महामंडलेश्वर ममता बाई के हाथों में धर्म -ध्वजा

 हिंदुत्व पर खतरों को लेकर हमेशा फिक्रमंद रहने वाले आरएसएस और भाजपा को अब बेफिक्र हो जाना चाहिए ,क्योंकि अब हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए खूबसूरत फिल्म अभिनेत्री सुश्री ममता कुलकर्णी  ने महामंडलेश्वर बनकर धर्म ध्वजा उठा ली है।  ममता के सन्यासी बनने और सीधे महामंडलेश्वर बनने से मेरी समझ में आ गया है कि हमारे सनातनी हिन्दू धर्म में सब कुछ बनना उतना जटिल नहीं है जितना दुनिया वाले समझते हैं। यहां आप जब चाहे अपना महिमा मंडन करा सकते हैं और महामंडलेश्वर की पदवी हासिल कर सकते हैं।

हिन्दू धर्म में ठेका प्रथा बहुत पुरानी है।  भाजपा केपास तो हिन्दू धर्म का ठेका 1980  में जन्म के साथ आया था। महाकुम्भ में इस समय हिन्दू धर्म की रक्षा करने वाले 14  अखाड़े मौजूद हैं ,जिस्मने से सबसे नए किन्नर अखाड़े को अभी तक अखाडा परिषद ने अधिमान्यता नहीं दी है ,लेकिन इसी अखाड़े ने ममता कुलकर्णी को महामंडलेश्वर बना दिया है। हालाँकि महामंडलेशवर बनना इतना आसान काम नहीं है जितना ममता के लिए इसे कर दिया गया। महामंडलेश्वर बनने से पहले सन्यासी की को थानापति ,कोतवाल,कोठरी,भंडारी और कारोबारी बनना पड़ता है ,जो ममता को नहीं बनना पड़ा।

मेरी अल्प जानकारी के मुताबिक नागा परम्परा में साधु-संतों की मंडलियां चलाने वालों को मंडलीश्वर कहा जाता था। 108 और 1008 की उपाधि वाले संत के पास वेदपाठी विद्यार्थी होते थे। अखाड़ों के संतों का कहना है कि ऐसे महापुरुष जिन्हें वेद और गीता का अध्ययन हो, उन्हें बड़े पद के लिए नामित किया जाता था। पूर्व में शंकराचार्य अखाड़ों में अभिषेक पूजन कराते थे, वैचारिक मतभेद के बाद यह काम महामंडलेश्वर के जिम्मे हो गया। अखाड़ों ने अपने महामंडलेश्वर बनाना शुरू कर दिए।

कायदे से महामंडलेश्वर वो ही बन सकता है जो साधु संन्यास परंपरा से हो।वेद का अध्ययन, चरित्र, व्यवहार व ज्ञान अच्छा हो।

और अखाड़ा कमेटी उसके निजी  निजी जीवन की पड़ताल से संतुष्ट हो।सब कुछ सामान्य होने के बाद संन्यासी का विधिवत पट्टकाभिषेक कर महामंडलेश्वर पद पर अलंकृत किया जाता है। फिर महामंडलेश्वर के बीच आपसी सहमति से आचार्य के पद पर अलंकृत किया जाता है। इसके बाद अखाड़े की सारी गतिविधियां आचार्य महामंडलेश्वर के हाथ संपन्न कराई जाती हैं।ममता के लिए ये सब शॉर्टकट से हो गया।

मुझे ममता के महामंडलेश्वर बनने से कोई आपत्ति नहीं है। मै तो चाहता हूँ कि फिल्म जगत की ही नहीं बल्कि राजनीति  की तमाम हस्तियों को इसी तरीके से धर्मध्वजाएं उठाना चाहिए ,लेकिन कहने वाले कहाँ चूकते है।  वे तो कहेंगे  ही कि ममता जी का सन्यास ठीक वैसा ही है, जैसे कोई बिल्ली सौ-सौ चूहे खाकर हज करने चली जाये। 'ममता जी के ऊपर ये कहावत लागू होगी या नहीं ,मुझे नहीं पता, किन्तु मुझे इतना याद है कि ममता जी के फ़िल्मी कैरियर में अभिनेता ही नहीं डॉन भी आये। वे विवादों से घिरी रहीं। लेकिन पिछले दो दशक से उनकी कहीं कोई चर्चा नहीं थी। इसलिए लगता है कि उन्होंने अपने आपको सचमुच बदल लिया है।

देश में 144  साल बाद के इस महाकुम्भ का यदि सबसे बड़ा हासिल कुछ है तो वो ममता कुलकर्णी का सन्यासी बनना है।  मुझे लगता है कि असंख्य नागाओं के प्रमुख जूनापीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद जी भी ममता कुलकर्णी की एन्ट्री से गदगद होंगे और आने वाले दिनों में पंच तपोनिधि निरंजनी, पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी, अटल अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, पंच अग्नि अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, आवाहन अखाड़ा भी ममता कुलकर्णी को अपने साधु कुल में समाहित कर लेगा।

महामंडलेश्वर ममता कुलकर्णी बड़ी ही ' छुपी रुस्तम ' निकलीं ।  उन्होंने अपने सन्यास को ;' सेंसर '  करके रखा। उनके सन्यास के बारे में जानेजिगर भी नहीं जान पाए और वे ' चाइना गेट ' से होते हुए ' किला' पर कर ' क्रन्तिकारी ' बन गयीं। उनका  ' जीवन युद्ध ' उनका ' नसीब ' हमेशा ' बेकाबू ' रहा। उन्होंने ' बाजी ' मरी और ' सबसे बड़ा खिलाड़ी ' बन गयीं। उन्होंने कोई ' आंदोलन ' नहीं किया,कोई कारण-अर्जुन ' उनके जीवन में नहीं आया। उनके ' अहंकार ' उनकी ' किस्मत ' ने उन्हें ' गैंग स्टर ' बना दिया। उनके ' वादे-इरादे' ' बेताज बादशाह 'बने रहे। वे ' क्रांतिवीर ' हैं।  उन्होंने ' अनोखा प्रेम युद्ध ' भी किय।  सन्यास लेने से पहले उन्होंने ' तिरंगा ' भी उठाया और वे ' आशिक आवारा भी रहीं। उनके जीवन में अनेक ' भूकंप ' भी आये। वे 'वक्त हमारा है ' समझती रहीं ,लेकिन हमेशा रहीं ' अशांत ' ही।  

मुझे अपने अनुजवत मित्र  गुप्तेश्वर पण्डे की किस्मत को लेकर बड़ी चिंता होती है ।  वे बिहार के पूर्व पुलिस महानिदेशक रहे ।  उन्हें बिहार का ' राबिनहुड' कहा जाता रहा ।  वे सियासत की और उन्मुख हुए लेकिन मोहभंग होते ही साधू बन गए। पांडे  जी  कहने को ' जगद्गुरु रामानुजाचार्य आचार्य गुप्तेश्वर जी महराज ', हैं लेकिन उनके जगद्गुरु बनने का वैसा हल्ला नहीं हुआ था जैसा कि ममता कुलकर्णी के महामंडलेश्वर बनने का हुआ।

चलते-चलते आपको बता दूँ कि महामंडलेश्वर सुश्री ममता कुलकर्णी  फिल्मों को छोड़ने के साथ-साथ ममता भारत छोड़ केन्या में बस  गई थीं. इसके बाद ममता कुलकर्णी का नाम 2016 में ड्रग्स केस में भी सामने आया था।  हालांकि, इस साल अगस्त में बॉम्बे हाई कोर्ट ने उन्हें राहत देते हुए मामले में क्लीन चिट दे दी थी।   आरोपों से मुक्त हो चुकी ममता हाल ही में 24 साल बाद भारत लौटी और चुपचाप सन्यासी बन गयी।  उनका गैंगस्टर विक्की गोस्वामी के साथ नाम भी जुड़ा लेकिन वे कहतीं हैं की विक्की उनके पति नहीं है।  जो भी हो महामंडलेश्वर ममता जी का धर्म क्षेत्र में स्वागत कीजिये। उनसे ज्ञान लीजिये।

@ राकेश अचल

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