रविवार, 23 फ़रवरी 2025

अपने ' रोल ' की तलाश करते शशि थरूर

पूर्व मंत्री और कांग्रेस के वाचाल लेकिन विद्वान नेता शशि थरूर को मै एक नेता से ज्यादा एक लेखक के रूप में जानता हूँ और उनका सम्मान करता हूँ ।  आजकल शशि थरूर अपनी ही पार्टी में अपना ही ' रोल ; [भूमिका ] तलाश रहे हैं ।  उन्होंने अपनी ही पार्टी   से अपनी भूमिका को लेकर सवाल किये तो बवाल होना स्वाभाविक था।  बवाल शुरू भी हो गया है और अब मुझे लगता है कि यदि कांग्रेस ने शशि  थरूर के सवालों का जबाब न दिया तो शशि थरूर भी आने वाले दिनों में भाजपा के मंच पर शोभायमान हो सकते हैं। 

केरल के सनातनी ब्राम्हण शशि थरूर हमेशा सुर्ख़ियों में रहने वाले नेता हैं।  वे संसद में रहें या संसद के बाहर ,सुर्ख़ियों में रहते है।  कभी अपने लेखों की वजह से तो कभी अपने भाषणों की वजह से तो कभी अपनी निजी जिंदगी की वजह से।  उनकी प्रेमिका को लेकर प्रधानमंत्री  तक जुमलेबाजी कर चुके हैं, लेकिन शशि थरूर की सेहत पर इन सबका कोई असर नहीं होता। शशि थरूर भारतीय राजनीतिज्ञ और पूर्व राजनयिक हैं ।  शशि ने कांग्रेस के मंच से राजनीति शुरू की ,वे  2009   से केरल के तिरुवनन्तपुरम से लोक सभा सांसद हैं। इस समय भी शशि  विदेशी मामलों में संसदीय स्थायी समिति के अध्यक्ष के रूप में सेवारत हैं।

कांग्रेस के मौजूदा नेतृत्व से शशि थरूर की अनबन नयी नहीं है ,लेकिन अब लगता है कि  कांग्रेस का नेतृत्व  शशि का हिसाब करके मानेगा ।  दरअसल शशि को पार्टी हाई कमान ने उनकी प्रतिभा और क्षमता के अनुरूप न कोई काम दिया और न उनका ठीक तरह से इस्तेमाल किया है ,इसीलिए शशि कांग्रेस में अपने आपको अलग-थलग और उपेक्षित अनुभव कर रहे हैं। शशि थरूर और पार्टी नेतृत्व के बीच तनातनी जारी है. हाल ही में दिल्ली में राहुल गांधी से उनकी मुलाकात हुई, लेकिन उनकी शिकायतों का समाधान नहीं हुआ।  लगता है कि   अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी थरूर को लेकर कोई नरमी बरतने के मूड में नहीं है.

आपको बता दें कि  थरूर ने राहुल गांधी से अपनी भूमिका स्पष्ट करने की मांग की थी। उन्होंने ये भी जताया कि पार्टी में उन्हें दरकिनार किया जा रहा है, लेकिन इस बैठक में राहुल गांधी ने कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया जिससे थरूर और ज्यादा असंतुष्ट नजर आए। जहाँ तक मुझे लगता है कि   शशि थरूरअपने  बयानों और लेखों  की वजह से ही कांग्रेस नेतृत्व के निशाने पर हैं। . प्रधानमंत्री की अमेरिका यात्रा और डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात को लेकर थरूर के विचार पार्टी की आधिकारिक लाइन से अलग थे।  शशि सफेद  को सफेद और काले को काला कहने के आदी है।  उन्होंने  केरल की एलडीएफ सरकार की औद्योगिक नीति की प्रशंसा करने वाला लेख लिखकर  केरल राज्य कांग्रेस से भी पंगा ले लिया है। 

शशि थरूर की अपनी महत्वाकांक्षाएं हो सकतीं है।  मुमकिन है कि  वे केरल की राजनीति में ही अपने आपको समेटना चाहते हों ,हो सकता है की वे केंद्रीय राजनीति में अपने लिए युक्तिययुक्त भूमिका चाहते हों ,लेकिन पार्टी है कमान को शशि का खुलापन शायद रास नहीं आरहा है। 68  साल के शशि के पास अब इन्तजार करने का वक्त नहीं है। वे जल्द से जल्द अपनी भूमिका चाहते हैं। कांग्रेस शशि का इस्तेमाल न कर शायद गलती कर रही है।  कांग्रेस को ऐसी गलतियां करने की पुरानी आदत है। और कांग्रेस इसका खमियाजा भी भुगतती आ रही है ।  कांग्रेस के तमाम दिग्गज नेता इस समय भाजपा के मंच की शोभा बढ़ा रहे हैं।  मुझे आशंका है कि  यदि कांग्रेस ने समय रहते शशि थरूर के प्रश्नों  का समाधानकारक उत्तर न दिया तो किसी भी दिन शशि थरूर भी भाजपा के मंच पर खड़े नजर आ सकते हैं। 

कांग्रेस शशि के खुलेपन की सजा पहले ही प्रवक्ता पद से हटाकर दे चुकी है। अब उन्हें और कितना दण्डित किया जा सकता है ? शशि कोई जन्मजात राजनीतिज्ञ नहीं हैं लेकिन उन्होंने स्वदेश आने के बाद जब राजनीति करने का मन बनाया तो वे कांग्रेस में शामिल हुए ।  उनके लिए दूसरे दलों में जाने के भी विकल्प थे किन्तु उन्होंने देश सेवा केलिए कांग्रेस को ही सर्वथा उचित मंच समझा। आज कांग्रेस ही उन्हें मूषक बना देना चाहती है। कांग्रेस में दूसरे दलों की तरह आंतरिक लोकतंत्र अब दिखावे का रह गया है। कांग्रेस में भी अब मन की बात करने की आजादी किसी को नहीं है। 

शशि थरूर को समझना कांग्रेस के लिए आसान नहीं है अन्यथा शशि कांग्रेस के पास एकमात्र ऐसा नेता है जो हिंदी,अंग्रेजी और मलयाली में न सिर्फ लिख-पढ़ और बोल सकता है बल्कि कांग्रेस के किसी भी दिग्गज से ज्यादा हाजिर जबाब है।  शशि सनातन का मुद्दा हो ,धर्मनिरपेक्षता का मुद्दा हो या अर्थव्यवस्था का मुद्दा हो सभी पार पार्टी के दूसरे नेताओं से कहीं ज्यादा मजबूती के साथ बोलने की स्थिति में है। शायद उनकी यही प्रतिभा अब पार्टी में उनकी दुश्मन बन रही है।  मै ईश्वर से प्रार्थना करूंगा कि  शशि जहाँ हैं वहीं रहें।  शशि  का कांग्रेस से जाना देश की धर्मनिरपेक्ष राजनीति के लिए एक बड़ा नुकसान होगा । शशि को भगवा दुपट्टा बदलने में ज्यादा देर नहीं लगेगी। भाजपा को उनके जैसे विद्वान नेताओं की जरूरत हर समय रही है ,क्योंकि भाजपा के पास शाखामृग तो इफरात में हैं लेकिन शशि थरूर कम ही हैं। 

शशि थरूर का निजी जीवन काफी उथल-पुथल वाला रहा है।  उन्होंने तीन विवाह किये । उनकी आखरी पत्नी सुनंदा पुष्कर का संदिग्ध परिस्थितियों में निधन हो गया था। शशि के दो बेटे हैं,दोनों पत्रकार हैं। शशि को जानने के लिए आपको शशि थरूर के उपन्यास पढ़ना चाहिए। शशि की एक दर्जन से ज्यादा किताबें हैं।  उनका उपन्यास ' शो बिजनेस ' और ' मै हिन्दू क्यों हूँ ' विशेष तौर पर पठनीय है।  मै शशि थरूर के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ । एक नेता के नाते नहीं बल्कि एक लेखक के नाते भी ।  वे किसीभी दल में रहें ,मेरे प्रिय लेखक और राजनेता रहेंगे। 

@ राकेश अचल

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