साड़ियां तो पहले से बाँट रही है। 'कंगना की ' इमरजेंसी ' कामयाब हो ,ऐसी मेरी शुभकामनायें हैं ,लेकिन मेरी शुभकामनायें कंगना कि कितने काम आएंगीं ,मै खुद नहीं जानता।
@ राकेश अचल
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