जंजीरों में जकड़ी भारतीयों की अस्मिता

 

पिछले 45 साल की अपनी पत्रकारिता की यात्रा में मैंने पहले कभी ऐसे मंजर नहीं देखे जैसे 5 फरवरी  को देखना पड़े ।  जंजीरों में जकड़े 105 भारतीयों  को जंजीरों से जकड़े हुए अमरीकी सैन्य विमान से उतरते देखना 2014  के बाद मिली भारत को असली आबादी के बाद का सबसे खौफनाक और अपमानजनक मंजर  था। किसी देश में अवैध प्रवास सचमुच एक अपराध है। हम क्या सारी दुनिया में इसे घुसपैठ कहा जाता है ,लेकिन  क्या   किसी और देश ने  भारतीय  घुसपैठियों  को इतना  बेआबरू कर अपने  देश से निकला है ?

घुसपैठ अकेले अमेरिका की समस्या नहीं है। ये एक विश्वव्यापी समस्या है और इस समस्या से हर देश अपने तरीके से निबटता भी है। ये बात और है कि भारत में घुसपैठ से निबटना भारत सरकार को वैसे नहीं आता ,जैसे अमेरिका को आता है।  अमेरिका में निजाम बदलने के एक पखवाड़े के बाद ही ट्रम्प प्रशासन ने भारतीय घुसपैठिओं की पहली खेप का निर्वासन कर उन्हें  कैदियों के रूप में भारत भेज दिया। अमेरिका में अवैध भारीय प्रवासियों की वास्तविक संख्या 2  लाख बताई  जाती है ,लेकिन 18  हजार तो बाकायदा अमेरिका की जेलों में पड़े हुए है।  इतने घुसपैठिये तो भारत में भी बांग्लादेश और म्यांमार के नहीं होंगे। 

अमेरिका ने भारतीय घुसपैठियों को निर्वासित कर दिया इस पर कोई आपत्ति नहीं की जा सकती किन्तु उन्हें जिस तरह युद्धबन्दियों की तरह हथकड़ियों में जकड़ कर भारत भेजा गया ,वो भी सैन्य विमान से ,ये आपत्तिजनक है। खेद है कि  भारत ने इसको लेकर अपनी आपत्ति दर्ज नहीं कराई। भारत अपने नागरिकों को वापस लाने के लिए अपना विमान भेज सकता था। भारत ने अपने नागरिकों को अतीत में यूक्रेन और सीरिया से निकालने के लिए अपने विमान ही नहीं बल्कि अपने मंत्री तक भेजे हैं। लेकिन अमेरिका में अपने ही लोगों को लेने जाने से भारत डर गय। भारत मैक्सिको की तरह अमेरिका का विरोध भी दर्ज नहीं करा पाया ,अमेरिकी विमान को रोकना तो दूर की बात है।  

भारत में बांग्लादेशी हिन्दुओं पर अत्याचार के विरोध में धरना-प्रदर्शन करने वाले हिन्दू संगठन इस समय भूमिगत हैं जबकि अमेरिका के केलिफोर्निया में ही लोगों ने अमरीकी आव्रजननीति का विरोध किया। भारत में अमेरिका के कदम के खिलाफ किसी ने कोई विरोध नहीं किया। उलटे देश के प्रधानमंत्री ने उसी दिन गंगा में डुबकी लगाईं जिस दिन अमेरिका ने निर्वासित भारतीयों की पहली खेप भारत भेजी।  दुर्भाग्य की बात ये है कि  भारत सरकार ने दिल्ली विधानसभा चुनावों में डूबने से बचाने   के लिए अमेरिका के सैन्य विमान को दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतारने के बजाय अमृतसर भेज दिया। 

भारत -अमेरिका संबंधों के बारे में एक दिन पहले संसद में प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को कोसने वाले देश के प्रधानमंत्री ने देश को नहीं बताया की देश आजाद होने के बाद 1947  से 2013  तक अमेरिका ने कितने भारतीय प्रवासियों को कैदियों की तरह अपने सैन्य विमान में भरकर भारी भेजा ? मुझे लगता है कि  भारत का इस घटना से जितना अपमान वैश्विक जगत में 5  फरवरी 2025  को हुआ है उतना पहले कभी नहीं हुआ।  न अटल बिहारी वाजपेयी के जमाने में ,न डॉ मनमोहन सिंह के जमाने में और न नेहरू,इंदिरा और मिस्टर क्लीन राजीव गाँधी के जमाने में। उस जमाने में प्रधानमंत्री शतुरमुर्ग की तरह न रेत में सर छिपाते थे और न मोदी जी की तरह गंगा में डुबकी लगाते थे। बराबरी से बात करते थे।  बेहतर होता कि  मोदी जी अमेरिका की इस कार्रवाई के विरोध में अपनी 13  फरवरी से प्रस्तावित यात्रा ही रद्द कर देते। लेकिन इसके लिए साहस चाहिए ,भारतीय स्वाभिमान की रक्षा का संकल्प चाहिए। मोदी कि पास सातवां बड़ा थोड़े ही है।

आपको बता दे कि  अमेरिका में अल सल्वाडोर के 7.5 लाख, भारत के 7.25 लाख, ग्वाटेमाला के 6.75 लाख और होंडूरास के 5.25 लाख अवैध प्रवासी रहते हैं। अमेरिका में फ्लोरिडा, टेक्सॉस, न्यूयॉर्क, न्यूजर्सी, मैसाच्युएट्स , मैरीलैंड और कैलिफोर्नियां ऐसे शहर हैं, जहां सबसे ज्यादा अवैध प्रवासी रह रहे हैं। अमेरिका में शायद ही कोई चीनी नागरिक अवैध रूप से रहता हो ,जबकि चीन भारत से आबादी के मामले में पीछे है।लेकिन चीन इस मामले में शायद भारत से ज्यादा सतर्क है। अमेरिका घुसपैठियों के मामले में कितना सख्त है इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि  घुसपैठियों की तलाश का काम सेना से कराया  जा रहा है ।  अमेरिका में भारतीय घुसपैठियों की तलाश के लिए गुरुद्वारों तक की तलाशी ली गयी है। 

मुझे नहीं लगता कि  भारत के मौजूदा नेतृत्व में इतनी तथा है जो वो भारतीयों के निर्वासन के मुद्दे पर अमेरिका से सीधा मुकाबला कर सके। यदि भारत ने समय रहते अपना रवैया  न बदला तो आप देखेंगे कि  आने वाले दिनों में हर दिन देश के किसी न किसी हवाई अड्डे पर अमेरिका का कोई न कोई सैन्य विमान निर्वासित भारतीयों की खेप लेकर उतरता दिखाई देगा। 2014  के बाद आजाद हुए अंधभक्त इस तरह के अपमानजनक मंजर देखना चाहते हैं तो शौक से देखें, लेकिन शेष देश को अमेरिका की इस कार्रवाई के बारे में  अपने देश की सरकार को  विवश करना चाहिए।  इस समय देश की इंदिरा गाँधी जैसे नेतृत्व की जरूरत है जो अमेरिका की आँख  में आंख डालकर बात कर सके और अवैध प्रवासन के मुद्दे को मानवीय आधार पर सुलझाने का हौसला दिखा सके। 

 अमेरिका से वापस आए भारतीय लोगों को बेड़ियों से जकड़ कर लाया गया।  अमेरिकी सरकार की ओर से ऐसे सलूक पर मंत्री कुलदीप सिंह धालीवाल ने कहा है कि मामले को लेकर वो विदेश मंत्री एस जयशंकर से मुलाकात करेंगे। कांग्रेस ने इस मुद्दे पर जिस तरह से ठंडी प्रतिक्रिया दी है उससे बात बनने वाली नहीं है ।  कांग्रेस  को इस मुद्दे पर सड़कों पर लड़ाई लड़ना चाहिए। भारत से ज्यादा बड़ा कलेजा तो कोलंबिया का है ।  अमेरिका ने जब कोलंबिया के अवैध प्रवासियों को अमेरिकी सेना के विमान से उनके देश वापस भेजने की घोषणा की तो कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पेड्रो ने इसका विरोध किया। सैन्य विमानों में जबरन लोगों को बैठाकर दूसरे देश की ज़मीन पर उतरने को संप्रभुता से जोड़कर भी देखा जाता है।  इसी वजह से मेक्सिको की राष्ट्रपति क्लाउडिया शीनबाम ने इस मुद्दे को लेकर बड़ा बयान दिया था लेकिन भारत को अमेरिका के सैन्य विमान का भारत की जमीन पर उतरना समप्रभुता पर हमला नहीं लगता। हे राम !

@ राकेश अचल

इस आलेख के साथ ये गजल भी मौजूद है

मेरी गजल

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आंधी के पीछे तूफान, चले आए

बिना बुलाए घर मेहमान, चले आए

🌹

सात समंदर पार गए थे चुपके से

चूर - चूर करके अरमान, चले आए

🌹

खाली हाथ गए थे, खाली लौटे हैं

छोड - छाडकर हर सामान, चले आए

🌹

कोई माई - बाप नहीं है दुनिया में

साथ लिए केवल अपमान, चले आए

🌹

बहुत भरोसा था अपने आकाओं पर

निकले सारे बेईमान, चले आए

🌹

मजबूरी में जान हथेली पर रक्खी

सीधे थे शायद भगवान, चले आए

🌹

किसे दिखाएं जख्म खोलकर सीने के

गिरवी रख आए सम्मान, चले आए

🌹

@ राकेश अचल

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