इन दिनों रजतपट पर विक्की कौशल और 'छावा' दोनों ही धमाल मचा रहे हैं। ऐतिहासिक फिल्म ' छावा ' बॉक्स ऑफिस पर पूरे जोश में आगे बढ़ रही है और इसकी रफ़्तार धीमी होने का नाम ही नहीं ले रही है। सिनेमाघरों में नौ दिनों तक चलने के बाद, अब यह फि ल्म 300 करोड़ रुपये की बड़ी कमाई करने की ओर बढ़ गई है। खचाखच भरे सिनेमाघरों, जोरदार तालियों और रिकॉर्ड तोड़ कमाई के साथ, 'छावा' ने खुद को साल की सबसे बड़ी हिट फिल्मों में से एक बना दिया है।लेकिन सवाल ये है की भारतीय राजनीति का ' छावा ' कौन है ?
भारतीय राजनीति में भी इतिहास बदलने की होड़ में लगे अनेक किरदार हैं लेकिन ' असली ' छावा ' का पता नहीं चल पा रहा है। कभी छावा की भूमिका में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नजर आते हैं तो कभी अमित शाह । कभी योगी आदित्यनाथ तो कभी राहुल गाँधी । कभी एकनाथ शिंदे तो कभी शरद पंवार। सियासत में हर कोई छावा बनकर छा जाना चाहता है। लेकिन देश की फ़िक्र किसी सियासी छावा को नहीं है। सबको अपनी-अपनी पड़ी है।
कहते हैं कि 'छावा' में औरंगजेब बने अक्षय खन्ना की 27 साल में 22 फ्लॉप फिल्में, दी हैं। उनकी फ़ीस भी 2.5 करोड़ रूपये है अक्षय की नेटवर्थ विक्की कौशल से अधिक है। अक्षय खन्ना 'छावा' में औरंगजेब का रोल करके हर किसी की नजर में एक बार फिर से आ गए हैं। अक्षय के काम की खूब तारीफ हो रही है। औरंगजेब के किरदार में उनकी कलाकारी को देखकर हर कोई दंग रह गया है और उन्हें बेस्ट एक्टर्स में से एक के तौर पर काउंट किया जा रहा है।लक्ष्मण उटेकर के निर्देशन में बनी 'छावा' महान मराठा शासक छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन पर आधारित एक पीरियड ड्रामा है। विक्की मराठा साम्राज्य के संस्थापक के सबसे बड़े बेटे छत्रपति संभाजी महाराज के रोल में हैं। रश्मिका मंदाना उनकी पत्नी येसुबाई भोंसले का किरदार निभा रही हैं। अक्षय खन्ना, आशुतोष राणा और दिव्या दत्ता भी लीड रोल में हैं।
आइये अब बात करते हैं भारतीय सियासत के छावा और औरंगजेब की । भारतीय राजनीति में भाजपा ने प्रधामनंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी को छावा और लोकसभामें विपक्ष के नेता राहुल गांधी को औरंगजेब बना दिया है। दोनों अपने-अपने किरदार में जान फूंकने की कोशिश कर रहे है। दुर्भाग्य से सियासी छावा में कोई येशुबाई भैंसले नहीं है। मोदी रणछोड़दास हैं और राहुल ने अभी तक घर नहीं बसाया है। पिछले एक दशक से सियासी छावा और औरंगजेब में ठनी हुई है। मोदी खुद चक्रवर्ती सम्राट बनना चाहते हैं लेकिन राहुल गाँधी बीच-बीच में उनका रथ रोक लेते हैं। लेकिन मैदान किसी ने भी नहीं छोड़ा है।
भारतीय सियासत की फिल्म छावा में मोदी और गाँधी के अलावा दूसरे किरदार भी हैं। आप इन्हें ए-1 और ए-2 भी कह सकते हैं और अडानी तथा अम्बानी भी कह सकते हैं इन किरदारों की धूम भारत की सीमाओं के बाहर भी है । एक को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया जाता है तो दूसरे के खिलाफ अमेरिका की अदालत से वारंट जारी किये जाते हैं। भारतीय सियासत के छावा की नींद 21 करोड़ अमेरिकी डालर की कथित अमेरिकी मदद की खबर भी उड़ा देती है। पहले इस मदद को लेकर कांग्रेस निशाने पर थी अब ये निशाना बदल गया है। निशाने पर मोदी थे किन्तु वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण जी ने ट्रम्प की तोप का मुंह दूसरी और मोड़ दिया।
बैशाखियों और तांगों के सहारे दिल्ली और महाराष्ट्र में सरकार चलाने वाली भाजपा के लिए औरंगजेब केवल राहुल गाँधी ही नहीं बल्कि दुसरे भी हैं। बिहार में डिप्टी चीफ मिनिस्टर एकनाथ शिंदे ने मोदी -शाह की जोड़ी को साफ़ ढका दिया है की उन्हें हल्के में न लिया जाये।मोदी जी को तांगेवाले से बचने के लिए महाराष्ट्र की राजनीती के बूढ़े छावा शरद पाँवर के समाने विनम्रता का स्वांग करना पड़ रहा है । वे कभी शाह की कुर्सी पीछे खिसकाते दिखाई देते हैं तो कभी उनका गिलास भरते नजर आ रहे हैं। कोशिश ये है की बिहार विधानसभा चुनाव तक कोई औरंजेब सर न उठा पाए ,फिर चाहे वो राहुल गाँधी हो या एकनाथ शिंदे।
सत्ता में बने रहने के लिए सभी को साधना आज के सियासत के छावा की मजबूरी है। उसे मसखरा शास्त्री भी साधना पड़ रहा है ,और अपनी ताकत बढ़ाने के लिए कांग्रेस के असंतोष पर नजरें रखना पड़ रही हैं। सीएसी छावा को शास्त्री भी चाहिए और थरूर भी। सिहायसि फिल्म में बिदूषक न हो तो मुष्किल होती है। एक अकेला हीरो और खलनायक तो बन सकता है किन्तु उसे बिदूषक की जरूरत क्यों पड़ती है। बिना बिदूषक के कोई सियासी फील या ड्रामा कामयाब नहीं हो सकता।
भाजपा की मैं इस बात के लिए हमेशा तारीफ करता हूँ की -भाजपा भ्रम फैलाकर सियासत करती है। इस भ्रमजाल में जो फंस गया उसका लोप हो जाता है। उमा भारती ,शतुघ्न सिन्हा ,यशवंत सिन्हा इस बात के ज्वलंत उदाहरण हैं।फ़िलहाल भाजपा की सियासी फिम छावा में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम सबसे ऊपर है उन्होंने कुम्भ को महाकुम्भ बनाकर फ़िल्मी कारोबार को भी पीछे छोड़ दिया है। उन्हें इस समय न राम से काम है और न राम की गंगा के मैलेपन से। उन्हें डुबकियों से मतलब है। वे देश की आधी आबादी को वे कुम्भ में डुबकियां लगवा चुके हैं। इसमें वे लोग शामिल हैं की नहीं जो पांच किलो मुफ्त के राशन पर पल रहे हैं। रजतपट की छावा सियासी छावा को गति देने का ाएक उपक्रम मात्र है। पहले भी भाजपा फिल्मों के माध्यम से ये कोशिश कर चुकी है।
@ राकेश अचल
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