सच्ची आजादी और झूठी आजादी का द्वन्द

 हम अजीब देश में जन्मे हैं ,जहां आजादी को भी झूठा और सच्चा कहा जा रहा है। मुझे फक्र है कि मै एक आजाद और धर्मनिरपेक्ष हिंदुस्तान में जन्मा हूँ। लेकिन मुझसे 9  साल पहले जन्मे आरएसएस के प्रमुख डॉ मोहन भागवत को ये गर्व नहीं है। उन्हें शायद मलाल है कि  वे 2014  के बाद क्यों नहीं जन्मे ।  उन्हें कायदे से 2014  के बाद जन्म लेना था ,क्योंकि उनके हिसाब से 15  अगस्त 1947  को मिली आजादी झूठी आजादी थी ,डॉ भागवत कहते हैं  कि राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को प्रतिष्ठा द्वादशी के तौर पर मनाया जाना चाहिए , इसे ही भारत का 'सच्चा स्वतंत्रता' दिवस मानना चाहिए।

आजादी को लेकर कौन -क्या सोचता है इसका आधार राम मंदिर बनने के बाद की आजादी से हासिल नहीं हुआ बल्कि ये अभिव्यक्ति की आजादी डॉ भागवत समेत देश के असंख्य भारतीयों को 15  अगस्त 1947  को मिली आजादी के बाद  मिली है। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी सही कहते हैं कि  डॉ भागवत किसी और दूसरे मुल्क में देश की आजादी को सच्चा-झूठा कहते तो देशद्रोह के आरोप में जेल के सींखचों के पीछे होते। लेकिन दूसरे देश में डॉ भागवत जैसों को जन्म मिलता ही क्यो।  

दरअसल गलती डॉ मोहन भागवत की नहीं है ।  गलती साबरमती के उस संत की है जिसने डॉ मोहन भागवत और देश के तमाम संघियों को आजादी बिना खड्ग ,बिना ढाल उठाये दे दी।दुनिया इस आजादी को कमाल मानती है लेकिन डॉ मोहन भागवत और उनके संगी-साथी अपने आपको राम मंदिर बनने के बाद आजाद मानते हैं। डॉ भागवत को संविधान ऐसी छूट नहीं देता  लेकिन संघ देता है जिसका भारत के संविधान से की लेना-देना नहीं है। चंद्रपुर महाराष्ट्र के इस संत को कौन समझाये  कि   साबरमती के संत के नेतृत्व में मिली आजादी का ही सुफल है कि  डॉ मोहन भागवत को न जेल जाना पड़ा, न अंग्रेजों की लाठियां खाना पड़ीं और घर बैठे आजादी मिल गयी।

राजनीति में उठा-पटक चलती है। उंच-नीच चलती है। हास -परिहास चलता है।  बडबुकता चलती है, लेकिन मूर्खता का कोई स्थान नहीं होता,किन्तु माननीय डॉ मोहन भगवत में सच्ची आजादी को झूठी आजादी बताकर राजनीति में मूर्खता को भी स्थापित कर दिया है।  मुझे डॉ भागवत की समझ पर कोई हैरानी नहीं है । वे पशु चिकित्स्क  हैं,उन्होंने इतिहास,भूगोल पढ़ा ही नहीं है । उन्हें क्या पता कि  आजादी कब मिली और कब नहीं ? मै राहुल गाँधी की तरह डॉ भागवत से ख़फ़ा भी नहीं हूँ ,क्योंकि मै जानता हूँ कि  डॉ भागवत ने वही कहा है जो उनके संस्कारों में शामिल है।  जो डॉ भागवत ने कहा है वो ही देश के प्रधानमंत्री कहेंगे और वो ही गृह मंत्री।  देश की सच्ची आजादी को झूठी आजादी कहना संघमित्रों की विवशता है। इसलिए उन्हें क्षमा कर दिया जाना चाहिए।

कांग्रेस की राजनीति से आपकी या मेरी सहमति  और असहमति हो सकती है लेकिन 15  अगस्त 1947  को मिली आजादी से हमारी-आपकी कोई असहमति नहीं हो सकती ,क्योंकि उस दिन हमें जो आजादी मिली उसका मोल लगाना आज के संघमित्रों के बूते की बात नहीं है ।  उनकी विरासत में एक दो सावरकरों ,नाथूरामों को छोड़कर कोई भगत सिंह, कोई सुभासचन्द्र  बोस, कोई गाँधी,कोई पटेल ,कोई नेहरू है ही नहीं। जो हैं वे ज़्यदातर माफीवीर हैं। वे आजादी की कीमत देने की स्थिति में कभी रहे ही नहीं। हमारे दादा कहा करते थे कि  ' बंदर को अदरक का स्वाद ' पता नहीं होता। शाखामृगों के साथ भी यही विडंबना है,वे आजादी का स्वाद नहीं जानते। देश में एक बार लागू किया गया आपातकाल   भी इन शाखामृगों को आजादी का अर्थ नहीं समझा सका ,हालाँकि आपातकाल एक अधिनायकवादी कदम था। मै क्या कोई भी उसका समर्थन नहीं करता।

आजादी को नकारने वाले और द्वादशी को सच्ची आजादी का दिन मानने वाले डॉ मोहन भागवत को चाहिए कि  वे देश से समय रहते माफ़ी मांग लें ।  न मांगे तो उनकी मर्जी ,लेकिन मै चूंकि  उनका भी शुभचिंतक हूँ  इसलिए उन्हें नेक सलाह दे रहा हूँ,क्योंकि उनके शाखामृगों में से किसी एक भी हिम्मत नहीं है जो उन्हें ऐसी नेक सलाह दे सके।  वे तो उसी रास्ते पर चलकर ' नमस्ते सदा वतस्ले ' करेंगे जिस रास्ते पर उन्हें हांका जाएगा। ये मौक़ा है जब संघ की शखाओं में बंधक वे तमाम शाखामृग  बाहर निकल सकते है।  जो आजादी का सही  अर्थ समझते है।  जो शहीदों का सम्मान करते हैं। जो अंधे नहीं हैं।

कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को शाबासी दी जाना चाहिए कि  उन्होंने डॉ भागवत के बयान का संज्ञान लिया और देश को बताया कि  आजादी पर टीका करने वाला नासमझ व्यक्ति कौन है ।  भाजपा और संघ  के तमाम नेताओं ने डॉ भागवत की गलती पर बोलने के बजाय राहुल गांधी पर सामूहिक हमला बोला है ये कहते हुए कि  वे भारत से ही लड़ रहे है। राहुल गाँधी ने कहा है कि  वे संघ,भाजपा और इंडियन स्टेट से लड़ रहे हैं। निसंदेह राहुल गाँधी के कथन में स्पष्टता नहीं है।   वे किस इंडियन स्टेट की बात कर रहे हैं ,ये उन्हें स्पष्ट करना चाहिए । हालाँकि जहाँ तक मेरी समझ में आया है वे डबल इंजिन की सरकारों वाले राज्यों  की बात कर रहे होंगे। राहुल गाँधी , डॉ भागवत की तरह देश की आजादी को सच्चा-झूठा नहीं कह सकते,क्योंकि उनके पूर्वजों ने आजादी से पहले भी कुर्बानियां दिन और आजादी के बाद भी।

बहरहाल डॉ मोहन भागवत ने देश में महाकुम्भ के चलते एक मूर्खतापूर्ण बयान देकर देशवासियों का मजा किरकिरा कर दिया है। उन्होंने किसानों के आंदोलन की खबर को भी दबा दिया है ।  वे दिल्ली विधानसभा चुनावों में बिधूड़ी की मौजूदगी पर भी पर्दा डालने में कामयाब रहे हैं। डॉ मोहन भागवत की भागवत में ऐसे प्रसंग आते रहेंगे, इसके लिए देशवासियों को तैयार  रहना चाहिए । संघ का काम ही सच को झूठ और झूठ को सच बताने का है। ये काम करने में संघमित्र सिद्धहस्त हैं,पारंगत हैं। दुनिया के तमाम झूठे लोग संघ के समाने बौने हैं। मुझे यकीन है कि  देशवासी डॉ मोहन भागवत के कहने के बाद भी 15  अगस्त को सवतंतता दिवस मनाना नहीं भूलेंगे। ये भूल डॉ भागवत भले  ही कर दें किन्तु प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र दामोदर दस मोदी भी ये गलती करने वाले नहीं है कि  वे भारत का स्वतांत्रता दिवस  15  अगस्त से बदलकर 05  अगस्त द्वादसी कर दें। शहरों,स्टेशनों,सरायों के नाम बदलना आसान है लेकिन किसी देश का स्वतंत्रता दिसवस बदलना असम्भव है।

@ राकेश अचल

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