गुरुवार, 27 फ़रवरी 2025

बिहार की सत्ता किसका आहार बनेगी ?

 

शीर्षक चौंकाने वाला जरूर है लेकिन है हकीकत के ठीक  करीब। दरअसल अगली छमाही में होने वाले विधानसभा चुनाव के जरिये सत्ता हथियाने के लिए सबसे ज्यादा भाजपा लालायित है। भाजपा अब गबरू जवान पार्टी है। पूरे 45  में चल रही है और बिहार की सत्ता का स्वाद उसे अभी तक नहीं मिला है ,मिला भी है तो पूरा नहीं मिला। बिहार   से कांग्रेस को भी सत्ता से हटे कोई 34  साल हो चले हैं ,लेकिन कांग्रेस ने भाजपा की तरह बिहार की सत्ता के अपहरण की कोई कोशिश अब तक नहीं की है। बिहार में चुनाव से ठीक पहले जेडीयू-भाजपा गठबंधन की सरकार के अंतिम मंत्रिमडलीय फेरबदल ने साफ़ कर दिया है कि आगे क्या होने वाला है ?

नीतीश कुमार मंत्रिमंडल के अंतिम फेरबदल में 7  नए मंत्री शामिल किये गए,लेकिन इनमें  नीतीश बाबू की अपनी पार्टी का एक भी सदस्य नहीं है।  जाहिर है कि  नीतीश बाबू एक असहाय मुख्यमंत्री हैं और उन्हें भाजपा के इशारों पर कठपुतली नृत्य करना पड़ रहा है। इस समय नीतीश बाबू की स्थिति ' सांप-छछूंदर जैसी हो गयी है।  वे न भाजपा का साथ छोड़ सकते हैं और न साथ रह सकते हैं ,क्योंकि साथ रहने में जेडीयू के हर सदस्य का दम घुट रहा है।साफ़ दिखाई दे रहा है कि  भाजपा नीतीश बाबू को बिहार का एकनाथ शिंदे बनाने जा रही है ,लेकिन क्या नीतीश बाबू इतनी आसानी से अपनी कुर्बानी दे देंगे ,इसमें मुझे और मेरे जैसे तमाम लोगों को संदेह है। 

आपको याद होगा कि  नितीश बाबू जेपी आंदोलन की पैदाइश हैं।  वे पहली बार 3  मार्च 2000  को मुख्यमंत्री बने थे किन्तु केवल 7  दिन के लिए। उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री बनने के लिए 3  साल 360  दिन की लम्बी प्रतीक्षा करना पड़ी थी। दूसरी बार नीतीश बाबू 8  साल 177  दिन तक मुख्य मंत्री रह पाए लेकिन उनकी बैशखियाँ   बदलती रहीं।  उन्हें 20  मई 2014  को 278  दिन के लिए अपना सिंघासन जीतन राम माझी को सौंपना पड़ा ,लेकिन सत्ता के बिना एक पल न रह पाने वाले नीयतीश बाबू शांत नहीं बैठे और 22  फरवरी 2015  को दोबारा मुख्यमंत्री बन गए। तब से अब तक दस साल तो निकल चुके हैं ,लेकिन अब उनका सत्ता में बने रहना संदिग्ध दिखाई दे रहा है। 

बिहार  के लिए नीतीश बाबू एक जरूरत हैं या एक मजबूरी, ये तय कर पाना मुश्किल है ,क्योंकि वे इतनी करवटें बदलते हैं कि  उन्हें कोई पल्टूराम कहता है तो कोई गिरगिट। 2025  में प्रस्तावित बिहार विधानसभा के चुनाव से ठीक पहले नीतीश बाबू एक और करवट नहीं लेंगे ,इसकी कोई गारंटी नहीं है ।  फिलहाल वे भाजपा के साथ हैं और नतमस्तक भी हैं ,लेकिन भाजपा नितीश  बाबू को भविष्य में मुख्यमंत्री बनते नहीं देखना चाहती। भाजपा की कोशिश है कि  इस बार बिहार उसका हो। हरियाणा,महाराष्ट्र और दिल्ली जीतने के बाद भाजपा का हौसला बढ़ा हुआ है। इस बार सनातन के नव-जागरण का सेहरा भी भाजपा ने महाकुम्भ की कथित कामयाबी के साथ ही अपने सर पर बांध लिया है। इसलिए भाजपा नीतीश बाबू को अपनी शर्तों पर नचा रही है।

राजनीति में भविष्यवाणी से ज्यादा अटकलें काम करती हैं और सही भी साबित होतीं है।  मेरा अनुमान ये है कि  बिहार विधानसभा चुनाव से पहले या तो जेडीयू टूट जाएगी या फिर नीतीश बाबो खुद भाजपा छोड़ एक बार फिर राजद के साथ खड़े नजर आएंगे ,क्योंकि उन्हें अब अपने  नहीं ,बल्कि अपने बेटे निशांत के भविष्य की चिंता है। निशांत पहली बार राज्य की राजनीति में सक्रिय हुए हैं और उन्होंने आते ही अपने पिता को दोबारा मुख्यमंत्री बनाने के लिए लॉबिंग करना शुरू कर दिया है। हालाँकि भाजपा संसद संजय जायसवाल ने कहा है कि  नीतीश बाबू ही मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे लेकिन कोई संजय की बात पर यकीन करने को तैयार नहीं है। 

बार की राजनीति कुछ-कुछ झारखण्ड की राजनीति से मिलती जुलती है। झारखण्ड में हाल ही के विधानसभा चुनाव में भाजपा पराजित होकर निकली है। वहां  आईएनडीआईए गठबंधन की जीत हुई है ,लेकिन भाजपा बिहार को झारखंड   नहीं बनने देना चाहती। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और  अमित शाह कीपूरी कोशिश है की इस बार हर हाल में बिहार में भाजपा की सरकार  बनना चाहिए अन्यथा भाजपा का चक्रवर्ती बनने का सपना यहीं टूट जाएगा। बिहार में आईएनडीआईए गठबंधन फिलहाल मजबूत स्थिति में है। कांग्रेस को बिहार की सत्ता नहीं चाहिए। कांग्रेस केवल और केवल भाजपा को बिहार  की सत्ता से दूर रखने के लिए गठबंधन में कोई भी जिम्मेदारी निभाने के लिए तैयार दिखाई दे रही है। उसे राजद से कोई शिकायत है नहीं और सीट बंटवारे को लेकर भी कांग्रेस राजद से मोलभाव करने की स्थिति में नहीं है।  

भाजपा के साथ गठबंधन में शामिल जीतनराम माझी और चिराग पासवान अभी मौन है।  दोनों सत्ता सुख लेना चाहते हैं। बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा इन दलित नेताओं के साथ कैसा बर्ताव करती है ये अभी तय नहीं है। भाजपा के लिए ये दोनों भरोसेमंद सहयगी नहीं  हैं। ये दोनों  हवा का रुख देखकर अपनी भूमिका का चयन करने वाले लोग हैं। यदि चिराग को  राजद सत्ता में आती दिखी तो वे राजद के साथ खड़े होने में कोई संकोच नहीं करेंगे और यदि उन्हें भाजपा का पलड़ा भारी होता दिखा तो वे भाजपा में ही बिना किसी ना-नुकर के बने रहेंंगे । चिराग के पास दलदबदल की एक बड़ी थाती है। उनके पिता राम विलास पासवान अपने समयके सबसे बड़े दलबदलू  माने जाते थे। अब देखते हैं 

कि   भगवान बुद्ध की साधना स्थली बिहार में भाजपा बिहार होता है या नहीं।?

@ राकेश अचल

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