जादूगर सरकार की तरह अब भाजपा भी जादू करके अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं के साथ देश को भी अचरज में डालने लगी है। भाजपा ने लगभग तीसरी बार दिल्ली में विधायक दल के नेता के रूप में एक ऐसा नाम नवनिर्वाचित विधायकों के सामने रख दिया जिसके बारे में दूर-दूर तक क्या, ख्वाब में भी किसी ने नहीं सोचा था । दिल्ली की नई-नवेली भाजपा सरकार की कमान, पार्टी हाईकमान ने श्रीमती रेखा गुप्ता को सौंपी है। रेखा को किस कोटर से निकाला गया है, कोई नहीं जानता। हालाँकि रेखा जी छात्र राजनीति से प्रशिक्षित होकर चुनाव की राजनीति में आयीं हैं। रेखा का अवतरण उसी तरह हुआ है जैसा कि पहले राजस्थान ,मप्र और छग में अपने मुख्यमंत्रियों का किया था।
दिल्ली में पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा को मुख्यमंत्री पद का स्वाभाविक उम्मीदवार समझा जा रहा था ,लेकिन हुआ उल्टा । भाजपा ने आतिशी का उत्तराधिकारी रेखा को बनाया। रेखा महिला भी हैं और वैश्य समाज का चेहरा भी । भाजपा की विवशता थी कि वो दिल्ली की जनता को महिला की जगह महिला और केजरीवाल की जगह वैश्य को ही मुख्यमंत्री बनाये ,सो बना दिया हालाँकि ये निर्णय करने में भाजपा को पूरे 12 दिन लग गए। रेखा दिल्ली की चौथी महिला मुख्यमंत्री होंगी । चार में से दो महिलाएं भाजपा की और से दी गयी । पूर्व में श्रीमती सुषमा स्वराज भाजपा की सरकार की मुख्यमंत्री रह चुकीं हैं। कांग्रेस ने श्रीमती शीला दीक्षित को और आम आदमी पार्टी ने आतिशी को मुख्यमंत्री बनाया था।
आपको याद होगा की 1996 में रेखा गुप्ता दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डुसू) की अध्यक्ष चुनी गयीं थीं। 2007 में वो दिल्ली के पीतमपुरा (उत्तर) की काउंसिलर बनीं। रेखा ने पहला विधानसभा चुनाव शालीमार बाग सीट से ही लड़ा था लेकिन जीत नहीं पायीं थीं ,किन्तु हाल के विधानसभा चुनाव में रेखा गुप्ता ने आम आदमी पार्टी की बंदना कुमारी को क़रीब 30 हज़ार वोट से हराया।। रेखा ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री बना देगी। भाजपा ने इससे पहले राजस्थान में श्रीमती वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री नहीं बनाकर महिला विरोधी होने के आक्षेप झेले थे ,लेकिन दिल्ली में महिला को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा महिलाओं में एक बार फिर अपनी जगह बनाने की नाकाम कोशिश कर रही है।
मेरी अपनी धारणा है कि भाजपा हाई कमान ने रेखा को मुख्यमंत्री बनाकर एक तरह से जुआ खेला है। तीर निशाने पर लगा तो ठीक अन्यथा तुरुप बदलने में देर कितनी लगती है ? भाजपा अब पार्टी में पीढ़ी परिवर्तन कर रही है। मध्यप्रदेश में डॉ मोहन यादव और राजस्थान में भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने ये प्रयोग करके देख लिया कि पार्टी में कोई इस प्रयोग की खुलकर मुखालफत नहीं कर पाया ,दिल्ली में भी मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब पलने वाले तमाम नेता अपमान का घूँट पीकर रह गए हैं। वरना दावा तो पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल या पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया को हारने वाले विधायकों का बनता था।
जानकारों का कहना है कि भाजपा हाईकमान ने अब महिलाओं को ही अपना रक्षा कवच बना लिया है। दिल्ली विधानसभा की 29 सीटें महिलाओं की वजह से ही भाजपा जीती है। महिलाएं यदि भाजपा के पक्ष में खुलकर मतदान न करतीं तो मुमकिन था की भाजपा की सरकार बन ही न पाती। भाजपा ने मप्र की तर्ज पर दिल्ली में भी महिलाओं को प्रतिमाह 2500रूपये सम्मान निधि देने की घोषणा की थी। महिलाओं को ललचाकर भाजपा महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव भी जीत चुकी है ,केवल झारखण्ड की महिलाएं भाजपा के झांसे में नहीं आयीं। भाजपा ने 70 सीटों में से 9 पर महिला उम्मीदवार उतारे थे।
आपको याद होगा कि दिल्ली में जब aek लम्बे आरसे बाद 1993 में विधानसभा के चुनाव हुए थे तब भाजपा की सरकार बनी थी ,लेकिन तबकी भाजपा ने मात्र 5 साल में तीन मुख्यमंत्री बनाये थे । पहले मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना केवल 3 साल ही अपने पद पर रह पाए । खुराना हटे तो साहिब सिंह वर्मा को मुख्यमंत्री बनाया गया थे,वे कोई डेढ़ साल ही पद पर रह पाए की उन्हें भी हटा दिया गय। साहिब सिंह के बाद श्रीमती सुषमा स्वराज मुख्यमंत्री मुख्यमंत्री बनाई गयीं थीं 1998 में कांग्रेस की श्रीमती शीला दीक्षित के नेतृत्व में हुए चुनाव में भाजपा सत्ता से बेदखल कर दी गयी थी। उम्मीद की जाना चाहिए कि भाजपा इस बार 27 साल बाद दिल्ली की सत्ता में वापस लौटने पर पहले जैसी गलती नहींकरेगी ,यानि पांच साल में तीन मुख्यमंत्री नहीं बनाएगी। अब देखना ये है कि रेखा गुप्ता क्या दिल्ली की नयी शीला दीक्षित बन पाएंगीं या नहीं ?फ़िलहाल रेखा जी भाजपा की जीवन रेखा तो बन ही गयीं हैं।
@ राकेश अचल
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